रायपुर (mediasaheb.com)| महाभारत युद्ध की तैयारियां पूरी हो चुकी थीं। कुरुक्षेत्र में कौरव और पांडव पक्ष की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं। संख्या और शक्ति के हिसाब से कौरवों की सेना ज्यादा अच्छी दिख रही थी। जब अर्जुन ने कौरव पक्ष में अपने परिवार, कुटुंब के लोगों को देखा तो वे भ्रमित हो गए। अर्जुन ने अपने सारथी यानी श्रीकृष्ण से रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले जाने के लिए कहा। श्रीकृष्ण रथ को युद्ध मैदान के बीच में ले गए। वहां पहुंचकर अर्जुन ने भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य जैसे योद्धाओं को देखा। इन सभी को देखकर अर्जुन ने युद्ध करने का विचार ही छोड़ दिया और अपने धनुष-बाण नीचे रख दिए। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि मेरे कुटुंब के सभी लोग मेरे सामने खड़े हैं, मैं उनसे युद्ध नहीं कर सकता। श्रीकृष्ण समझ गए कि अर्जुन भ्रम में फंस गए हैं। उस समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। भगवान ने समझाया कि जब लक्ष्य बड़ा हो तो सभी बातें चल सकती हैं, लेकिन भ्रम नहीं चल सकता है। तुम्हें अपने सारे भ्रम छोड़कर सिर्फ अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए।
जब हम अपने काम अधूरे मन और भ्रम के साथ करते हैं तो सफलता नहीं मिलती है। सफलता चाहते हैं तो सभी भ्रम दूर करते हुए, अपने काम पूरे मन से और एकाग्रता के साथ करना चाहिए। (स्त्रोत–शाश्वत राष्ट्रबोध)