रायपुर(mediasaheb.com)| प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि कांग्रेस का 85 वां अधिवेशन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में होने वाला है यह क्षण कांग्रेस के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के लिये भी ऐतिहासिक और गौरव पूर्व है। कांग्रेस देश का अकेला राजनैतिक संगठन है जिसका गठन आजादी के पहले हुआ था जिसने देश की आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया। कांग्रेस का पहला अधिवेशन स्थापना के तत्काल बाद 1885 में मुंबई में हुआ जिसमें व्योमेशचंद्र बेनर्जी अध्यक्ष बने। कांग्रेस के 40 वें अधिवेशन 1924 में बेलगांव महात्मा गांधी अध्यक्ष बने थे। 46 वे अधिवेशन में 1929 के लाहौर अधिवेशन में पं. ज्वाहर लाल नेहरू अध्यक्ष बने थे तथा कांग्रेस के 52 वें अधिवेशन 1938 में हरिपुर तथा 1939 को त्रिपुरी मध्यप्रदेश के अधिवेशन में नेताजी सुभाषचंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष बने। रायपुर के पहले दिल्ली में कांग्रेस का 84 वां अधिवेशन 2018 में हुआ था।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि 28 दिसंबर 1885 को कुछ बुद्धिजीवियों ने भारत के लोगों की जरूरतों उनकी समस्याओं के विमर्श के लिए एक मंच की जरूरत महसूस की जो तत्कालीन हुक्मरानों के समक्ष भारत की जनता की आवाज बन सके सरकार के द्वारा बनाई जा रही नीतियों में भारतीयों की जरूरतों को स्थान दिलवाया जा सके।इन्ही उद्देश्यों को ले कर 17 सदस्यों ने कांग्रेस की स्थापना की जिनमे एओ ह्यूम, दादाभाई नौरोजी, व्योमेश चन्द्र बेनर्जी, दिनशा वाचा प्रमुख थे। कांग्रेस का पहला अधिवेशन व्योमेश चन्द्र बेनर्जी की अध्यक्षता में मुंबई में हुआ। भारतीयों की समस्याओं को उठाने उद्देश्य के लिए गठित की गई कांग्रेस पार्टी बहुत जल्दी ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की मुखर विरोधी बन गयी। गठन से ले कर भारत की आजादी तक कांग्रेस के लगभग 15 मिलियन सदस्य बन गए थे।
गुलाम भारत के लोगों में राजनैतिक चेतना जागृत कर उनमें आजाद मुल्क की ललक पैदा करना एक बड़ा कठिन काम था, जब तक लोगो मे आजादी और स्वराज की जरूरत की चेतना जागृत नही होगी अंग्रेजी शासन के खिलाफ कोई भी आंदोलन खड़ा नही हो सकता इस बात को कांग्रेस ने भली भांति समझ लिया था इसीलिए कांग्रेस ने शुरू से ही अपने विरोध के कार्यक्रमो में आम आदमी को जोड़ा और सामूहिक नेतृत्व पर जोर दिया।1915में महात्मा गांधी के भारत आगमन के बाद उन्हें कांग्रेस की अध्यक्षता सौपी गयी 1919 में गांधी जी कांग्रेस के प्रतीक पुरुष बन गए और इसके बाद कांग्रेस ने देश भर में अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ जनांदोलनों को खड़ा करना शुरू किया। छोटे-छोटे विरोध आंदोलनों की श्रृंखला धीरे धीरे राष्ट्रीय आंदोलन में परिवर्तित हो गयी। सविनय अवज्ञा, असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन, पूर्ण स्वराज आंदोलन में परिवर्तित हो कर 15 अगस्त 1947 को आजाद भारत के पूर्ण लक्ष्य को अंततः प्राप्त कर ही लिया।