नई दिल्ली (mediasaheb.com)| उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली आबकारी नीति कथित घोटाले से संबंधित केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के मुकदमे में तिहाड़ जेल में बंद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत की मांग के साथ ही गिरफ्तारी (सीबीआई की ओर से) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने याचिकाकर्ता केजरीवाल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और सीबीआई की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू की घंटों दलीलें ने सुनने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रखने का फैसला किया।
पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान श्री राजू ने मुख्यमंत्री केजरीवाल को जमानत दिए जाने की दलीलों का पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि अधिनस्थ अदालत को दरकिनार करने की अनुमति केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दी जा सकती है।
इस पर श्री केजरीवाल पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्री सिंघवी ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत आरोपी को नोटिस जारी करने के संबंध में वर्तमान याचिका में उठाए गए आधारों पर हिरासत के दौरान बहस की गई थी। इसके बाद विशेष अदालत ने उसे खारिज कर दिया था। इसलिए याचिकाकर्ता को फिर से उसी मुद्दे पर वहां बहस करने के लिए वापस भेजना न्यायोचित नहीं होगा।
पीठ के समक्ष गुरुवार को श्री सिंघवी ने कहा, “शायद यह एकमात्र ऐसा मामला है, जिसमें मुझे (केजरीवाल) इस अदालत से सख्त धन शोधन रोकथाम अधिनियम के तहत दो रिहाई आदेश मिले, जिसमें धारा 45 का प्रतिबंध है। उच्च न्यायालय से एक और विस्तृत आदेश मिला। फिर सीबीआई द्वारा इस पहले से तय गिरफ्तारी हुई।”
शीर्ष अदालत को श्री सिंघवी ने यह भी बताया कि केजरीवाल का नाम 2022 में दर्ज मुकदमे में नहीं था और उन्हें इस साल जून में गिरफ्तार किया गया था।
उन्होंने कहा, “तीन अदालती आदेश मेरे पक्ष में हैं। यह एक तय गिरफ्तारी है, ताकि उन्हें जेल में रखा जा सके।”
वरिष्ठ अधिवक्ता ने मुख्यमंत्री केजरीवाल का पक्ष रखते हुए कहा, “सबूतों के साथ छेड़छाड़ का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि लाखों दस्तावेज हैं, जिनमें से कई डिजिटल हैं। उनके मुवक्किल न्यायिक हिरासत में रहते हुए गवाहों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं और इस मामले में पांच आरोप पत्र भी दाखिल किए गए हैं।”
उन्होंने दिल्ली अबकारी नीति मामले से संबंधित अन्य आरोपियों – दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, सांसद संजय सिंह और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की विधान पार्षद के कविता के जमानत आदेशों का हवाला दिया। शीर्ष अदालत ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया था।
श्री सिंघवी ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 41ए को 2010 में गिरफ्तारियों को विनियमित करने के लिए पेश किया गया था और इसका उद्देश्य मनमानी गिरफ्तारियों को रोकना और यह सुनिश्चित करना था कि कानून प्रवर्तन अधिकारी बिना किसी वैध आधार के किसी को गिरफ्तार न कर सकें।
दूसरी ओर श्री राजू ने केजरीवाल की याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि उन्होंने पहले सत्र न्यायालय में गुहार लगाने के सीधे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
उन्होंने कहा, “यह मेरी प्रारंभिक आपत्ति है। गुण-दोष के आधार पर अधिनस्थ अदालत को पहले इस पर विचार करना चाहिए था। उच्च न्यायालय को गुण-दोष देखने के लिए बनाया गया था और यह केवल असाधारण मामलों में ही हो सकता है। सामान्य मामलों में पहले सत्र न्यायालय का रुख करना पड़ता है। वे (केजरीवाल) यहां आए और फिर उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया और फिर वे फिर से शीर्ष अदालत आए।”
