बिलासपुर (mediasaheb.com)| अब जाने की ज़िद न करो … बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी.. बात ये है की बेग़म साहिबा मौसिकी के कद्रदानो मे बहुत मकबूल थी, पर मुल्ला मौलवी की नज़र मे एक बेपर्दा, गाने वाली और ऊपर से मर्दो की महफिल मे भी बिना किसी तकल्लुफ के सिगरेट पीने वाली, और अपनी तन्हाइयों मे बैचैन होने पर शराब….अब कोई मोमिन कैसे कहे की मोहतरमा आप को जन्नत नसीब हो… ख़ैर इन मज़हबी ख्यालो से दूर, बेग़म अख्तर ने गज़लो ठुमरी, दादरा , गीत का जो बेशकीमती खज़ाना, इस जहाँ मे छोड़ा है, उस के लिए हर क्लासिक संगीत का चाहने वाला उनके लिए दुआ ही करेगा।
मशहूर शायर कैफी आजमी ने एक बार बेगम अख्तर की गजल गायकी की तारीफ में कहा था कि ‘गजल के दो मायने होते हैं. पहला गजल और दूसरा बेगम अख्तर’. उनके लिए गायकी और उसका ताउम्र रियाज़ ही सब कुछ था.. सुनिए वो गा रही है.. ए महोब्बत तेरे हाल पे रोना आया.. अब आप हिंदुस्ता मे हो या महोम्मद अली जिन्ना के पाकिस्तान मे, इस से कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता, चाहने वाले आज़ भी वाह वाह करते है।
एक बार सफऱ कर रही थी ट्रेन मे, सिगरेट की तलब हुई तो, गार्ड को बुलवाया और उस ज़माने मे सौ का नोट दिया, ज़ब गार्ड ने उनके पसंदीदा ब्रांड की सिगरेट उनके लिए मंगवाई, तब ट्रेन आगे बढ़ी, ख़ैर बेग़म से जुड़े अनेक किस्से हम सुनते आये है,बेगम अख्तर की लोकप्रियता के चलते उन्हें फिल्मों में काम करने, ग़ज़ल गायकी ऑफर भी मिलने लगे। 7 अक्टूबर के दिन वो इस दुनिया मे आई और 30 अक्टूबर 1974 को ये जहाँ हमेशा के लिए छोड़ गयी।
नई पीढ़ी में हिंदुस्तान में अधिकतर लोगो ने जगजीत सिंह, पंकज उदास या पाकिस्तान के गुलाम अली को ही सुना हैं, तो ज़नाब यदि गज़लो से आप को वाकई महोब्बत हैं, तो हमारी गुजारिश हैं आप बेगम अख्तर को सुनिए..
बेगम अख्तर ने गालिब, मोमिन, फैज अहमद फैज, कैफी आजमी, शकील बंदायूनी जैसे दिग्गज शायरों के कलाम गाए और इन्हे घर-घर में पहचान दिलाई, बेगम अख्तर की लोकप्रियता के चलते उन्हें फिल्मों में काम करने, ग़ज़ल गायकी ऑफर भी मिलने लगे… ग़ज़ल कभी कोठो मे सुनी जाती थी, नवाबो, ज़मींदारों के लिए उनकी महफ़िलो में गाया जाता था, बेग़म अख्तर ने उसे आम इंसान तक पहुंचाया, शायद यहीं उनका सब से बड़ा योगदान है, भारतीय संगीत को समृद्ध करने में..