मृत्यु उपरांत क्रियाकांडों के वर्तमान परिवेश में बदलाव की आवश्यकता
रायपुर (mediasaheb.com)| जन्म व मृत्यु शास्वत सत्य है , और इनके बीच की जीवनशैली में समय समय पर बदलाव होते रहना चाहिए । हमारे जीवन में सामाजिक रीतिरिवाजों का महत्वपूर्ण स्थान है । सामाजिक जीवन में मृत्यु उपरांत अनेक रीतिरिवाज प्रचलित हैं । कालान्तर के रिवाजों में अनेक ने वर्तमान समय में कुरीतियों का रूप धारण कर लिया है , जिनमें बदलाव जरूरी है । जैन संवेदना ट्रस्ट के महेन्द्र कोचर व विजय चोपड़ा ने कहा कि मृतक के अंतिम संस्कार उपरांत अनेक प्रचलित रीति रिवाज़ हैं जो की बोझिल और आज के समय में अप्रासंगिक हैं , जैसे 13 दिन की शोक बैठक , लम्बे शांतिमिलन , सिखबाड़ी व मृत्यु भोज इत्यादि । अनेक शोकाकुल परिवारों , रिश्तेदारों व परिचितों समाजजनों से जैन संवेदना ट्रस्ट ने विस्तृत चर्चा व विचारविमर्श कर गाईड लाईन जारी की है ।
कोचर व चोपड़ा ने आगे बताया कि शान्ति मिलन हेतु समय सीमा 48 मिनट निर्धारित की गई है । वर्तमान में देखा गया है कि शोक सभा में अनेक प्रचलित गीत , बच्चों की अभिव्यक्ति और श्रद्धांजलि वक्तव्यों व टोपी बदलने के रिवाज में कुल मिलाकर लगभग 2 से 2 . 30 घंटे का समय लग रहा है । और ज्यादातर शान्ति मिलन के कार्यक्रम प्रातः 10 . 30 बजे होते हैं जोकि व्यवसाय का महत्वपूर्ण समय होता है । व्यवसायिक व श्रम समय के नुकसान , सर्व समाज की सुविधा व समय की उपयोगिता के मद्देनजर शांतिमिलन शोकसभा को दोपहर 3 से 3 . 48 बजे तक करने का निर्णय लिया गया है ।
शांतिमिलन में मृतक का संक्षिप्त जीवन परिचय , लघु शांति स्तोत्र , मंगल पाठ व परिजन द्वारा आभार ही होगा । सभी प्रकार के शोक गीतों , बच्चों की अभिव्यक्ति पर रोक लगाई गई है । टोपी पल्ला बदलना आदि सामाजिक रिवाज श्रद्धांजलि पश्चात पारिवारिक लोगों के मध्य अथवा निवास पर किया जावेगा । पुष्प की पंखुड़ियों के बदले मोटे अनाज यथा अक्षत , बाजरा आदि से श्रद्धांजलि अर्पित की जावेगी , जिसका उपयोग पक्षियों के आहार रूप में किया जा सके । शोक मिलन के अवसर पर परिवार द्वारा सीख मिठाई व अन्य सामग्री का थैला देना प्रतिबंधित किया गया है । केवल घर की बेटियों को दिया जा सकता है ।
अंतिम संस्कार पश्चात केवल 2 – 3 दिन ही निवास पर शोक बैठक रखने का निर्णय लिया गया है । सूतक क्रिया विधि परिवार के मध्य उचित समयानुसार की जा सकती है । जैन संवेदना ट्रस्ट के महेन्द्र कोचर व विजय चोपड़ा ने बताया कि मृत्यु उपरांत होने वाले क्रियाकांडों के सभी पहलुओं पर समाज में अनेक लोगों से विचारविमर्श किया गया लोगों ने जैन संवेदना ट्रस्ट के मुहिम की सराहना की व सकारात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है ।