बिलासपुर (mediasaheb.com)| पुरानी पीढ़ी से पूछो तो वो बताएँगे दिलीप साहब का कद क्या था, वैजयन्ती माला की अदायगी, उनका मन मोहने वाले डांस और उन बड़ी बड़ी आँखो से झलकता रोमांस…
वे अब नब्बे वर्ष की हो गयी है, बिमल राय, दिलीप साहब, देव साहब, राज साहब सब इस दुनियां से रुख़सत हो चुके है। इस नब्बे की आयु मे वैजयन्ती माला जी सक्रिय है,वे भरत नाट्यम की प्रतिदिन प्रैक्टिस करती है, यहीं तो उन्हें स्वस्थ व खुश रखता है..
दक्षिण भारत से जो भी अभिनेत्रीआई, वे सभी कुशल डांसर रही है, चाहे वो पद्मिनी हो या हेमा जी, या याद करिये फ़िल्म.आज़ाद का
अपलम चपलम
दक्षिण की दो बहने साईं और सुबलक्ष्मी , उन दिनों इस बेहतरीन डांस ने तहलका मचा दिया था
वैजयन्ती माला तो पारंगत भरत नाट्यम डांसर है,वैजयन्ती माला के थिरकते पाँवों ने उसे “ट्विन्कल टोज़” (twinkle toes) का खिताब दिलाया, उनके के लिए उनकी फिल्मों मे विशेष डान्स अवश्य रखे जाते थे और ये दर्शकों को पसंद आएगा इसकी गारंटी होती थी
मधुमति के डांस और गीत जो इन पर फिल्माया गया, सब कालजयी है, अतीत का खज़ाना
जुल्मी संग आँख लड़ी रे
या फिर बिमल राय की अमर कृति देवदास(1955) जिस मे चंद्रमुखी का लाजवाब अभिनय, सामने दिलीप साहब जैसा ट्रेज़ड़ी किंग, फ़िल्म फेयर अवार्ड भी मिला…सबसे ज्यादा जोड़ी जमी दिलीप साहब के साथ, नया दौर, गंगा ज़मुना,पैगाम जैसी हिट फिल्मे
यदि उनकी खूसूरती देखनी है तो राजसाहब की फ़िल्म संगम (1964) देखिए.. यदि दिल दीवाना न हो जाए तो कहियेगा
ओह महबूबा तेरे दिल के पास ही है मेरी मज़िल
मुकेश जी आवाज़ और झील पर बोटिंग करते राज साहब और इनकी खूबसूरत दिलकश अदाए..
देव साहब के साथ भी अनेक यादगार फिल्मे उन्होंने ने की,जिस मे ज्वेल थीफ(1967) यादगार रही
यदि फ़िल्म आम्रपाली(1966) की बात न हो तो उनकी कहानी मानो अधूरी रह गयी , इस साहित्यिक कृति पर बनी फ़िल्म मे उनकी नृत्य प्रतिभा उभर कर सामने आती है
बेदाग जीवन, कभी परदे पर अश्लील कपड़े नहीं पहने न ही सीमा नहीं लांघी (फ़िल्म संगम मे स्विमिंग कसट्युम पहना, ये उन दिनों बड़ी चर्चा का विषय बना था, जो बिल्कुल भी अश्लील या आज की भाषा मे हॉट नहीं था नहीं था)
अपना कद सम्मान हमेशा कायम रखा भारत सरकार ने इतना महत्वपूर्ण सम्मान उन्हें दिया, ये प्रकार से भारत की जनता की ओर से उनके पूरे जीवन की साधना को प्रणाम है | आप के स्वस्थ, मंगलमय जीवन की कामना