एमबीबीएस की सीट हासिल करके ही दम लिया
गांव के सरकारी स्कूल में पढ़कर नीट क्वालिफाई करके वाले गरीब किसान के बेटे जागेंद्र की कहानी
भिलाई (media saheb.com)| 12 वीं बोर्ड में जब 69% आए तो मैं बहुत उदास हो गया था। पढ़ाई के अनुरूप अच्छा रिजल्ट नहीं आने पर खूब रोया। एक दिन बड़ी दीदी ने कहा कि क्या हुआ पर्सेंट कम आए, तुम नीट क्वालिफाई करके डॉक्टर बनकर सबके सामने अपनी काबलियित सिद्ध कर सकते हो। सच कहूं उसी दिन पहली बार नीट जैसी कोई परीक्षा होती है ये पता चला और मन में ठान लिया कि अब डॉक्टर बनकर ही गांव लौटूंगा। शुरूआत में एक साल तैयारी के बाद भी असफलता हाथ लगी फिर भी मैंने हार नहीं मानी। दूसरे साल अपनी गलतियों को भुलाकर दोगुना मेहनत किया। फाइनली दो साल ड्रॉप और दूसरे अटेम्ट में नीट क्वालिफाई कर लिया। ये कहानी है बालोद जिले के छोटे से गांव घोंटिया में रहने वाले जागेंद्र कुमार ठाकुर की। जिसने न सिर्फ अपनी मेहनत से उन लोगों को जवाब दिया जो ये सोचते थे कि नीट इसके बस की बात नहीं बल्कि अपनी सफलता से गरीब किसान पिता का मान भी बढ़ा दिया है। जागेंद्र कहते हैं कि दुनिया में हंसने वाले लोग बहुत हैं पर उनकी बातों को किनारा करके सिर्फ खुद पर भरोसा करना चाहिए। लगातार कोशिशों से एक दिन सफलता आपके कदम जरूर चूमती है। बस मेहनत करना मत छोडि़ए।
आठवीं पास किसान पिता बने प्रेरणा
जागेंद्र ने बताया कि उनके गांव और स्कूल में किसी को नीट की परीक्षा के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। सबने यही कहा कि बीएससी कर लो। बड़ी बहन की गाइडलाइन के बाद जब मैंने पिता शालिक राम के सामने कोचिंग का प्रस्ताव रखा तो वो एक बार में ही आगे की पढ़ाई के लिए तैयार हो गए। पापा केवल आठवीं तक ही पढ़े हैं पर वे हमेशा मुझसे कहते हैं कि इंसान चाहे तो अपने मेहनत से भाग्य बदल सकता है। मैंने उनकी बातों से प्रेरणा लेकर अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की। जब एक साल तैयारी के बाद भी मैं नीट का एग्जाम पास नहीं कर पाया तो उन्होंने रिश्तेदारों से पैसा उधार लेकर दोबार मुझे कोचिंग के लिए भिलाई भेजा। ताकि मैं बिना डिप्रेशन में आए अपने सपने को आकार दे सकूं। उनका भरोसा ही था कि मैं नीट क्वालीफाई कर पाया।
एवरेज स्टूडेंट को करना था 90% वाले बच्चों से मुकाबला
जागेंद्र ने बताया कि बड़ी बहन और भिलाई में रहने वाले एक रिश्तेदार की मदद से नीट की तैयारी के लिए सचदेवा कोचिंग में एडमिशन लिया। कोचिंग के पहले ही दिन यहां 90% वाले बच्चों के बीच बैठकर खुद को कमतर आंकने लगा। मन ही मन सोचने लगा कि ये तो बोर्ड के टॉपर्स हैं इनके साथ मैं कैसे कॉम्पीटिशन करूंगा। सचदेवा के टीचर्स ने मेरे इस डर को बेसिक से पढ़ाना शुरू करके मन से भगा दिया। हिंदी मीडियम और गांव के स्कूल सरकारी स्कूल से पढ़ाई के कारण इंग्लिश में दिक्कत होती थी। ऐसे में टीचर्स ने सिलेबस की हिंदी और इंग्लिश दोनों में एक साथ पढ़ाई कराई। जिससे विषय को दोनों ही भाषाओं में समझने में आसानी हुई। जब पहले प्रयास में फेल हो गया तो टीचर्स ने मुझे भरोसा दिलाते हुए कहा कि मैं दूसरे अटेम्ट में जरूर नीट क्लीयर करूंगा। उनकी बात सच साबित हुई। गेस्ट सेशन में डॉ. श्रुति और डॉ. वेद प्रकाश ने जब बताया कि उन्हें भी 12 वीं के बाद ही नीट के बारे में पता चला तो लगा जब वो शून्य से शिखर तक पहुंच सकते हैं तो मैं क्यों नहीं। उनकी बातों को सुनकर आगे बढऩे की प्रेरणा मिली।
चोट से डरकर दौडऩा नहीं छोडऩा है – जैन सर
सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव सर हमारी बीच-बीच में काउंसलिंग करते थे। एक दिन उन्होंने काउंसलिंग सेशन में कहा कि एक रेसर छोटी – छोटी चोट लगने से दौडऩा नहीं छोड़ देता। अगर खिलाड़ी चोट से डर जाएगा तो कभी जीत नहीं पाएगा। उनकी ये बात दिल पर लग गई। मन ही मन सोचने लगा कि क्या हुआ एक बार फेल हो गया हूं अगली बार जरूर पास होऊंगा। काउंसलिंग के दौरान जैन सर हर बच्चे की समस्याओं का चुटकी में हल निकाल देते थे। विषम आर्थिक परिस्थिति को देखते हुए उन्होंने फीस भी कम कर दी। जिससे परिवार को काफी मदद मिली। राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस के बाद आगे मैं न्यूरोलॉजिस्ट बनकर प्रदेश के लोगों की सेवा करना चाहता हूं।