- सेकंड ड्रॉप के बाद गिवअप करके ज्वाइन कर लिया था एग्रीकल्चर
- इंग्लिश और फिजिक्स दोनों लगती थी खिचड़ी
- पढि़ए तीन साल ड्रॉप लेकर नीट क्वालिफाई करने वाले डॉ. रूपेंद्र की कहानी, पहली बार घर से निकले थे तब डर गए थे जिंदगी की रफ्तार देखकर
भिलाई(mediasaheb.com). गांव के स्कूल में पढ़कर डॉक्टर बनने का सपना देखने वाले डॉ. रूपेंद्र चौधरी ने अपने दूसरे ड्रॉप इयर में असफलता देखकर गिवअप कर दिया था। उन्हें लगा कि ये डॉक्टरी इनके बस की बात नहीं इसलिए थककर एग्रीकल्चर ज्वाइन कर लिया। कुछ ही दिन में उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया और एग्रीकल्चर छोड़कर एक बार फिर मेडिकल एंट्रेस की तैयारी में जुट गए। अपने दृढ़ संकल्प और कुछ कर दिखाने के जुनून के चलते साल 2014 में नीट क्वालिफाई कर लिया। महासमुंद जिले के बेहद पिछड़े गांव जंगल बेड़हा के मध्यम वर्गीय परिवार में पले-बढ़े डॉ. रूपेंद्र कहते हैं कि मैं उस जगह से ताल्लुक रखता हूं जहां के लोगों के लिए डॉक्टर आज भी भगवान है। महज चंद बच्चे ही किसी तरह कठिन परिस्थिति का सामना करके कॉलेज की पढ़ाई कर पाते हैं। ऐसे में उनके परिवार ने न सिर्फ उनके सपनों पर भरोसा किया बल्कि किसी तरह से पैसों का इंतजाम करके पढऩे के लिए शहर भेजा। आज जब मैं गांव जाता हूं तो अपने बीच के लड़के को डॉक्टर के रूप में देखकर वे गौरवान्वित हो उठते हैं। अपने सपने को ये समझकर बीच में छोड़ देना कि मेरे बस की बात नहीं जीवन की सबसे बड़ी गलती होती है। इसलिए जब तक मंजिल न मिल जाए कोशिश करते रहना है।
पहली बार गांव से निकलकर आया था शहर पढऩे
डॉ. रूपेंद्र ने बताया कि डॉक्टर बनने का सपना बचपन का नहीं था। दसवीं बोर्ड में जब गणित में कम नंबर आया तब मैंने बायो लेकर आगे की पढ़ाई करने का फैसला लिया था। रूचि तो शुरुआत से गणित में ही थी। समय के साथ बायो में इंटरेस्ट आया और इसे अपनी जर्नी मानकर पढ़ता चला गया। 12 बोर्ड तक आगे क्या करना है इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। किसी तरह सचदेवा भिलाई कोचिंग के बारे में पता चला और मेडिकल एंट्रेस की तैयारी के लिए मैं शहर आ गया। यह पहली बार था जब मैं गांव से बाहर निकलकर किसी शहर में आया था। नया-नया माहौल और लोगों की एडवांस जिंदगी शुरूआत में डराती थी। धीरे-धीरे अपने आप को समय देकर पढऩे में मन लगाया।
जैन सर ने काउंसलिंग करके बढ़ाया मनोबल
डॉ. रूपेंद्र ने बताया कि जब पहली बार सचदेवा कोचिंग पहुंचा मेरा बेसिक पूरा जीरो था। फिजिक्स और अंग्रेजी खिचड़ी सी लगती थी। फिजिक्स को देखकर तो डर ही लगता था। ऐसे में सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर की काउंसलिंग काफी काम आई। वो हमेशा पॉजिटिव बातें और एवरेज स्टूडेंट की सफलता की कहानियां सुनाकर मनोबल बढ़ाते थे। यही कारण है डॉक्टर बनने का सपना मन में और भी गहराई तक जाता रहा। सचदेवा के हेल्दी माहौल में पढऩे में मजा आने लगा। यहां के टीचर्स इतनी सरलता से कठिन चीजों की समझा देते कि दोबारा उसे पढऩे की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। टेस्ट सीरिज में बाकी बच्चों के साथ कॉम्पिटिशन करके खुद की तैयारी को परखने का मौका मिलता था। कुल मिलाकर सचदेवा वो जगह है जहां एक स्टूडेंट को कंप्लीट पैकेज मिलता है। बस जरूरत होती हे जी जान से मेहनत करने की।
प्रेशर लेकर नहीं पढ़ाई को इंज्वाय करके पढऩा है
नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स से यही कहना चाहूंगा कि आप पढ़ाई का प्रेशर लेकर नहीं बल्कि पढ़ाई को इंज्वाय करके पढि़ए। इससे आपका मन भी लगेगा और सफलता की गुंजाइश सौ गुना बढ़ जाएगी। नेगेटिव थिकिंग को खुद पर हावी नहीं होने देना है। अगर आपको लग रहा कि आप डिप्रेशन में जा रहे तो किसी बड़े व्यक्ति से जरूर बात करें। अपनी प्राब्लम शेयर करे।For English News : the states.news