मैट्स यूनिवर्सिटी, हिन्दी विभाग के अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार में विषय विशेषज्ञों ने कहा
रायपुर(mediasaheb.com) । विश्व में सद्भावना, शांति और सहयोग के विकास में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षा के माध्यम से ही हम विश्व बंधुत्व की भावना का विकास कर सकते हैं और विश्व में शांति की स्थापना कर सकते हैं। यह बातें मैट्स यूनिवर्सिटी रायपुर के हिन्दी विभाग द्वारा संचालित महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्व शांति केंद्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना में शिक्षा का योगदान विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार में विषय विशेषज्ञों ने कहीं।
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्पाइल दर्पण ओस्लो, नार्वे के संपादक, कवि व नाटककार सुरेश चंद्र शुक्ल ’शरद आलोक’ ने वैश्विक सद्भावना के विकास में शिक्षा को महत्वपूर्ण माध्यम बताया। उन्होंने नार्वे में दी जाने वाली शिक्षा पद्धति की जानकारी देते हुए शिक्षा में संवाद की आवश्यकता को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि नार्वेें में शिक्षा के माध्यम से बच्चों को विश्व के सभी धर्मों, संस्कृति, राजनीति आदि के बारे में बताया जाता है। उन्होंने नार्वे की अनेक घटनाओं का जिक्र करते हुए शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में ऑनलाइन उपस्थित भारत सरकार की संस्कृति मंत्रालय के हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. हरिसिंह पाल ने कहा कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति के मन के अंधकार को दूर कर सके। व्यक्ति के अंतर्मन का अज्ञान दूर नहीं होता तो वह शिक्षा किसी काम की नहीं। विशिष्टि अतिथि आकाशवाणी के सेवानिवृत्त सहायक निदेशक श्री अरुण कुमार पासवान ने कहा कि शिक्षा के माध्यम से ही वैश्विक शांति और सद्भावना की स्थापना की जा सकती है। शिक्षा की सबसे बड़ी उपलब्धि है नैतिकता का विकास और ज्ञान का आदान-प्रदान। शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति के विचार सर्वे भवन्तु सुखीनः हो जाते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के अध्यक्ष एवं लोकसेवा महाविद्यालय, महाराष्ट्र के पूर्व प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन शेख ने कहा कि शिक्षा देश और समाज की रीढ़ है। शिक्षा से समझदारी आती है। भारत प्रचीन काल से ही शिक्षा के प्रति जागरुक रहा है। आज विश्व के सम्मुख एक बहुत बड़ी चुनौती यह है कि आज का वैश्विक मानव साथ-साथ रहना नहीं चाहता। वैश्विक स्तर पर कई अरब लोग एक-दूसरे के पड़ोस में आ गये हैं परंतु दुर्भाग्य है कि वे पड़ोसी नहीं बन पाये हैं। इसलिए वैश्विक स्तर की समस्याओं के निराकरण के लिए शिक्षा और संस्कृति का समन्वय उपयोगी हो सकता है। भारत की नई शिक्षा नीति वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण सिद्ध होगी।
इसके पूर्व मैट्स यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. के.पी. यादव ने स्वागत भाषण में कहा कि अंतर्राष्ट्रीय सदभावना को विकसित करने के लिए केवल शिक्षा ही एक महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली साधन है। दार्शनिक एवं शिक्षाशास्त्रियों ने भी केवल शिक्षा को ही एक महत्वपूर्ण साधना माना है, इसलिए सभी ने शिक्षा का एक उदेश्य अंतर्राष्ट्रीय सदभावना का विकास करना भी निर्धारित किया है। आज आवश्यकता इस बात की है कि संकुचित राष्ट्रीयता की अपेक्षा अंतर्राष्ट्रीय सदभावना का विकास किया जाये जिससे संसार में समस्त नागरिकों में परस्पर दोष, घ्रणा ईर्ष्या के स्थान पर प्रेम सहानुभूति, उदारता तथा सदभावना विकसित हो और संसार में सुख, शान्ति तथा स्वतंत्रता एवं समानता बनी रहे। मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ, रेशमा अंसारी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना स्थापित करने के लिए मानव में संकुचित दृष्टिकोण को हटाना चाहिए और उनके विचारों में दया, सहानुभूति, प्रेम जैसे तत्वों का विकास किये जाने का हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुनीता तिवारी ने किया। इस अवसर पर हिन्दी विभाग के सह प्राध्यापक डॉ. कमलेश गोगिया, डॉ. रमणी चंद्राकर, प्रियंका गोस्वामी सहित शोधार्थी व विद्यार्थीगण उपस्थित थे।