अमिताभ बच्चन …..हम जहां खड़े होते है, लाइन वही से शुरू होती है
बिलासपुर (mediasaheb.com)| उन्होंने फिर साबित कर दिया की वे महानायक है… फिर कल्कि में अश्वत्थामा बने है | इस फ़िल्म में उनका अभिनय देखते बनता है | त्रेतायुग का मानव यानि हाइट नौ फ़ीट के आसपास, आत्मग्लानि से भरा हुआ, पूरा शरीर अनेक घाव से भरा हुआ, इस भयंकर पीड़ा के साथ हज़ारो वर्षो से जीवित, जिस के लिए अमरता एक अभिशाप के सिवाय कुछ नहीं.. अमिताभ ही मानो वो अश्वत्थामा है..|
अमिताभ ने हमारी पीढ़ी को यानि सत्तर के दशक में जन्मे को बहुत प्रभावित किया है.. | मुझे वो सुनहरा दौर याद आता है, ज़ब हम अमिताभ की आने वाली फ़िल्म के पोस्टर देखने थिएटर की चक्कर काटते , अमिताभ की हेयर स्टाइल, उनके बात करने अंदाज़ , उनके कपड़े पहनने का अंदाज़ और डांस.. सब कुछ उस दौर में आम जन को प्रभावित करता था, उन्हें सम्मोहित करता था
आज जब उनके विषय में लिखना हो तो फ़िल्म आनंद, मिली , अभिमान, सिलसिला या कभी कभी याद आएगी, किन्तु हम जिस अमिताभ के दीवाने थे, वो था उनकी एंग्री यंग मैन वाली छबि, परदे पर दस दस गुंडों को सबक सिखाने वाला, एक अलग ही स्टाइल से डांस और साथ में कॉमेडी भी.. यानि दिवार, शोले, डॉन,नसीब, नटवर लाल, सुहाग, मुक़ददर का सिकंदर, त्रिशूल, लावारिस इत्यादि इत्यादि..
ये वो फिल्मे है, जिन्होंने ने अमिताभ को अमिताभ बनाया, आम जन का नायक. ये सब मसाला फिल्मे थी, कुछ बड़ी ही उटपटांग, पर वो इसी प्रकार की फार्मूला फिल्मों का दौर था और इसी प्रकार की फिल्मे चलती थी, फ़िल्म जंजीर से शुरू हुआ वो दौर बहुत लम्बा चला, फ़िल्म अग्निपथ तक मुझे याद है फ़िल्म लावारिस और सिलसिला एक साथ ही रिलीज़ हुई, लावारिस सुपरहिट साबित हुई और सिलसिला जैसी बेहतरीन , कालजयी फ़िल्म जिसका संगीत अमर है बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई अमिताभ ने हमेशा वक़्त को समझा और उस दौर के सिनेमा में में अपना स्थान बनाया वे उस दौर में भी थे ज़ब आनंद, मिली, नमक हराम या अभिमान जैसी उम्दा फिल्मे बनी
और मसाला फिल्मों के दौर बाद, इस नई सदी के सिनेमा में भी वे आज तक मैदान जमे हुए है, बैटिंग कर रहें है मैंने फ़िल्म. पीकू कई बार देखी, अमिताभ का अभिनय देखते बनता है, संजय लीला भंसाली की फ़िल्म ब्लैक आप भूल नहीं सकते या फिर ऋषि कपूर के साथ कॉमेडी फ़िल्म 102 नॉट आउट..
हर फ़िल्म में एक नया लुक, किसी नए पात्र को जीने की ललक कौन बनेगा करोड़पति में बड़ी ही नम्रता से, सहजता से वे आम जन के मध्य आते थे और इस टीवी प्रोग्राम को अपने बूते पर सफल किया उनके पिता और मेरे अतिशय प्रिय साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन हमेशा उनके आदर्श रहें, उनके इंटरव्यू में उनके बाबूजी का उल्लेख अवश्य होता है..
अभी इस आलेख को पढ़ कुछ नए नवेले फ़िल्म क्रिटिक सहमत नहीं होंगेऔर कुछ पोलिटिकल एजेंडे के कारण..
अमिताभ सब अस्सी की आयु पार चुके है, उनके पूरे कैरियर को बिना किसी पूर्वाग्रह(prejudice) के देखिए, आप उनके संघर्ष को, अभिनय के प्रति समर्पण को प्रणाम करेंगे
फ़िल्म. आंनद के डॉ भास्कर बेनर्जी से फ़िल्म त्रिशूल में अपने बाप से टकराता बेटा, अभिमान में अपनी पत्नी की सफलता से ईर्ष्या करता, दिवार में नकारात्मक सोच का इंसान, सिलसिला और कभी कभी फ़िल्म का सह्रदय प्रेमी या फ़िल्म पीकू में दीपिका का झक्की बंगाली पिता या फ़िल्म कल्कि का अश्वत्थामा, जो पिछले सप्ताह देखी..वे निश्चित ही महानायक है भारतीय सिनेमा के… | *संजय अनंत©*