रायपुर(mediasaheb.com)। शिक्षा का अधिकार कानून निःशुल्क शिक्षा की बात करता है और प्रदेश के लगभग 4 हजार प्रायवेट विद्यालयों में लगभग 4 लाख गरीब बच्चें आरटीई के अंतर्गत पढ़ रहे है, उनके पालको को अपने बच्चों को इस कानून के अंतर्गत पढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 8 से 10 हजार खर्च करना पड़ रहा है। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर ने भी दो बार सरकार को यह आदेश दे चुका है कि प्रायवेट विद्यालयों में आरटीई के अंतर्गत प्रवेशित गरीब बच्चों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तक, गणवेश एंव लेखन सामग्री उपलब्ध कराने की समुचित व्यवस्था किया जावे, लेकिन सरकार इस कानून और कोर्ट के आदेशों को सिर्फ कागजों तक सीमित कर रखना चाहती है, क्योंकि ज्यादात्तर प्रायवेट स्कूलों में तो आरटीई के गरीब बच्चों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तक, गणवेश एवं लेखन सामग्री उपलब्ध नही कराया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ पैरेंटस एसोसियेशन ने संचालक, लोक शिक्षण संचालनालय से यह मांग की गई है कि आरटीई के अंतर्गत प्रायवेट स्कूलों में प्रवेशित गरीब बच्चों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तक, गणवेश एवं लेखन सामग्री उपलब्ध कराया जाए। एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल का कहना है कि आरटीई के अंतर्गत प्रवेशित गरीब बच्चों को प्रायवेट स्कूलों के द्वारा निःशुल्क पाठ्य पुस्तक, गणवेश एवं लेखन सामग्री उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है और पालक स्वयं 8 से 10 हजार खर्च कर अपने बच्चों के लिए पाठ्य पुस्तक, गणवेश एवं लेखन सामग्री खरीद रहे है, जो माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों की अवमानना है।
श्री पॉल ने बताया कि डीपीआई और अन्य उच्च अधिकारियों को इस संबंध में पूर्व में दो बार लिखित जानकारी दी जा चुकी थी, लेकिन उनके द्वारा आज तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं किया और इस वर्ष भी आरटीई के गरीब बच्चों के पालक अपने बच्चों के लिए पाठ्य पुस्तक, गणवेश एवं लेखन सामग्री खरीद रहे है, जिसके लिए डीपीआई और डीईओ पूर्णतः जिम्मेदार है।