नई दिल्ली, ( mediasaheb.com) सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से एससी-एसटी एक्ट में किए गए संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के कड़े प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट ने जायज बताया।
एक अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने गिरफ्तारी के प्रावधानों को हल्का करने के पिछले साल दिये गए दो जजों के बेंच के फैसले को निरस्त कर दिया था। दो जजों की बेंच के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये फैसला दिया था।
पिछले 24 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में सरकार की ओर से किये गए बदलाव के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार की ओर से किये गए संशोधन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में एससी-एसटी एक्ट के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान का विरोध किया गया है। याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी लेकिन सरकार ने बदलाव कर रद्द किए गए प्रावधानों को फिर से जोड़ दिया। सात सितम्बर, 2018 को याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी करने वाले संशोधन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
याचिका वकील प्रिया शर्मा और पृथ्वी राज चौहान ने दायर की है। याचिका में केंद्र सरकार के नए एससी-एसटी संशोधन कानून 2018 को असंवैधानिक बताया गया है। याचिका में कहा गया है कि इस नए कानून से बेगुनाह लोगों को फिर से फंसाया जाएगा। याचिका में मांग की गई है कि सरकार के इस नए कानून को असंवैधानिक करार दिया जाए । याचिका में मांग की गई है कि इस याचिका के लंबित रहने तक कोर्ट नए कानून के अमल पर रोक लगाए।
केंद्र सरकार ने इस संशोधित कानून के जरिये एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून में धारा 18 ए जोड़ी है। इस धारा के मुताबिक इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है, न ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है। संशोधित कानून में ये भी कहा गया है कि इस कानून के तहत अपराध करने वाले आरोपित को अग्रिम जमानत के प्रावधान का लाभ नहीं मिलेगा । (हि.स.)।