नई दिल्ली(media saheb.com) । औषधीय क्षेत्र के लिए पीएलआई योजना “आत्मनिर्भर भारत- भारत की विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देने और दस क्षेत्रों में निर्यात को बढ़ाने की रणनीति”वाली रणनीति पर आधारित है, जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी प्रदान की गई थी। औषधीय उद्योग से आवेदन आमंत्रित करने वाली योजना के लिए प्रक्रिया संबंधी दिशानिर्देश 01.06.2021 को औषधीय विभाग द्वारा उद्योग एवं संबंधित विभागों और नीति आयोग के साथ गहन परामर्श करने के बाद जारी किए गए थे।
इस योजना का उद्देश्य इस क्षेत्र में निवेश और उत्पादन को बढ़ावा देकर भारत की विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाना तथा औषधीय क्षेत्र में उच्च मूल्य की वस्तुओं में उत्पाद विविधीकरण में योगदान देना है। इस योजना का एक और उद्देश्य देश के बाहर वैश्विक रूप से चैंपियन बनाना है, जो अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए अपने आकार और पैमाने को बढ़ाने की क्षमता रखते हैं तथा इस प्रकार से वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में प्रवेश करते हैं। इस योजना में पूर्व-निर्धारित चयन मानदंडों के आधार पर चयनित आवेदकों को औषधीय वस्तुओं और इन-विट्रो डायग्नोस्टिक चिकित्सा उपकरणों की प्रगतिशील बिक्री (आधार वर्ष के अनुसार) पर वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा। आवेदकों द्वारा प्राप्त किए जाने वाले थ्रेशोल्ड निवेशों और बिक्री मानदंडों के आधार पर प्रत्येक प्रतिभागी को प्रोत्साहन का भुगतान अधिकतम 6 वर्षों के लिए किया जाएगा। इस योजना के लिए प्रोत्साहन की कुल राशि 15,000 करोड़ रुपये निर्धारित है। सिडबी इस योजना की परियोजना प्रबंधन एजेंसी के रूप में काम कर रही है।
उद्योग के दिग्गजों के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा और व्यापक कवरेज सुनिश्चित करने के लिए आवेदकों द्वारा तीन अलग-अलग श्रेणियों में आवेदन आमंत्रित किए गए थे। ये श्रेणियां आवेदकों के आकार पर आधारित की गई थीं जैसा कि औषधीय विनिर्माण से वैश्विक विनिर्माण राजस्व द्वारा निर्धारित किया गया था। इस योजना को उद्योग से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली है और 31.08.2021 की अंतिम तिथि तक कुल 278 आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें से अधिकतम 55 आवेदकों का चयन किया जाना था। इस योजना में तीन अलग-अलग उत्पाद श्रेणियों को शामिल किया गया है, जिनके लिए आवेदकों ने योजना के अंतर्गत आवेदन किया है। इन उत्पादों से भारत औषधीय उद्योग के लिए नवाचार, अनुसंधान और विकास तथा उत्पाद प्रोफाइल का विस्तार करने को बल प्राप्त होने की संभावना है।
श्रेणी 1:बायोफार्मास्युटिकल्स; जटिल जेनेरिक दवाएं; पेटेंट दवाएं या पेटेंट समाप्ति के नजदीक वाली दवाएं; सेल आधारित या जीन थेरेपी दवाएं; ऑर्फन ड्रग्स; एचपीएमसी, पुलुलन, एंटरनिक जैसे विशेष खाली कैप्सूल; जटिल एक्सपिएंट्स; फाइटो-फार्मास्यूटिकल्स आदि।
श्रेणी 2:सक्रिय औषधीय सामग्री/ प्रमुख प्रारंभिक सामग्री/ मध्यवर्ती दवाएं (सक्रिय औषधीय सामग्री/ प्रमुख प्रारंभिक सामग्री/ मध्यवर्ती दवाएं को छोड़कर जिन्हें विभाग द्वारा कार्यान्वित की जा रही एपीआई/ केएसएम और डीआई के लिए पिछली पीएलआई योजना के अंतर्गत कवर किया जा रहा है)
श्रेणी 3 (श्रेणी 1 और श्रेणी 2 के अंतर्गत शामिल नहीं की गई दवाएं): पुन: उपयोग की जाने वाली दवाएं; ऑटो प्रतिरक्षा दवाएं, कैंसर विरोधी दवाएं, मधुमेह विरोधी दवाएं, संक्रामक विरोधी दवाएं, कार्डियोवैस्कुलर दवाएं, साइकोट्रॉपिक दवाएं और एंटी-रेट्रोवायरल दवाएं; इन-विट्रो डायग्नोस्टिक डिवाइस; अन्य दवाएं जो भारत में निर्मित नहीं हो रही हैं।
आवेदनों का मूल्यांकन, योजना के परिचालन के लिए निर्धारित किए गए दिशानिर्देशों की रैंकिंग पद्धति के आधार पर किया गया है। तीनों श्रेणियों में से प्रत्येक में आवेदकों के चयन को रसायन और उर्वरक मंत्री द्वारा अनुमोदित किया गया है। चयनित किए गए 55 आवेदकों की सूची संलग्नक -1 मे शामिल है। ग्रुप ए में 11 चयनित आवेदक हैं, ग्रुप-बी में 9 चयनित आवेदक हैं और ग्रुप-सी में 35 चयनित आवेदक हैं, जिनमें से 20 एमएसएमई हैं। योजना के तकनीकी पहलुओं के विषय पर विशेषज्ञों की एक तकनीकी समिति विभाग को सहायता प्रदान कर रही है। सिडबी ने इस योजना के अंतर्गत अपनाई जा रही व्यावसायिक प्रक्रियाओं के लिए एक डिजिटल तंत्र को स्थापित किया है। योजना की प्रगति को ट्रैक करने के लिए एक मजबूत निगरानी संरचना भी तैयार किया जाएगा।(For English News : thestates.news)