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल राजू ने यह भी दावा किया कि केजरीवाल ने अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के माध्यम से पंजाब के एक आबकारी लाइसेंस धारक को परेशान करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया। उन्होंने यह भी कहा कि केजरीवाल को कोई भी राहत उच्च न्यायालय पर मनोबल गिराने वाला प्रभाव डालेगी।
हालांकि, पीठ ने कहा कि उन्हें (राजू को) यह दलील नहीं देनी चाहिए थी। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके खिलाफ सामग्री वाली सीबीआई की चार्जशीट उच्च न्यायालय के समक्ष उपलब्ध नहीं थी।
उन्होंने कहा कि किसी विशेष व्यक्ति के लिए जमानत के संबंध में विशेष व्यवहार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कानून में कोई विशेष व्यक्ति नहीं है और ‘अन्य सभी ‘आम आदमी’ (आम आदमी) को सत्र न्यायालय जाना होगा।
गवाहों के बयान पढ़ते हुए श्री राजू ने दावा किया कि इससे संकेत मिलता है कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली आबकारी नीति मामले में ‘मुख्य साजिशकर्ता’ थे।
चुनाव में रिश्वत के पैसे के इस्तेमाल का दावा करते हुए श्री राजू ने कहा कि गोवा में कई लोग भी इस मामले में फंसे हुए हैं और अगर केजरीवाल जमानत पर बाहर आते हैं तो वे गवाह मुकर सकते हैं।
उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक हलफनामे में सीबीआई ने केजरीवाल को गिरफ्तार करने के अपने निर्णय को उचित ठहराते हुए दावा किया कि नई आबकारी नीति तैयार करने में सभी महत्वपूर्ण निर्णय मुख्यमंत्री के इशारे पर तत्कालीन उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया के साथ मिलीभगत करके लिए गए थे। ये फैसले 100 करोड़ रुपये की अवैध रिश्वत के लिए किए गए थे।
पीठ ने आबकारी नीति 2021-22 (जो विवाद के बाद वापस ले ली गई थी) मामले में सीबीआई की गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती देने वाली और इसी मुकदमे में जमानत की मुख्यमंत्री केजरीवाल की ओर दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा। पीठ ने संबंधित पक्षों से कहा कि यदि वे लिखित रूप में मुख्य दलीलें पेश करना चाहें तो दो दिन के अंदर पेश कर दें।
आम आदमी पार्टी के प्रमुख श्री केजरीवाल ने दिल्ली उच्च न्यायालय की ओर से 5 अगस्त को अपनी याचिकाएं ठुकरा दिए जाने के बाद शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
शीर्ष अदालत ने आबकारी नीति कथित घोटाले से संबंधित धन शोधन के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से दर्ज मुकदमे में केजरीवाल को 12 जुलाई को अंतरिम जमानत दे दी थी।
शीर्ष अदालत ने इससे पहले लोकसभा चुनाव के दौरान भी उन्हें अंतरिम जमानत दी थी।
ईडी ने 21 मार्च और सीबीआई में 26 जून 2024 को आरोपी मुख्यमंत्री केजरीवाल को गिरफ्तार किया था। सीबीआई की गिरफ्तारी के समय वह ईडी के मुकदमे में न्यायिक हिरासत में थे।
सीबीआई ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मुकदमे में मार्च से न्यायिक हिरासत में बंद आरोपी मुख्यमंत्री केजरीवाल को अदालत की अनुमति के बाद 25 जून को पूछताछ और फिर 26 जून को गिरफ्तार किया था।
अबकारी नीति बनाने और उसके कार्यान्वयन में की गई कथित अनियमितताओं का आरोप के आधार पर केंंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 17 अगस्त 2022 को एक आपराधिक मुकदमा दर्ज किया था। इसी आधार पर ईडी ने 22 अगस्त 2022 को धनशोध का मामला दर्ज किया था। शुरू में मुख्यमंत्री केजरीवाल का नाम आरोपियों में नहीं था।(वार्ता)