सुकमा, 26 अप्रैल (mediasaheb.com) । बस्तर के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित और हिंसा वाले क्षेत्र में 25 आदिवासियों की घर वापसी हुई है। जो आदिवासी सलवा जूडूम के दौरान फैली हिंसा के बाद डरकर अपना गांव छोड़ चुके थे, वे 15 साल बाद अपनी धरती पर वापस लौटे हैं। वापसी एक नई सुबह की तरह है। सुकमा जिले के मरईगुड़ा में 25 आदिवासी परिवार 15 साल बाद अपने घर लौटे हैं, वे आंध्रप्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के कन्नापुरम गांव में जा बसे थे। 15 साल बाद जब यह परिवार वापस लौटा तो सबसे पहले उन्होंने गांव की जमीन को चूमा और प्रण लिया कि अब जीना मरना यहीं है और किसी भी परिस्थितियों में वे अपना घर नहीं छोड़ेंगे।
गंगा राजू ने बताया कि पंद्रह साल पहले अचानक हम पर हमला हुआ, तब कोई मदद करने वाला नहीं था, कुछ भी समझ नहीं आया तो आंध्र में रिश्तेदार के पास चले गए। उसने वहां मिर्ची के खेतों में काम दिलाया। वहां तकलीफों का सामना करना पड़ता था। दो वक्त की रोटी भी बमुश्किल मिल पाती थी। यहां के हालात ऐसे नहीं थे कि वापसी हो सके, लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं और हम नई उम्मीदों के साथ वापस लौटे हैं। मरईगुड़ा में 15 साल पहले एक रात हमला हुआ। गांव के 70 घरों में आगजनी की गई। लोगों ने सुबह होने से पहले ही गांव छोड़ दिया। जो घर यहां जलाए गए थे वह आज भी वैसे ही खड़े हैं। लौटने वाले परिवारों की बुरी यादें तो ताजा हो गई।
एक परिवार की सदस्य हूंगे कहती है जले हुए घरों को हम ठीक कर लेंगे, पर हमारे दिल में उस रात की तस्वीर बसी है वह कैसे ठीक हो पाएगी। उल्लेखनीय है कि, सलवा जुडुम (शान्ति यात्रा) एक आन्दोलन है जो छत्तीसगढ़ में नक्सली हिंसा के खिलाफ चलाया गया था। आदिवासी और सटे इलाकों में चल रहे सरकार-नक्सल हिंसा में अक्सर आम आदमी भी निशाना बनते आए हैं। कुछ स्थानीय नेताओं ने नक्सली हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाई, जिसमें महेन्द्र कर्मा का नाम प्रमुख है। नक्सलियों के खिलाफ इस आंदोलन को सलवा जुडुम का नाम दिया गया था। 25 मई 2013 को इनके नेता और कांग्रेस के सदस्य महेन्द्र कर्मा की हत्या नक्सलियों ने कर दी थी। (हि.स.)