बिलासपुर (mediasaheb.com)| आप को अपने महान कवि होने का भ्रम हो सकता है किन्तु *वन्दे मातरम* जैसी रचना का जन्म कवि के ह्रदय में परम कृपा से होता है, उनकी कुल देवी की कृपा से,ये अद्भुत रचना उनकी कलम से मानो स्वयं प्रस्फुटित हुई सब से आश्चर्य की बात.. बंकीम बाबू को यह पता था की ये रचना कालजयी होगी, उन्होंने अपनी बहन से कहां था एक दिन पूरा देश इस गीत पर झूमेगा.. और उनकी ये बात सच साबित हुई.. ये गीत स्वतंत्रता आंदोलन का, हमारे वीर क्रांति बलिदानियों का बीज मन्त्र बन गया.. इस गीत की विशेषता है , यह गीत अंतर मन में विशुद्ध बलिदान का भाव, देश प्रेम का भाव जादुई ढंग से जगाता है देशभक्ति के और भी गीत लिखें गए किन्तु *वन्दे मातरम* जैसी लोकप्रियता किसी और गीत को नहीं मिली बंकिम चंद्र ने 1874 में देशभक्ति का भाव जगाने वाले इस गीत वंदे मातरम की रचना की थी, इस रचना के पीछे एक रोचक कहानी है, जानकारी के अनुसार, अंग्रेजी हुक्मरानों ने इंग्लैंड की महारानी के सम्मान वाले गीत- गॉड! सेव द क्वीन को हर कार्यक्रम में गाना अनिवार्य कर दिया था, इस से बंकिम चंद्र समेत कई देशवासी आहत हुए थे, इससे जवाब में उन्होंने 1874 में वंदे मातरम शीर्षक से एक गीत की रचना की।
इस गीत के मुख्य भाव में भारत भूमि को माता कहकर संबोधित किया गया था,यह गीत बाद में उनके 1882 में आए उपन्यास *आनंदमठ* में भी शामिल किया गया था ।ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया। वन्देमातरम गीत की धुन स्वयं गुरुदेव रविंद्रनाथ ठाकुर ने तैयार की थी.. अनेक कालजयी उपन्यास, कथा, गीत उनकी लेखनी लिखें गए राष्ट्रीय नव जागरण के पितामह को शत् शत् नमन *संजय अनंत ©*