भिलाई. (media saheb.com) बचपन से पढ़ाई में होनहार रही छाया डॉक्टर बनाना चाहती थी, इस बीच घर में पैसों की ऐसी तंगी हुई कि हाउस वाइफ मां ने दूसरों के कपड़े सिलने का फैसला किया। ताकि किसी तरह एक-एक पैसा जोड़कर बेटी को आगे पढ़ा सके। ऐसे विषम आर्थिक परिस्थिति में अपने माता-पिता के संघर्ष से प्रेरणा लेकर बेटी ने भी कड़ी मेहनत की। कोरोनाकाल में नीट क्वालिफाई करके अब अपने परिवार की पहली डॉक्टर बनेगी। ये कहानी है दुर्ग के बोरसी में रहने छाया सिंह दोहरी की। जिसने पढऩे के अलावा अपने पैरेंट्स से कभी किसी और चीज की डिमांड ही नहीं की। छाया कहती है कि जब निजी कंपनी में कार्यरत पिता को चार-चार महीने तनख्वाह नहीं मिलती थी तो मन भारी हो जाता था। सोचती थी कि मेरी महंगी पढ़ाई कहीं इन पर बोझ मत बन जाए। इसलिए खुद को हर दिन डॉक्टर बनाने के लिए तैयार करती थी। नीट का रिजल्ट दिखाकर पैरेंट्स को खुशी दे पाऊं।
एक साल ड्रॉप लेकर की तैयारी
नीट क्वालिफाई करने वाली छाया ने बताया कि बारहवीं बोर्ड में उसके 93.4 प्रतिशत अंक मिले। परिवार में कोई भी डॉक्टर नहीं है इसलिए बचपन से खुद को मेडिकल फील्ड में जाने के लिए तैयार किया। पहले प्रयास में असफलता के बाद एक साल ड्रॉप लेकर तैयारी की। कोचिंग के अलावा घर की सेल्फ स्टडी की बदौलत नीट में अच्छा रैंक मिला। जबलपुर मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया है। एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद न्यूरो सर्जन बनकर अपने कॅरियर को नई उड़ान देना चाहती है।
टेस्ट सीरिज से मिली सबसे ज्यादा मदद
सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज भिलाई में नीट की कोचिंग करने वाली छाया ने बताया कि पढ़ाई के दौरान टेस्ट सीरिज से सबसे ज्यादा मदद मिली। कोचिंग में टेस्ट सीरिज में जब अच्छे माक्र्स मिलते थे तब लगता था कि मंजिल के बहुत करीब हूं। टेस्ट सीरिज की वजह से ही सही समय पर खुद को जज कर पाई कि मैं नीट के एग्जाम में पास हो पाऊंगी या नहीं। सचदेवा में पढ़कर सफल हार्ट सर्जन बनने वाले डॉक्टर कृष्णकांत साहू जब हमारे बीच आए तो लगा कि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। उनकी कहानी और बातों से काफी पॉजिटिव एनर्जी मिली। उन्होंने टाइम मैनेजमेंट का जो मंत्र दिया वह तैयारी के दौरान काफी काम आया।
काउंसलिंग के बिना सफलता मुश्किल थी
नीट की तैयारी के बीच कई बार डिप्रेशन की शिकार हुई। डर लगता था कि अगर सलेक्शन नहीं हुआ तो पैरेंट्स के सैक्रिफाइस को कैसे फेस कर पााउंगी। इस बीच चिरंजीव जैन सर ने एक पैरेंट्स की तरह मेरी काउंसलिंग की। उन्होंने कहा कि जीवन में छोटे-छोटे स्टेप से आगे बढ़ो। उस स्टेप के पूरा होने पर खुद को शाबासी दो। मैंने भी एक-एक पड़ाव पार करने का लक्ष्य रखा। जब एक लेसन पूरे रिवीजन के साथ कंप्लीट करती थी तो खुद को शाबासी भी देती थी। उनकी काउंसलिंग के कारण नकारात्मक ऊर्जा को खुद को दूर रख पाई। कोचिंग के टीचर्स के स्माइली फेस देखकर सारी निगेटिव बातें भूल जाती थी। कहीं न कहीं ये बातें भी एक स्टूडेंट की सफलता के लिए बहुत मायने रखती है। पढऩे का अच्छा माहौल आपको दोगुनी ऊर्जा से भर देता है।