नई दिल्ली(mediasaheb.com)|। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र दक्षिण-पूर्व एशिया और उससे आगे जाने के लिए भारत का प्राकृतिक प्रवेश द्वार है। वह असम के गुवाहाटी में आयोजित पूर्वोत्तर महोत्सव के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उत्तरी पूर्व क्षेत्र विकास मंत्रालय ने आजादी का अमृत महोत्सव के तहत इसका आयोजन किया था।
राष्ट्रपति ने कहा कि कई पड़ोसी देशों के साथ 5,300 किलोमीटर से अधिक की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र का महत्वपूर्ण सामरिक महत्व है। ईस्ट लुक पॉलिसी (एलईपी) के साथ ही पूर्व में पड़ोसियों के प्रति सुरक्षा केंद्रित दृष्टिकोण ने पूरे क्षेत्र में आर्थिक विकास का लाभ उठाने के लिए आर्थिक मुद्दों को प्राथमिकता देने का मार्ग प्रशस्त किया। वर्ष 2014 में एलईपी को एक्ट ईस्ट पॉलिसी (एईपी) में अपग्रेड कर दिया गया था। इससे नाटकीय बदलाव हुआ और पूर्वोत्तर क्षेत्र की संभावित भूमिका में महत्वपूर्ण बदलाव दिखा।
राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें आजादी का अमृत महोत्सव के तहत आयोजित पूर्वोत्तर महोत्सव के समापन समारोह में भाग लेकर प्रसन्नता हो रही है। उन्होंने इसमें उत्साह के साथ भाग लेने के लिए केंद्रीय उत्तरी पूर्व क्षेत्र विकास मंत्री, सभी पूर्वोत्तर राज्यों के राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ इस क्षेत्र के लोगों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि ‘हम किसी से कम नहीं’ की उनकी भावना काफी सरहनीय है।
राष्ट्रपति ने कहा कि देश जब स्वतंत्रता आंदोलन का जश्न मनाता है तो नागरिक न केवल अपने महान नेताओं की वीरता और देशभक्ति को याद करते हैं बल्कि उन कम-चर्चित या भूले-बिसरे लोगों को भी याद करते हैं जिनके बलिदान के बिना यह एक जन आंदोलन नहीं बन सकता था। हमें इस बात पर गर्व है कि देश के कोने-कोने में इस तरह की भागीदारी देखी गई। भारत माता को विदेशी शासन की बेड़ियों से मुक्त देखने के लिए हर भारतीय तरस रहा था। आजादी के संघर्ष में शामिल होने के मोर्चे पर पूर्वोत्तर क्षेत्र किसी से पीछे नहीं था।
राष्ट्रपति ने कहा कि जब हम आजादी के 75वें वर्ष को मनाते हैं, जब हम अपने स्वतंत्रता आंदोलन के शानदार प्रसंगों को याद करते हैं, जब हम अपने महान नेताओं के जीवन और उनके कार्यों के बारे में सोचते हैं, तो हम ऐसा इसलिए करते हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि आज हम उनके सपनों की तुलना में कहां खड़े हैं। हम उनके दृष्टिकोण के बारे में अधिक जानने और बेहतर कल के निर्माण के लिए उनके संघर्षों से प्रेरित होने के लिए ऐसा करते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि जब हमारे देश ने आजादी हासिल की थी तो पूर्वोत्तर क्षेत्र आज की तुलना में काफी अलग था। शुरू में इस क्षेत्र को भारत के विभाजन के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा था क्योंकि यह अचानक संचार, शिक्षा और व्यापार एवं वाणिज्य के लिए ढाका और कोलकाता जैसे प्रमुख केंद्रों से कट गया था। पूर्वोत्तर क्षेत्र को देश के बाकी हिस्सों को जोड़ने वाला एकमात्र गलियारा पश्चिम बंगाल के उत्तर में भूमि की एक संकरी पट्टी थी जिससे इस क्षेत्र में विकास कार्यों को आगे बढाना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया। फिर भी हमने भौगोलिक चुनौतियों से निपटने के लिए लगन से काम किया। पिछले 75 वर्षों के दौरान पूर्वोत्तर ने विभिन्न मानकों पर महत्वपूर्ण प्रगति की है।
राष्ट्रपति ने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में अपार शक्तियां अंतर्निहित हैं। पर्यटन, बागवानी, हथकरघा और खेल के मामले में इसकी पेशकश अक्सर अनोखी होती है। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों को औद्योगिक रूप से उन्नत राज्यों के बराबर बनाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि यहां अधिक रोजगार सृजित हो सके। इस जरूरत का ध्यान में रखते हुए सरकार राज्यों के साथ मिलकर काम कर रही है ताकि कारोबारी सुगमता मानकों में सुधार लाया जा सके और पूर्वोत्तर में निजी निवेश का प्रवाह बढाया जा सके।
जलवायु परिवर्तन को मानव जाति के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि पूर्वोत्तर की समृद्ध पारिस्थितिकी विरासत को संरक्षित करने के लिए आने वाले वर्षों में सावधानीपूर्वक योजना बनाने और प्रयास करने की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र हिमालयी और इंडो-बर्मा जैव-विविधता हॉटस्पॉट का हिस्सा है जो दुनिया के ऐसे 25 हॉटस्पॉट में से दो हैं। इसलिए, इस क्षेत्र के विकास में प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन, पर्यावरण के अनुकूल औद्योगिक एवं बुनियादी ढांचे के विकास पर गौर करने के साथ-साथ सतत खपत पैटर्न के लिए उपयुक्त रणनीतियों को एकीकृत करना चाहिए।