रायपुर (mediasaheb.com)| जब एक बच्चे का जन्म होता है,वह सिर्फ रोना ही जानता है जिसके माध्यम से वह अपनी हर बात माँ को समझाता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है बच्चा बाहरी परिवेश में घुलता मिलता है और उसमें सभी मनोभाव समाने लगते हैं जैसे प्रेम, घृणा,दया,क्रोध, काम,लोभ,मद ।
इनमें जो सबसे ज्यादा प्रभावी होता है वही मनुष्य का स्वभाव कहलाता है। कोई दयालु,कोई प्रेममय व्यवहार वाला,कोई घमंडी और कोई क्रोधी स्वभाव से पहचाना जाता है। सभी स्वाभाविक भाव हैं जिन्हे मनुष्य स्वयं से अलग कर ही नहीं सकता हाँ अगल-अलग परिस्थित में अगल-अलग भाव सामने आते हैं। किन्तु क्रोध इतना ज्यादा प्रभावी होता है कि तत्काल प्रकट हो जाता है तत्काल परिणाम भी दिखता है । क्रोध के आते ही शांति चली जाती है विवेक मर जाता है, इसके बंधुगण अपशब्द और अवहेलना तुरंत हावी हो जाते हैं। परिणाम क्रोधी मनुष्य किसी का प्रिय नहीं होता सदा उपेक्षित किया जाता है। जहाँ आसक्ति होगी अपेक्षा होगी कामना होगी वहीं क्रोध पनपता है। अतृप्त कामना क्रोध को जन्म देती है।सूर्पनखा को राम को पाने की इच्छा जागी न पा सकने का कारण माता सीता नजर आई,तो उसने क्रोध में आकर माता सीता पर वार किया जवाब में उसकी नाक कट गई। बहन की कटी नाक देख रावण को क्रोध आया,सीता को पाने की अतृप्त कामना ने सर उठाया और सीताहरण हो गया। अंजाम रावण कुल का सर्वनाश।
क्रोध सर्वदा गलत और हानिकारक होता है। यह एक विकार है जो बाद में पछतावा छोड़ जाता है।पत्नी ने आज सब्जी अच्छी नहीं बनाई आपको क्रोध आ गया,पति को आने में देर हो गई आप फिल्म देखने न जा सके आपको क्रोध आ गया,बच्चों ने गलती से कुछ नुकसान कर दिया आपको क्रोध आ गया,आपकी कोई भी इच्छा या बात पूरी नहीं हुई और आपको क्रोध आ गया। ऐसा क्रोध एक सक्रिय ज्वालामुखी है जो कभी भी फट पड़ता है और स्वयं को पहले जला लेता है।ऐसे लोग कहीं सम्मान नहीं पाते। क्रोध आने पर भी संयम बरता जाए तो परिस्थित बस में की जा सकती है।अगर क्रोध मेें परमार्थ निहित है तो वह उचित भी है। श्री कृष्ण शांतिदूत बनकर गए थे हस्तिनापुर।उन्होने पांडवों का प्रस्ताव रखा कि हमें मात्र पाँच ग्राम दे दो हम उसी में खुश हैं। किंतु दुर्योधन ने अभिमान में भरकर कहा एक सुई की नोक बराबर भी जमीन नहीं दी जाएगी।उसने हरि को ही बाँधना चाहा जंजीर में, तब प्रभु श्री कृष्ण ने क्रोध में आकर अपना विराट रूप दिखाया और कहा अब तो रण ही होगा और ऐसा जैसा न पहले कभी हुआ है न कभी होगा। युग परिवर्तन होगा। श्री कृष्ण के इस क्रोध में परमार्थ था जगत कल्याण का भाव था। ऑफिस में बाॅस किसी काम के गलत होने पर क्रोध जताए,शिक्षक शिष्यों को सन्मार्ग पर लाने के लिए क्रोध करे,माता-पिता बच्चों की गलत हरकतों पर उन्हे डाँटें तो यह सब न्याय संगत है। स्वार्थवश किया गया क्रोध विनाशकारी होता है।
क्रोध एक अंगारे के रूप में दहकता रहता है,और समय के साथ-साथ वह बैर में बदल जाता है।यह मनुष्य का आंतरिक और बाहरी दोनो सौंदर्य नष्ट कर देता है, पूरे समाज के लिए घातक होता है। जैसे मामा शकुनी ने अपने क्रोध को पाला पोसा दुर्योधन का सहारा लेकर सर्वनाश को आमंत्रित किया। प्रश्न यह उठता है क्या क्रोध को प्रकट होने से रोका जा सकता है ?
