बिलासपुर, (mediasaheb.com) । प्रसिद्ध समाजसेवी एवं शिक्षाविद् डाॅ. प्रभुदत्त खैरा का सोमवार सुबह लंबी बीमारी के बाद अपोलो अस्पताल में निधन हो गया। उनका जन्म 13 अप्रैल 1928 को हुआ था। उनका अंतिम संस्कार मंगलवार को सुबह 11 बजे मुंगेली जिले के लमनी गांव में किया जाएगा। डाॅ. खैरा पिछले 35 वर्ष से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र अचानकमार के जंगलों के बीच लमनी गांव में आदिवासी बच्चों को शिक्षित कर रहे थे। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में 15 साल तक समाजशास्त्र पढ़ाते रहे हैं। उनका 1983-84 में बिलासपुर आना हुआ था।
इस दौरान वे अचानकमार के जंगल घूमने गए। वहां पर आदिवासी बच्चों को शिक्षा से दूर देखकर उनका मन काफी व्यथित हुआ और उन्होंने वर्तमान मुंगेली जिले के लमनी गांव में ही बसने का फैसला कर लिया। इसके बाद उन्होंने आदिवासी बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने प्रोफ़ेसर की नौकरी छोड़ दी और दिल्ली का ऐशो आराम छोड़कर लमनी के जंगलों में ही आ बसे। पिछले 30 वर्षों आदिवासी बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रहे थे। प्रो. प्रभुदत्त खेड़ा को महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ पर छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा प्रथम महात्मा गांधी स्वरांजलि पुरस्कार से सम्मनित किया गया। 1984 को दिल्ली विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त होने के बाद प्रोफेसर प्रभुदत्त खेड़ा लमनी के इन बैगा आदिवासियों के साथ उनकी ही जीवन शैली अपनाते हुए झोपड़ी बनाकर वहीं निवास कर रहे थे। (हि.स.)