बिलासपुर (mediasaheb.com)| सागर की गहराई से…. ये एक बहुत ही खूबसूरती से पेश गया हिन्दी गज़लो का संग्रह है, चुंकि इसके रचनाकर्ता स्वयं खुद प्रकाशक है, इसलिए पुस्तक को देख कर ही मन प्रसन्न हो जाता है, पुस्तक के मुख्य पृष्ठ की डिज़ाइन, गज़लो को पेश करने का अंदाज़ बेहतरीन है
आप एक स्थापित कवि, शायर है, कुल 36 पुस्तक हिन्दी मे और 23 पंजाबी मे.. देश की अनेक संस्थाए उन्हें सम्मानित कर चुकी है
उनका गृह राज्य पंजाब है, पंजाब की भूमि , वहाँ की सोच सूफियाना है, बाबा नानक का दर्शन पंजाब की सोच में समझ में समाहित है, नानक के राम या हरि निर्गुण है, वे आकाल पुरख है, अविनाशी है नित्य है, उनका कोई स्वरुप नहीं
पंजाब के हिन्दू या मुस्लिम कवि या शायर हो ये ‘रब’ और उस से रूहानियत इश्क आप को देखने मिलेगा चाहे वो हमारे पंजाब मे हो या सीमा पार का पंजाब, संजय कुमार सागर सूद जी इसी परंपरा से आते है, बाबा बुल्ले शाह, बाबा नानक वाली सोच के..
*फूल हर मज़हब के लेकर ए खुदा*
*एक माला मे पिरोना चाहता हूँ*
ये दर्शन वही है जो कश्मीर, पंजाब और सिंध मे देखने मिलेगा
इनकी गज़लो मे जिंदगी का सच है, महोब्बत का पैगाम है, जिंदगी को सच का आइना दिखाने की कोशिश है
समाज मे आधुनिकता के चलते आए बदलाव ने, अमेरिका की तरह हमारे देश मे भी परिवार के बिखरने का सिलसिला देखने मिल रहा है, बुज़ुर्ग हो, माता पिता हो, वो अब परिवार का हिस्सा नहीं रहे, वे या तो जिम्मेदारी है या बोझ, शायर के मन मे ज़माने के इस कड़वे सच की पीड़ा अंतर समाई है, उसकी लेखनी इसके दर्द को बयां करती है, वे कहते है..
*न मंदिर को बनाना तुम*
*न कोई देवता रखना*
*बुज़ुर्गो के लिए लेकिन*
*जगह घर मे रखना*
ये बात हर उस नौकरी पेशा नौजवान के लिए है जो बड़े शहरों मे अपने ख्याब पूरे करने आया है, उसे आगे बढ़ना है, धन दौलत रुतबा कमाना है,किन्तु अपने गांव , कस्बे मे छूटे माता पिता उसे याद नहीं
ये वो पंक्तिया है जिस ने शायर को हमेशा के लिए अमर कर दिया, क्यों की जब भी कोई इन दो पंक्तियों को पढ़ेगा तो वो जरूर इसके लिखने वाले को याद करेगा..
सुफियों का कहना है
*माँ के कदमो के नीचे जन्नत है*
हम सनातनी तो उस रब को भी माँ के रूप मे पूजते है, पंजाब मे भी चाहे वो वैष्णव देवी हो, माँ ज्वाला वाली अटूट श्रद्धा है
शायर स्वयं अपने माता पिता के प्रति आगाध श्रद्धा रखता है, ये उस के ऊँचे संस्कार को प्रतिबिम्बित करता है..
*नेमतें सारे जहाँ की*
*खुद ब खुद मिल जाएगी*
*माँ के कदमो मे भी*
*कभी तुम सर*
*झुका कर देख लो*
पिछले दशकों मे जो देश मे आर्थिक प्रगति हुई है, उद्योग व्यापार बढ़ा है, उसका एक दुःखद पहलू भी है.. हमारे गांव वीरान हो रहे है और शहर आबाद
चाहे मज़दूर वर्ग हो, किसान की संताने हो, मध्यमवर्ग सब बड़े शहरों की ओर भाग रहा है, अपने सपने साकार करने
इसकी पीड़ा हम सागर सूद संजय जी की भावनाओं मे देख सकते है, इस पीड़ा को उन्होंने शब्दशः अपनी कलम से कागज़ पर उतारा है.. देखिए और अनुभूत करिये उस पीड़ा को..
*शख्स जो आया था*
*मेरे गांव से*
*याद मिट्टी की*
*वो फिर करवा गया*
ऐसा नहीं है की शायर के जज़्बात केवल किताबी है, उसे समाज की फ़िक्र भी है, बेटियों के साथ जो गलत होता है, चाहे वो बेटियों की कम होती संख्या भ्रूण हत्या से या बदसूलुकी , शायर के मन मे टीस पैदा करती है, उसे कुछ लिखने उकसाती है और फिर वो लिखता है
*उस घड़ी ही मै कहूंगा*
*मुल्क अब आज़ाद है*
*ज़ब यहाँ महफूज़ होंगी*
*हर किसी की बेटियां*
ज़िन्दगी का अपना रास्ता है, हमारी सोच समझ सपने कभी इसके साथ होते है तो कभी एकदम जुदा.. दुनियां की मुश्किलों से शायर हारा नहीं है..
पर थोड़ी राहत चाहता है, मानो बारिश मे भीगा थोड़ी सी तपिश चाहता हो, देखिए कितनी खूबसूरती से जज़्बात बयां कर रहा है..
*इक़ महोब्बत का बिछोना चाहता हूं*
*चैन से अब मै भी सोना चाहता हूं*
आज के हिन्दी काव्य जगत की भाषा, नवीन प्रयोग उसे आम जन से दूर ले गए..
फ़िल्म मे, टीवी उद्योग मे अच्छी कथा के साथ साथ अच्छी कविता, शायरी का आभाव भी झलकता है, बेहूदे तो कभी अश्लील द्वि अर्थी गाने..
ऐसे में सीधी सरल भाषा मे लिखा संजय कुमार ‘सागर’ जी का साहित्य अमृत तुल्य है , इनकी शायरी आसानी से आम जन समझ सकता है, जज़्बात साफ है , आम आदमी से सरोकार रखने वाले विषय और सीधे दिल को छूने वाली शायरी..
यदि आप गज़ल प्रेमी है, आप के अंदर एक कवि ह्रदय धड़कता है तो ये *सागर की गहराई से* आप के लिए ही है
हम भविष्य मे भी उनकी कलम से इतने गहरे, संवेदनशील रचना धर्मिता की आशा करते है, हिन्दी इस प्रकार के सृजन से समृद्ध होगी और आम जन से जुड़ेगी
*संजय अनंत ©*
पुस्तक : सागर की गहराई से
लेखक : ‘सागर’ सूद संजय
प्रकाशक : साहित्य कलश पब्लिकेशन, पटियाला
समीक्षक: संजय अनंत