बिलासपुर (mediasaheb.com)| कलात्मक ,अतीत को सजीव करती, इंदिरा जी को पुनः जीवित करती यह फिल्म कंगना रनौत के उत्कृष्ट अभिनय के लिए कालजयी मानी जाएगी,भारत में बने श्रेष्ठ सिनेमा पर जब भी भविष्य में लिखा जाएगा या उसका स्मरण किया जाएगा तो यह फिल्म निश्चित ही उन में एक होगी कंगना रनौत इन दिनों सत्ता के निकट है , इसलिए फिल्म देखने के पूर्व यह कल्पना थी या आप कह सकते है मन में एक तरह का पूर्वाग्रह(prejudice) था की शायद यह फिल्म इंदिरा जी के साथ न्याय न करे किन्तु यह फिल्म, इंदिरा जी के जीवन श्वेत-श्याम दोनों पक्षों को दर्शकों के समक्ष यथावत रखती है।
“इंदिरा इज इंडिया” & “इंडियाइज इंडिया” हम ने वो दौर देखा है ,भले ही आयु कम थी , तो साहब ऐसा है कि यह फिल्म आप को अतीत की यात्रा में ले जाती है , सब कुछ उस दौर का… आप इंदिरा जी सहमत हो या असहमत किन्तु कद बहुत बड़ा था , अद्भुत आत्मविश्वास वाली महिला, बड़े निर्णय लेने की, कड़े निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता.. यह फिल्म इंदिरा जी पर बनी है , इसलिए पूरी फिल्म कंगना रनौत जो इंदिरा जी के रोल में है ,उनके आस-पास ही केंद्रित रहती है ,फिल्म में पंडित नेहरू भी है , अटल बिहारी (श्रेयस तलपडे)भी है, जार्ज फर्नांडिस है, जगजीवन राम के चरित्र को जीवंत किया है स्व.सतीश कौशिक ने और अनुपम खेर है लोकनायक जयप्रकाश नारायण के रूप में , लाजवाब अभिनय सभी ने बहुत अच्छा अभिनय किया है , फिल्म की एडिटिंग जबरदस्त है , आप को कही भी उबाऊ नहीं लगती , आप इंदिरा जी के साथ सीधे पी एम ओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंच जाते है, हम ने इंदिरा जो साक्षात और टीवी पर देखा है , इसलिए हम निःसंकोच कहेंगे , कंगना ने बहुत परिश्रम किया है , वो परदे पर इंदिरा जी ही लगी है सन1971 में पाकिस्तान को हराने वाली, अमेरिका नहीं डरने वाली , बांग्लादेश बनाने वाली इंदिरा हमें परदे पर महानायिका लगती है तो अपने स्वार्थ , अभिमान और पुत्र मोह के चलते सत्ता लोभ में आपात काल का निर्णय उनके राजनैतिक जीवन की कालिमा को उजागर करता है |
संजय गांधी (विकास नायर)को फिल्म में एक बिगड़ैल, गुस्सैल अपनी मनमानी करने वाला बेटा दिखाया गया है , बल पूर्वक नसबंदी , प्रेस पर , सरकारी दूरदर्शन व आकाशवाणी पर कड़ा नियंत्रण सब कुछ बड़ा ही सजीव लगता है , उस दशक के निर्धन भारत के मुद्दों को भी सामने रखता है , जब देश की बड़ी आबादी अनाज के लिए तरसती थी, उद्वेलित युवा , हर तरफ निराशा, बदहाली, और इन सब के मध्य लोकनायक जयप्रकाश जी का संपूर्ण क्रांति का नारा और उस दौर के नारे पर आधारित गीत ‘सिंहासन खाली करो’ गाने के बोल मनोज मुंतशिर ने लिखे हैं , फिल्मांकन जबरदस्त है।
पहली बार केंद्र में विपक्ष की सरकार का बनना और उसका असफल होना और पुनः इंदिरा जी की वापसी.. आपातकाल ही फिल्म का केंद्र बिंदु है इसलिए उसे ही फिल्माया गया है , उस दौर को पुनः जीवित करने का सफल प्रयास फिल्म में बंग बंधु भी है ,अमेरिका के तत्कालीन प्रेसिडेंट भी है, एक बड़े कैनवास पर बनी पेंटिंग की तरह है जिस में इंदिरा जी का पूरा राजनैतिक जीवन यथावत रखने प्रयास किया गया है ।
फिल्म में एक भावुक कर देने वाला देशप्रेम से ओतप्रोत गीत भी है, जो बैकग्राउंड में चलता है ,अटल जी और इंदिरा के मध्य का कूटनीतिक वार्तालाप भी बहुत प्रभावशाली है।
इंदिरा जी का व्यक्तित्व बहुत विशाल था , ये फिल्म हमें उसकी एक झलक दिखाती है, उनकी शहादत पर फिल्म समाप्त होती है, आप जब थियेटर से निकलेंगे तो आप के दिमाग में इंदिरा जी यानी परदे की कंगना ही रहेगी जिस पीढ़ी ने इंदिरा जी को नहीं देखा है , केवल उनके बारे में सुना है, उनके लिए यह फिल्म , देश के बीते समय को समझने का अवसर भी है ।तो हमारी ओर से फिल्म को दस में से नौ सपरिवार जरूर देखिए 👍 डॉ.संजय अनंत ©