सोशल मीडिया को लेकर आयोजित नेशनल वेबीनार में विषय विशेषज्ञों ने रखे विचार
रायपुर (mediasaheb.com)| सोशल मीडिया ने यदि हमें सुविधाएँ दी हैं तो अनेक समस्याएं भी मुंह बाए खड़ी हैं। सायबर बुलिंग, इंटरनेट हराशमेंट जैसी समस्याएं सबसे बड़ी चुनौति के रूप में है। सोशल मीडिया की लत मनोरंजन के साथ-साथ मानसिक एवं शारीरिक परेशानियों का सबब भी बनती जा रही है। सोशल मीडिया के दौर में आज पर्सनल और पब्लिक लाइफ में जरा भी अंतर नहीं रह गया है। सोशल मीडिया ने यह अन्तर खत्म कर दिया है।
उपर्युक्त बातें शहीद नंद कुमार पटेल शासकीय महाविद्यालय, बीरगांव, रायपुर और खुन खुनजी कन्या स्नात्कोत्तर महाविद्यालय लखनऊ तथा छत्तीसगढ़ सोशियोलॉजिकल एसोसिएशन व उत्तरप्रदेश सोशियोलॉजिकल एसोसिएशन द्वारा संयुक्त रूप से ‘सोशल मीडिया और समाजः जनतांत्रिक मूल्य और जन विमर्श’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार में विषय विशेषज्ञों ने कहीं।
छत्तीसगढ़ सोशियोलॉजिकल एसोसिएशन की अध्यक्ष शहीद नंद कुमार पटेल शासकीय महाविद्यालय, बीरगांव प्रो. प्रीति शर्मा ने बताया कि कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में भारतीय समाजशास्त्र परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राजेश मिश्रा, भारतीय समाजशास्त्र परिषद के पूर्व सचिव प्रो. आनंद कुमार तथा विशिष्ट वक्ता केंद्रीय विश्वविद्यालय, राजस्थान के मीडिया एवं संस्कृति विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो. प्रांता प्रतीक पटनायक थे।
मुख्य वक्ता के रूप में भारतीय समाजशास्त्रीय सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष और लखनऊ यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. राजेश मिश्रा ने सोशल मीडिया की प्रकृति और स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए विश्वप्रसिद्ध समाजशास्त्रियों कार्ल मार्क्स, हेबरमास, गिडिंग्स आदि के विचारों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा की ओल्ड मीडिया मोनोलॉजिकल था जबकि सोशल मीडिया डायोलॉजिकल है। इसकी अनेक विशेषताएं हैं जिनमें साझेदारी का महत्वपूर्ण होना, निरंतरता होना और एक से अधिक परिप्रेक्ष्य आदि शामिल है। सोशल मीडिया ने परिवार, समाज, जनविमर्श आदि सभी को प्रभावित किया है। सोशल मीडिया में संवाद की स्वतंत्रता की संभावनाएँ अधिक हैं, लेकिन यह एडिक्शन भी पैदा करता है जो विभिन्न प्रकार का हो सकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारतीय समाजशास्त्रीय सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. आनंद कुमार ने कहा कि समय के साथ-साथ मीडिया की प्रकृति और स्वरूप में काफी परिवर्तन हुआ है जिसका प्रभाव परिवार, समाज आदि पर निश्चित तौर पर पड़ा है। सोशल मीडिया ने एक ओर जहां हमें बहुत कुछ दिया भी है तो अनेक चुनौतियां व कठिनाइयां भी हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया से जुड़े दायरे, सवाल और प्राथमिकताएं होनी आवश्यक हैं। विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थिति केंद्रीय विश्वविद्यालय, राजस्थान के मीडिया एवं संस्कृति विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो. प्रांता प्रतीक पटनायक ने कहा कि जब फेसबुक नहीं था तब आर्कुट हुआ करता था।
उस दौर में मुझे छात्रों ने बताया फेसबुक के संबंध में, फिर इंस्ट्राग्राम के संबंध में भी पता चला, आशय यह है कि हमें यूथ से नित-नई जानकारियां मिलती हैं। सोशल मीडिया के इस दौर में हमारी पर्सनल और पब्ल्कि लाइफ में कोई भी अन्तर नहीं रह गया है। श्री पटनायक ने कहा कि सायबर बुलिंग और आनलाइन हराशमेंट आज सबसे बड़ी समस्या है जिसके समाधान की दिशा में सार्थक कदम उठाना आवश्यक है। इस दौरान तकनीकी सत्र एवं प्रश्नोत्तरी सत्र का भी आयोजन किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुचित्रा शर्मा ने किया।
कार्यक्रम के अंत में खुन खुनजी कन्या स्नात्कोत्तर महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. अंशु केडिया ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर उत्तरप्रदेश सोशियोलाजिकल सोसायटी के अध्यक्ष प्रो. अरविंद जोशी, कार्यक्रम समन्वयक प्रो. एल.एस. गजपाल, प्रो. मंजु छापड़िया प्रो. कालीनाथ झा, आयोजन सचिव प्रो. ज्योत्सना पाण्डेय, डा कविता कोसरिया, प्रो. एस. गिरोलकर, प्रो. महेश शुक्ला, प्रो. सुनीता सत्संगी, प्रो. साधना खरे, डॉ. रश्मि कुजूर सहित अनेक प्राध्यापक, शोधार्थीगण एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे।