सुनवाई के अंतिम दिन खूब चला कोर्टरूम में ड्रामा, मुस्लिम पक्ष के वकील ने फाड़ा नक्शा
नई दिल्ली, (mediasaheb.com)। अयोध्या मामले पर बुधवार को सुनवाई पूरी हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। उम्मीद है कि एक महीने के भीतर फैसला आ जाएगा। आज सुनवाई शुरू होते ही एक वकील ने कोर्ट से कहा कि उन्हें दलीलें रखने के लिए एक घंटे का समय चाहिए, तब चीफ जस्टिस ने कहा कि आज हर हाल में दलीलें खत्म होंगी, ‘एनफ इज एनफ’।
सुन्नी वक्फ़ बोर्ड की अपील वापस लेने पर कोर्ट में नहीं हुई कोई चर्चा
सुन्नी वक्फ़ बोर्ड की अपील वापस लेने के मामले में कोर्ट में कोई चर्चा नहीं हुई। रामलला विराजमान के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि कब्जे का दावा करने से पहले यह साफ होना चाहिए कि क्या कब्जा कानूनी है और क्या यह प्रतिकूल है लेकिन मुस्लिम पक्षकारों की विवादित जमीन के कब्जे को लेकर दी गईं दलीलें स्पष्ट नहीं हैं। वैद्यनाथन ने कहा कि इस बात के कुछ साक्ष्य हैं कि 1857 से 1934 के बीच मुस्लिम पक्ष विवादित स्थल पर शुक्रवार को नमाज पढ़ता था लेकिन 1934 के बाद नमाज पढ़ने का कोई साक्ष्य नहीं है। दूसरी तरफ हिन्दू हमेशा पूजा करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि किसी दूसरी जगह को नहीं कहा जा सकता लेकिन मुस्लिम पक्ष कहीं भी नमाज पढ़ सकता है।
सेवादार होने के असली हकदार पर निर्वाणी और निर्मोही अखाड़ा भिड़े वैद्यनाथन के बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने गोपाल सिंह विशारद के वकील रंजीत कुमार से पूछा कि आप कल कह रहे थे कि आप दो मिनट का समय लेंगे, तब रंजीत कुमार ने कहा कि ये मैंने कल के लिए कहा था लेकिन आज नया दिन है, हमें कुछ ज्यादा समय चाहिए। रंजीत कुमार ने कहा कि मैं वहां काफी पहले से पूजा करता रहा हूं। मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज की जानी चाहिए। रंजीत कुमार के बाद निर्वाणी अखाड़ा और महंत हनुमान गढ़ी की तरफ से वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता ने जब दलीलें शुरू की तो निर्मोही अखाड़े की ओर से विरोध किया गया। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि उन्हें पांच मिनट का समय दिए जाने से कोई नुकसान नहीं है। निर्वाणी अखाड़े की तरफ से कहा गया कि वे सेवादार होने के असली हकदार हैं न कि निर्मोही अखाड़ा। जयदीप गुप्ता ने कहा कि स्वर्गीय बाबा अभिराम दास ही विवादित स्थल के पुजारी थे और अब उनके चेले बाबा धर्मदास को सेवादार का अधिकार है। उन्होंने 1949 में विवादित स्थल के अंदर मूर्ति रखी।
…जब राजीव धवन ने नक्शे की कॉपी फाड़ डाली
जयदीप गुप्ता के बाद हिदू महासभा की ओर से वकील विकास सिंह ने पूर्व आईपीएस अफसर किशोर कुणाल की ‘अयोध्या रिविजिटेड’ नामक एक किताब का हवाला देना चाहा। राजीव धवन ने रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं बताते हुए इसका विरोध किया। विकास सिंह ने एक नक्शा रखा तो उसका भी धवन ने विरोध करते हुए अपने पास मौजूद नक्शे की कॉपी फाड़ डाली। एक और वकील भी जिरह के बीच में बोलने लगे तो चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि सुनवाई अभी बंद कर देंगे।
विकास सिंह ने कहा कि अंग्रेज़ों ने इमारत के बाहर रेलिंग लगा दी, इसलिए हिन्दू वहीं तक जाते और पूजा कर लौट आते थे। यह ऐसा ही है जैसे तिरुपति में भी आपको देवता के बिल्कुल करीब नहीं जाने दिया जाता। लोग एक सीमा से पूजा करते हैं। इसलिए रेलिंग से आस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ा। विकास सिंह ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1858 का हवाला देते हुए कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड 1858 में ही खत्म कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की दलीलें नहीं सुनीविकास सिंह के बाद निर्मोही अखाड़े की ओर से वरिष्ठ वकील सुशील कुमार जैन ने चीफ जस्टिस से डेढ़ घंटे का समय मांगा लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा कि आप इसे एक बजे तक खत्म कर लीजिए। हमारे पास समय नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की दलीलें नहीं सुनीं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि उनकी याचिका वर्तमान सुनवाई से हटा दी गई हैं और कोर्ट केवल अपील पर ही सुनवाई करेगा। तब सुब्रमण्यम स्वामी ने कोर्ट से जाने की अनुमति मांगी।
