जब साहित्य परदे पर उतारा गया
(धर्मवीर भारती जन्मशती वर्ष )
डॉ. धर्मवीर भारती की उपन्यास पर आधारित “सूरज का सातवां घोड़ा”(1992).. योग्य, अपने कार्य में पारंगत निर्देशक श्याम बेनेगल ने इसे रुपहले परदे पर उतारा और फ़िल्म का नाम भी यहीं रखा।
मैंने जितना कुछ फिल्मो पर लिखा , समीक्षाएं की , किन्तु इस पर लिखना थोड़ा कठिन है, एक तो डॉ धर्मवीर भारती मुझे अतिशय प्रिय है,पत्रिका ‘धर्मयुग’ मेरी साहित्यिक यात्रा का आरम्भ…धर्मवीर भारती जी ने मानो साहित्य और संस्कृति का ककहरा सिखाया, भाई हम तो वही जानते है जो भारती जी सीखा गए, धर्मवीर भारती की लेखनी से हमारे हिन्दी के किस्से कहानी मानो जवान हुए उन में यौवन फूटा .. परिपक्वता आई, बाबू देवकीनंदन खत्री की चंद्रकांता,भूतनाथ से प्रेमचंद इत्यादि से होते हुए, धर्मवीर भारती तक पहुंच परिपक्व हुआ। भारती जी काल खंड को विभक्त करते है, धर्मवीर भारती के पूर्व और उनके पश्चात्।
हम आज के विषय पर लौटते है
सूरज का सातवां घोड़ा,एक़ प्रयोग है तीन अलग अलग कथा किन्तु इन तीनो से निकलती एक़ कथा। मणिक मुल्ला कथा सुना रहे है , वैसे ही जैसे कभी दादा दादी या गांव के चौपाल में बुजुर्ग सुनाया करते थे। उन के अपने जीवन से जुड़ी कथा और श्रोताओं में स्वयं डॉ धर्मवीर भारती भी है दोपहर , गर्मियों के दिन, खरबूजे की मिठास और किस्सागोई.. जमुनिया, सत्ती और लिली की कथा.. महेसर दलाल को जीवंत करते अमरीश पुरी,पल्ल्वी जोशी लिली है, नीना गुप्ता सत्ती तो कथा के सूत्रधार मणिक मुल्ला रजित कपूर सभी मंझे हुए कलाकार । फिल्मांकन इतना सजीव है, सहज है.. ऐसा लगता है सब कुछ आप के सामने बीत रहा हो। देखिए पुराने आदर्शवाद से कही दूर ये धर्मवीर भारती का यथार्थ है, आप इसे नैतिक पतन का महिमामंडन कह सकते है पर जमुनिया एक़ बूढ़े से बिहायी गयी, रति सुख नहीं, संतान नहीं..फिर भरी जवानी में विधवा। अब अपने जमींदार पति के वफादार के साथ सम्बन्ध अवैध ही सही पर यहीं उसके जीवन का सच हैऔर वो सुखी है।सत्ती को उसका मुँहबोला चाचा, महेसर को बेच देता है और जिस से वो प्रेम करती है वो इसकी सहायता करने की जगह उसे पुनः महेसर और उस के चाचा को सौप देता है। आखिर वो क्यों बदनामी मोल ले, अपना कैरियर , अपना स्वार्थ सर्वोपरि ?? यहीं तो जीवन का सच है। देवदास यथार्थ में नहीं होता। इस फ़िल्म के विषय में क्या लिखें .. निर्देशक ने तो धर्मवीर भारती के पात्रों को मानो सजीव कर दिया। जमुनिया, सत्ती लिली मुझे झकझोर देती है ., पीड़ा देती है, रुलाती है, कभी कभी क्रोधित भी करती है.. पर यहीं धर्मवीर भारती है ना… ऐसे चरित्र और उनकी अद्भुत कथा .. तो मणिक मुल्ला जी की बैठक में चलते है और उन से किस्सा सुनते है युवा धर्मवीर भारती के बाजू में बैठ कर..
ये हिन्दी सिनेमा की भी अनमोल, कलजयी कृति है.. परदे पर उतारा गया साहित्य
*डॉ.संजय अनंत ©*