गौतम बुद्ध के पास एक युवक आया उसने कहा ” हे महात्मा मुझे बात-बात पर क्रोध आता है जिस पर मेरा नियंत्रण नहीं रहता ।बाद में पछतावा होता है मुझे ऐसा नहीं करना था। तब तक बात बिगड़ चुकी होती है। मैं क्रोध से छुटकारा चाहता हूँ।कृपया कोई उपाय बताएँ।” बुद्ध ने मुस्कुराकर कहा मैं तुम्हे अभिमंत्रित जल दे रहा हूँ ,जब भी क्रोध आए इसे दस घूँट पीना और फिर दस से एक तक उल्टी गिनती गिनना। उसके बाद ही कुछ बोलना अगर जरूरत हो।” एक बड़ी सी बोतल में अभिमंत्रित जल लेकर वह चला गया। दस दिनों बाद ही वह युवक फिर बुद्ध के पास आया और कहा ” वह जल तो अद्भुत है, आपने जैसा कहा मैने किया और आश्चर्य की बात है कि ऐसा करने के बाद मुझे क्रोध आया ही नहीं। मुझे वही जल और चाहिए। ” बुद्ध ने हँसकर कहा वह साधारण जल ही था असर तो तुम्हारी साधना का हुआ है। पर मैंने कोई साधना नहीं की। क्रोध आने पर तुमने जल पीया और गिनती शुरू की उस वक्त तुम शांति की साधना कर रहे थे और शांति आ गई। जहाँ शांति हो वहाँ क्रोध का वास नहीं होता।
इस तरह क्रोध पर विजय प्राप्त की जा सकती है।क्रोध बहुत तीव्र आवेश उत्पन्न करता है। जो विवेकवान होते हैं वे इसे अपनी शक्ति बना लेते हैं, वे शब्दों से जवाब नहीं देते बल्कि अपने लक्ष्य प्राप्ति में उसे झोंक देते हैं। मेजर ध्यानचंद को एक बार विरोधी टीम के एक खिलाड़ी ने जानबूझकर चोट पहुँचाई उन्हे क्रोध आया उन्होने बदला भी लिया वहीं मैदान में, लगातार छः गोल मारकर आक्रामक जीत हासिल करके। रतन टाटा को बिल ग्रेड ने अपमानित किया था कि हम तुम पर एहसान करेंगे तुम्हारी कंपनी खरीदकर। रतन टाटा को उसके व्यवहार पर क्रोध आया उसने इंडिका को बेचने का फैसला रद्द किया और संकल्प लिया एक दिन इसी कंपनी को ऊँचाइयों तक ले जाएँगे। उनका संकल्प पूरा भी हुआ। फिर वह दिन भी आया जब बिल ग्रेड उनके पास आया याचक बनकर कि आपका एहसान होगा अगर मेरी दीवालिया होती कंपनी आप खरीद लें। यह होता महापुरूषों का क्रोध। आवश्यकता है अपनी शक्ति से परिचित होने की।क्रोध का प्रदर्शन हर हाल में अनुचित है।क्रोध पर नियंत्रण रखकर उतपन्न हुई ऊर्जा का सार्थक प्रयोग करें,क्योंकि क्रोध का दमन नहीं शमन किया जा सकता है।