हिन्दी फिल्मो में पश्चिमी संगीत की शुरुआत करने वाले ओ. पी. नय्यर..🎶
वे चिर युवा थे…वे एक ताजी हवा के झोंके थे, एकदम फ्रेश एयर, किसी ने मानो बंद खिड़की खोली हो.. दरअसल जब लाहौरी नय्यर साहब हिन्दी सिनेमा जगत में आए तो शास्त्रीय संगीत आधारित गीत संगीत ही था, वही तबले, सितार हारमोनियम के साथ प्रस्तुत संगीत..
नय्यर साहब ने इसे बदला और पश्चिम के म्यूजिक, नए प्रयोग और पश्चिम वाद्य यंत्रो का खुल कर प्रयोग.. जैसा की होता है, स्थापित परंपरावादी विरोध करते है, तो नय्यर साहब के साथ भी यहीं हुआ..
आज हम इनके संगीत को हिन्दी सिनेमा के गोल्डन एरा का उम्दा संगीत मानते है, क्लासिक मानते है, पर उस दौर में उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी..
अरे भाई ये तो वेस्ट की नकल है, ऐसे तो हमारा संगीत खत्म हो जायेगा..
पर न तो क्लासिक खत्म हुआ और न ही पश्चिम से प्रभावित नए दौर का संगीत, उस दौर में शास्त्रीय संगीत आधारित संगीत देने वाले दो बड़े नाम पंकज मल्लिक और अनिल बिस्वास और आगे चल कर नौशाद साहब, ये सब भारतीय शास्त्रीय संगीत के पक्षधर रहे और वैसा उम्दा संगीत भी दिया
किन्तु जैसे हम ने उन्हें चिर युवा कहाँ तो वो इसलिए की वो विद्रोह करते है, पुराने स्थापित को चुनौती देते नया संगीत लाने वाले 🎶
नय्यर साहब के इतने बड़े कैरियर में उन्होंने कभी भी लता जी के साथ काम नहीं किया.. उनकी पसंद आशा या गीता थी , और युवा दिल की आवाज़ रफ़ी साहब, जो उनके नई सोच वाले, पश्चिम प्रभावित संगीत के लिए उपयुक्त थी.
कुछ बेहतरीन गाने याद कर रहा हु
ले के पहला पहला प्यार 🎶
उड़े ज़ब ज़ब ज़ुल्फ़े तेरी 🎶
जाने कहां मेरा जिगर गया जी 🎶
और
पुकारता चला हु मै 🎶
बहुत लंबी लिस्ट हो जाएगी साहब
गुरूदत्त साहब के साथ आरपार, मिस्टर एन मिसेज़ 55 या सी आई डी.. बेहतरीन संगीत, वर्ष 1958 का बेस्ट संगीतकार फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला फ़िल्म नया दौर के लिए..
भारतीय टीवी के क्लासिक म्यूजिक शो’ सा रे गा मा’ में सोनू निगम ने उन्हें सम्मान देते हुए अनेक बार जज भी बनाया, जीवन के अंतिम दौर तक सक्रिय रहे, संगीत से जुड़े रहे, ब्लैक वेस्टर्न हेट उनके सर पर हमेशा दिखा
हिन्दी सिनेमा को नया संगीत देने वाले ओ पी नय्यर साहब का संगीत अमर है
आज बस इतना ही, बहुत कुछ लिखा जा सकता है, पर वो कहते है ना
बात निकलेगी तो
बहुत दूर तलक जाएगी..
*संजय अनंत ©*