आज सज्जन कुमार (पूर्व संसद सदस्य , वरिष्ठ नेता) को दोषी मान कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई मीडिया ने समाचार तो दिखाया किन्तु इसकी चर्चा न के बराबर थी 1984 में इंदिरा जी की हत्या के बाद क्या हुआ था????
दरअसल एक षडयंत्र के चलते सब कुछ दबा दिया सिख समुदाय , पंजाब के अतिरिक्त कही भी इतनी बड़ी संख्या में नहीं है कि नेता मुस्लिम वोट की तरह इनकी भी परवाह करे
मैने कई वर्ष पूर्व, जब इस विषय पर लिखना प्रारंभ किया , मुझे कुछ अनजान नंबर से कॉल आए थे , इस विषय पर मत लिखो , अंजाम ठीक नहीं होगा
पर मैं लिखता रहा , जब भी कही सम्मेलन में , गोष्ठी में बोलने का अवसर मिला , सच्चाई रखता रहा
ये दंगे नहीं थे ,नहीं थे और नहीं थे ये सिख समुदाय का नरसंहार था, सत्ताधारी शासक व उनके पाले हुए गुंडों के द्वारा ..आइए सच जानिए
देश के प्रथम नागरिक यानि राष्ट्रपति को सारी सूचनाओं से वंचित रखा जा रहा था , राष्ट्रपति भवन की टेलीफोन लाइन खराब थी या कर दी गई थी , राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह चिंतित थे ,बेबस थे, उन्हें कुछ भी नहीं पता था
केवल दिल्ली में हजारों सिख कत्ल किए गए
यहां समझिए, दिल्ली देश की राजधानी है , जहां हमेशा सेना और अर्ध सैनिक बल बड़ी संख्या में बैरैक में होते है
इस कत्लेआम को बड़ी आसानी से रोक जा सकता था , केवल एक आदेश की प्रतीक्षा थी , और कुछ मिनटों में सेना दिल्ली की सड़कों पर होती और ये कत्लेआम रुक जाता या नहीं होता सोचिए किस के आदेश पर तुरंत सेना को नहीं तैनात किया गया
तीन दिन तक कत्लेआम हुआ उसके बाद कदम उठाए गए
सिख बच्चों पर भी दया नहीं की , जिंदा जलाया
सब कुछ बड़ा सुनियोजित था , ये सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर जैसे वरिष्ठ नेता दिल्ली में आग में घी डाल रहे थे
वे महिलाएं अब भी जीवित है जिनके पूरे परिवार को उनकी आंखों के सामने कत्ल किया गया
दिल्ली के सिख और उनके बाप दादा , बंटवारे के बाद लाहौर और पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब से यहां बतौर शरणार्थी आ कर बसे थे , सन सैंतालीस के भयानक नरसंहार के शिकार जन..
अब देखिए कितनी चालाकी से इसे दंगे कहा गया , आश्चर्य तब हुआ जब सिख भी इसी शब्दावली का प्रयोग करने लगे
ये बताया गया कि सिख और शेष हिन्दू समाज के मध्य दंगा हुआ
ये सफेद झूठ गढ़ा गया, किसी भी हिंदू संगठन ने , किसी भी सिख संगठन ने कही भी एक दूसरे पर आक्रमण नहीं किया न ही एक दूसरे धार्मिक स्थानों को क्षति पहुंचाई
फिर ये दंगा कैसे माना जाय ??
ये सुनियोजित सिख समुदाय का नरसंहार था , जो तत्कालीन सत्ता और उनके संरक्षण में पल रहे गुंडों द्वारा किया गया
अब देखिए बेहयाई.. जब विदेशी मीडिया ने प्रश्न किया तो उत्तर दिया गया , जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है , तो हलचल तो होती ही है यानि जो हजारों सिख मारे गए , वो एक सामान्य बात थी , मात्र जनआक्रोश था..
आज तक 84 के नरसंहार में न्याय नहीं मिला , कुछ तो न्याय की आस लगाए संसार से चले गए सारे सबूत,पहले ही मिटा दिए गए थे खैर ,मीडिया भले ही मौन रहे हम ने पहले भी लिखा और निडर हो कर आगे भी लिखेंगे 1984 देश के इतिहास का बहुत ही शर्मनाक समय..
सिख गुरुओं का उपकार ये देश कभी नहीं चुका सकता, ये उस दिल्ली में हुआ जहां हिंद दी चादर गुरु तेगबहादुर जी बलिदान हुए..1984 का सच जनता जाने बस इतना ही *डॉ.संजय अनंत©*