सही गाइडलाइन के अभाव में 12 वीं बोर्ड के बाद पांच साल तक भटकता रहा
भिलाई (mediasaheb.com) सही मागदर्शन मिलना कितना जरूरी है ये कोई मुझसे पूछे। बचपन से डॉक्टर बनना चाहता था, लेकिन किसी ने बताया ही नहीं कि डॉक्टर बनने के लिए कौन-कौन सी परीक्षाएं देनी पड़ती है। गांव के स्कूल में पढ़कर जब 12 वीं बोर्ड दिया तब पता चला कि पीएमटी नाम की भी कोई परीक्षा होती है। एक साल घर में सेल्फ तैयारी कर एग्जाम दिया तो फिजियोथैरेपी में सलेक्शन हो गया। घर वालों ने कहा कि एडमिशन ले लो, मैं भी रायपुर मेडिकल कॉलेज के कैंपस में लगने वाले फिजियोथैरेपी क्लास में पहुंच गया। यहां जब टीचर्स अंग्र्रेजी में पढ़ाते तो सारी बातें सिर के ऊपर से निकल जाती। कुछ दिनों तक क्लास में कुछ भी समझ नहीं आता था, धीरे-धीरे मन बोझिल हो गया। समझ नहीं आ रहा था क्या करूं। क्लास रूम के सामने एमबीबीएस के स्टूडेंट्स को देखकर अजीब सी हलचल मन में होती था। फिर एक दिन मैंने कोर्स छोड़कर सिर्फ मेडिकल एंट्रेस की पढ़ाई करने का निर्णय लिया। सबकुछ छोड़कर सीधे भिलाई आ गया। यहां सचदेवा कोचिंग में एडमिशन लेकर जीरो से पढ़ाई शुरू की। तीन साल बाद मैंने नीट क्वालिफाई कर लिया। ये कहानी है अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज में जूनियर रेसीडेंट के पद पर सेवाएं दे रहे जांजगीर चांपा जिले के ग्राम मेंहदी के रहने वाले डॉ. ओमप्रकाश रात्रे की। वे कहते हैं गांव के स्टूडेंट्स को यदि समय पर सही गाइडलाइन मिल जाए तो उन्हें भटकना नहीं पड़ेगा। आधा समय तो क्या करना है, कहां जाना इसी की तलाश में निकल जाता है।
एक साल तक डिप्रेशन में रहा
डॉ. रात्रे ने बताया कि फिजियोथैरेपी कोर्स में एक साल पढ़ाई करने के बाद कॉलेज छोड़ा तब काफी डिप्रेशन में चला गया था। कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। ऐसा लग रहा था कि जीवन में अंधेरा छा गया है। फैमिली के सपोर्ट से आगेे बढ़ पाया। जब जीवन में संघर्ष के दिन थे तब मैं खुद को सेल्फ मोटिवेट करने की कोशिश करता था। हिंदी मीडियम, सीजी बोर्ड स्टूडेंट होने के कारण बेस भी बहुत खराब था। इसलिए सभी विषयों को बेसिक से पढऩा ही ठीक लगा। बड़े भैय्या हमेशा कहते थे सिर्फ नौकरी करना काफी नहीं है। जॉब ऐसा होना चाहिए जिसको आप इंज्वाय कर सको। आज डॉक्टर बनकर जब किसी मरीज का इलाज करता हूं तो दिल से बहुत खुशी होती है।
सचदेवा में मिला सही मार्गदर्शन
फिजियोथैरेपी कोर्स छोडऩे के बाद जब मैंने कोचिंग का सोचा तब भिलाई में मैं भैय्या के साथ बैग लेकर घूम रहा था। अचानक हम सचदेवा के सामने रूके और यहां के स्टाफ से बात की। थोड़ी ही देर में ऐसी पॉजिटिव एनर्जी मिली कि उसी वक्त एडमिशन लेकर क्लास में आ गया। डॉ. रात्रे ने बताया कि पहले साल में काफी दिक्कत हुई। ड्रॉपर और फ्रेशर दोनों के साथ कॉम्पिटिशन था। दूसरे साल में रैंक इंप्रूव हुआ। तीसरे साल में रायपुर मेडिकल कॉलेज के लिए सलेक्ट हुआ। सचदेवा के टीचर्स हर दिन कुछ ऐसी पे्ररक बातें या कहानियां सुनाते थे जिसे सुनकर एनर्जी दोगुनी हो जाती थी। स्टडी पैटर्न और सलेक्टिव स्टडी मटेरियल इतना किफायती है कि यहां आप उस पर पूरा फोकस करते हैं तो ज्यादा बाहर से पढऩे की जरूरत नहीं पड़ती। सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर की काउंसलिंग का मैं मुरीद था। डिप्रेशन के दौर में सहारा बनकर उन्होंने कई बार मेरी पर्सनल काउंसङ्क्षलग की। टेस्ट सीरिज में जब रैंक काफी पीछे आता था तब वे कहते कि तुम लंबी रेस के घोड़े हो। आखिरी वक्त में अपनी काबिलियत खुद ब खुद सिद्ध करोगे। बिल्कुल वैसा ही हुआ।
खुद को करे मैंटली तैयारी
नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स से कहना चाहूंगा कि सिर्फ पढऩे से काम नहीं चलेगा। कई बार आपकी तैयारी पूरी होने के बाद भी सलेक्शन नहीं होता। ऐसे समय में खुद को फेल्यिर को झेलने के लिए मैंंटली और फिजिकली तैयार करना बहुत जरूरी है। अगर आपको एग्जाम या पैटर्न के बारे में जानकारी नहीं है तो बिना झिझक किसी एक्पर्ट से सलाह लेकर सही दिशा में तैयारी शुरू करें। एक ही लक्ष्य को लेकर तैयारी करें। अगर ऑप्शन रखेंगे तो कभी अपने गोल को अचीव नहीं कर पाएंगे। (the states. news)