नई दिल्ली, (mediasaheb.com) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को यहां ‘शिक्षा में भारतीयता’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन ज्ञानोत्सव-2076 (विक्रमी संवत) को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि अपनत्व का भाव जगाने वाली शिक्षा ही सही मायने में एक आदर्श नागरिक और एक आदर्श समाज बनाने की दिशा में काम करती है।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में डॉ. भागवत ने कहा कि नीति बनाने के लिए चिंतन हो रहा है और नीति के कार्यान्वयन के लिए जो भाव है उससे इसके साकार होने में देर नहीं लगेगी। उन्होंने कहा कि हालांकि उन्होंने नई शिक्षा नीति के मसौदे का अध्ययन नहीं किया है लेकिन नीति निर्माताओं की भावना से स्पष्ट है कि वह इन उद्देश्यों की कसौटी पर खरी उतरेगी। भारत में भी शिक्षा का दृष्टिकोण अलग है असल में शिक्षा केवल साक्षरता मात्र नहीं है। शिक्षा का उद्देश्य स्वावलंबी, स्वातंत्र्य और सम्पूर्ण विश्व का स्वजन बनाना है। यह लोगों में भारत की भूमि, जल, जीव और पर्यावरण से अपनत्व का भाव जाग्रत करती है। उन्होंने कहा कि भारत का अर्थ केवल एक मानचित्र से नहीं है।
इस मौके पर ‘भारत में प्रशासनिक सेवा परीक्षाएं मिथक’ एवं ‘यथार्थ और शिक्षा विकल्प एवं आयाम’ नामक दो पुस्तकों का विमोचन किया गया। इसके अलावा शिक्षा में भारतीयता को लेकर विशेष कार्य करने वाले दो शिक्षाविदों प्रोफेसर सीतानाथ गोस्वामी और डॉ. अनीता शर्मा को पंडित मदन मोहन मालवीय शिक्षाविद सम्मान से सम्मानित किया गया।
डॉ. भागवत ने कहा कि भारत में शिक्षा को लेकर जो समझदारी या दृष्टिकोण है वह अन्य देशों से अलग है। उन्होंने फिनलैंड का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां छात्रों को परीक्षा में अव्वल आने के लिए नहीं बल्कि बच्चों को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का सामना करने के लिए तैयार करना उद्देश्य होता है।
न्यास के सचिव अतुल कोठारी ने शिक्षाविदों का आह्वान किया कि वह केवल सरकार को कोसने के बजाय स्वयं आगे आकर शिक्षा व्यवस्था में आधारभूत सुधार के लिए अपने शिक्षण संस्थाओं में कुछ नए प्रयोग करें। उन्होंने कहा कि शिक्षा में जमीनी स्तर पर बदलाव शिक्षाविदों का दायित्व है। उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग सहित तमाम परीक्षाओं की व्यवस्था में सुधार की जरूरत बताते हुए कहा कि आजादी के बाद इस क्षेत्र में गंभीरता से कार्य नहीं हुआ इसलिए यूपीएससी केवल अधिकारी पैदा कर रहा है जबकि जरूरत लोक सेवकों की है। (हि.स.)