मुस्लिम पक्ष ने कहा, मस्जिद के पुनर्निर्माण का हमें हक
पुनरुद्धार समिति की ओर से वकील पीएन मिश्रा ने बाबरनामा का उल्लेख करते हुए कहा कि बाबर इस्लाम का पालन करता था। इससे मुस्लिम पक्ष की ये दलील गलत होती है कि बाबर एक शासक था और वो किसी कानून से बंधा हुआ नहीं था। पीएन मिश्रा जब हिन्दुओं द्वारा लगातार पूजा करने का इतिहास बताने लगे तो जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वे केवल लिमिटेशन पर दलीलें रखें। धवन ने के परासरन की उन दलीलों का विरोध किया जिसमें कहा गया था कि बाबर कानून से बंधा हुआ नहीं था। धवन ने कहा कि उनका दावा अंदरूनी चाहरदीवारी तक सीमित नहीं है बल्कि बाहरी इलाकों तक है। धवन ने कहा कि बाबरी मस्जिद बनाई जानी चाहिए। मस्जिद के पुनर्निर्माण का हमें हक है। वहां ईंटें मौजूद हैं और जमीन वक्फ की है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने धवन को व्यक्तिगत कमेंट करने से रोका
मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील राजीव धवन ने अपनी अंतिम दलीलें रखते हुए कहा कि वे अपना पक्ष एक-एक कर रखेंगे तब जस्टिस अब्दुल नजीर ने कहा कि उसमें एक सवाल ये भी है कि क्या सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका सुनवाई योग्य है। धवन ने हिंदू महासभा की याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनमें आठ गुट हैं और चार अलग-अलग दलीलें हैं। धवन ने पूछा कि क्या हिन्दू महासभा इतनी ईमानदार है कि कोर्ट के सामने सही तथ्य रखे। धवन ने निर्वाणी अखाड़ा की ओर से महंत धर्मदास की याचिका पर कहा कि उन्हें सेवादार कभी नहीं कहा गया बल्कि यही कहा गया कि वे पुजारी हैं। धवन ने जब कुछ दस्तावेज के अनुवाद के बारे में बात की तो पीएन मिश्रा ने उनके बारे में विस्तार से बताने की कोशिश की। इस पर धवन ने कहा कि हमने आपकी दलीलों को सुना है, उसमें कोई दम नहीं है। पीएन मिश्रा की दलीलें मूर्खतापूर्ण हैं। वे भूमि राजस्व के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने धवन से व्यक्तिगत कमेंट नहीं करने को कहा।
मध्यस्थता पैनल ने सीलबंद लिफाफे में सेटलमेंट दाखिल किया
अयोध्या मामले पर मध्यस्थता कर रहे पैनल ने आज सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में सेटलमेंट दाखिल किया। सेटलमेंट में क्या है ये अभी बाद में साफ होगा। हालांकि इससे जुड़े सूत्रों का कहना है कि पक्षकारों में व्यापक सहमति बनी है कि हिन्दू पक्षकारों को मंदिर निर्माण की इजाजत दी जाए। इसके साथ ही एक बड़ा भूखंड मुसलमानों को सरकारी खर्च पर मस्जिद के निर्माण के लिए दिया जाए। सेटलमेंट में मुस्लिम पक्ष की इस मांग का भी जिक्र किया गया है कि रेलिजियस प्लेसेज एक्ट 1991 को लागू किया जाए जिसमें कहा गया है कि सभी धार्मिक स्थलों पर 1947 के पहले की यथास्थिति बरकरार रखी जाए।
संविधान बेंच ने अयोध्या मामले पर 40 दिन सुनवाई की
पांच जजों की संविधान बेंच ने अयोध्या मामले पर 40 दिन सुनवाई की। इस मामले पर 6 अगस्त से सुनवाई चल रही है। संविधान बेंच में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोब्डे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अब्दुल नजीर, और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं। पिछले दो अगस्त को कोर्ट ने पाया था कि अयोध्या मामले पर मध्यस्थता प्रक्रिया असफल हो चुकी है। उसके बाद कोर्ट ने रोजाना सुनवाई करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त मध्यस्थता कमेटी ने पिछले एक अगस्त को अपनी फाइनल रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी थी। पिछले 18 जुलाई को कोर्ट ने मध्यस्थता कमेटी से यह रिपोर्ट मांगी थी। पिछले 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जज एफ एम कलीफुल्ला, धर्म गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचु को मध्यस्थ नियुक्त किया था। (हि.स.)