रायपुर, (mediasaheb.com ) एक साल पहले हुए विधानसभा चुनावों में छत्तीसगढ़ की जनता ने हमें सरकार की बागडोर संभालने का आदेश दिया। यह जनादेश तीन चौथाई से अधिक प्रचंड बहुमत के रूप में हमें मिला। हमने जनादेश के मर्म को समझते हुए, जन आकांक्षाओं का सम्मान करते हुए छत्तीसगढ़ (#_chhattisgarh ) के जनमानस के हितकारी लक्ष्य तय करते हुए नये सफर की शुरूआत की।
यह समय एक साल पहले की परिस्थितियां का पुनरावलोकन करने का भी है ताकि यह समझा जा सके कि हमने अपना सफर कहां से शुरू किया था। पुरखों के लम्बे संघर्ष की बदौलत जब 1 नवम्बर सन् 2000 को छत्तीसगढ़ एक अलग राज्य (#_State ) के रूप में रेखांकित हुआ तो यहां की लगभग ढाई करोड़ आबादी को लगा था कि राज्य अब अपने पुरखों के सपनों को पूरा करने की दिशा में चल पड़ेगा, लेकिन विडम्बना है कि ऐसा हो नहीं पाया। तो सवाल उठता है कि छत्तीसगढ़ की जिंदगी के महत्वपूर्ण डेढ़ दशक कहां गये ? क्या यह नहीं माना जाए कि यह वक्त गलत प्राथमिकताओं, गलत नीतियों और गलत मंशाओं की भेंट चढ़ गया? 17 दिसम्बर 2018 को जब मैंने सरकार का कामकाज संभाला, उसके पहले प्रदेश में एक अजीब तरह की उदासी, सुस्ती, निराशा, हताशा का वातावरण था, जो अनेक भ्रम-जालों से भरा पड़ा था।
प्रचण्ड जनादेश ने हमें यह जिम्मेदारी दी कि हताशा को उल्लास में बदलें और वास्तविकता के धरातल पर उतरकर विकास की अलख जगायें। हमने छत्तीसगढ़ (#_Chhattisgarh ) के वर्तमान और भविष्य को लेकर ठोस योजना बनाई और विश्वास के सेतु को मजबूत किया।
स्वतंत्रता संग्राम के दौर से हमारा विकास का नजरिया स्पष्ट रहा है। भारत के संविधान निर्माताओं की सोच और दृष्टि भी हमेशा हमारा पथ-प्रदर्शित करती रही है।
लोकतंत्र और संविधान के प्रति अटूट आस्था से हमारा रास्ता निर्धारित हो जाता है। सामाजिक-आर्थिक नीतियों के लिए भी हमारे पास महात्मा गांधी, पं. जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद जैसे गौरव स्तंभों के आदर्शों, मूल्यों और सिद्धांतों की धरोहर है। गुरू बाबा घासीदास, शहीद गैंदसिंह, शहीद वीर नारायण सिंह जैसी अनेक विभूतियों के द्वारा दी गई यथा आवश्यकता शांति और क्रांति की सीख हमारे जेहन में है। आजादी के लिए अमर शहीदों का योगदान याद रखने के साथ हमने उन चुनौतियों को भी याद रखा है, जिनमें महात्मा गांधी, गणेश शंकर विद्यार्थी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी जैसी विभूतियों की शहादत हुई।
एक साल पहले हमारे सामने दो स्पष्ट चुनौतियां थीं। पहली चुनौती थी प्रचलित कुशासन पर तत्काल रोक लगाकर जनहितकारी सरकार का सपना साकार करना और दूसरी राज्य की सामाजिक-आर्थिक नीतियों को दिशा और गति देना। इस तरह हमने अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों को जीवंत करते हुए आर्थिक, सांस्कृतिक विकास का छत्तीसगढ़ी मॉडल विकसित किया, जिसके केन्द्र में किसान, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग और तमाम ऐसे लोग हैं, जो राज्य गठन के बाद से न्याय की बाट जोह रहे थे। हमारी ‘गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ की परिकल्पना, ‘छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी- नरवा, गरवा, घुरवा, बारी’ को विकास की धुरी बनाने की ‘सुराजी गांव योजना’ और सबको न्याय दिलाने की हमारी सनातन परंपरा निरंतर संघर्षों और सतत सोच का परिणाम है।
आज पहले साल के पड़ाव पर मुझे यह कहते हुए संतोष है कि हम प्रदेश के ग्रामीणों, किसानों और अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति तथा अन्य कमजोर तबकों को राज्य के विकास के साथ जोड़ने में सफल हुए हैं। शिक्षा से रोजगार तक, युवाओं को सर्वांगीण विकास के अवसर देने से लेकर सुरक्षित भविष्य की ओर ले जाने तक हर उपाय हमने किया। चौतरफा प्रयासों के कारण ही विश्वव्यापी मंदी का असर हमारे जन-जीवन को तनिक भी नहीं छू पाया, बल्कि इस दौर में विकास के नए प्रतिमान स्थापित हुए। चाहे वह बेरोजगारी दर घटाने का विषय हो, ग्रामीण समृद्धि की ताकत से बाजारों का विश्वास जीतने का विषय हो, बीमारियों और कुपोषण से सीधी जंग का ऐलान हो या नए जमाने की जरूरतों के लिए नई तालीम की शुरूआत हो।
सेहत के बुनियादी सवालों से उबरने के रास्ते निकालते हुए हमने 20 लाख रूपए तक के निःशुल्क उपचार की योजना बना ली है, ताकि धनाभाव किसी भी नागरिक की बेबसी का सबब न बन पाए और सबको यह विश्वास रहे कि उनकी हर जरूरत के पीछे एक लोकहितकारी सरकार मजबूती से खड़ी है। महिलाओं का सम्मान हो या संस्कृति का उत्थान, हर मोर्चे पर विकास के छत्तीसगढ़ी मॉडल का रंग चढ़ा। मुझे विश्वास है कि साल भर की विभागवार पहल और उपलब्धियों का यह दस्तावेज हमारे शासन-प्रशासन की पारदर्शिता के साथ जन-पक्षधरता का भी दस्तावेज सिद्ध होगा। http://www.mediasaheb.com/