बिलासपुर (mediasaheb.com) : मित्रो ,आज (23नवम्बर) महान गायिका गीता दत्त की जयंती है । उनकी आवाज़ की दिवानगी अब भी क़ायम है।कुछ गीत तो ऐसे है मानो वो गीता जी के लिए ही लिखे गए हो। ‘कोई चुपके से आ के नज़रे चुरा के बोले की मैं आ रहा हूं ‘..कौन जाने या फिर ये गीत ‘मुझे जाँ न कहो मेरी जां…’। आशा जी की बड़ी प्रतिस्पर्धा रही गीता से । किन्तु सच ये है कि गीता दत्त की आवाज़ उनकी गायकी का अंदाज़ एकदम ख़ास। गुरुदत्त एक एकांतप्रिय ,निराशावादी किन्तु जीनियस उनके प्रेमी और बाद में पति। गीता जी ने बांग्ला में भी खूब लोकप्रियता हासिल की ।हेमंत दा का संगीतबद्ध गीत और गीता जी का गाया ‘तुमि जेइ आमार… ‘ (1957) बांग्ला फिल्मो का कालजयी गीत माना जाता है। ये प्रेम कहानी दुःख के दौर में तब आई ,जब वहीदा रहमान जी बतौर अभिनेत्री गुरुदत्त के बहुत करीब आ गयी। गीता और गुरुदत्त के संबंध इतने ख़राब हुए की गीता बच्चो के साथ घर छोड़ अलग रहने लगी। वहीदा जी ने अब तक उम्र के इस पड़ाव में भी ये नहीं बताया। कि उनके मन में गुरुदत्त थे या नहीं। गीता और गुरुदत्त दोनों प्रतिभा के धनी ,इतना नाम ,शोहरत ,सम्पन्नता ख़ुशी नहीं दे पाई। दोनों ने अपना जीवन स्वयं समाप्त किया। गीता जी के आवाज़ में खनक थी ,चुलबुला पन था ,मानो कोई शोख़ सोलह साल की लड़की गा रही हो। संदीजा गीत भी बड़ी खूबसूरती से गाया ।’कागज़ के फूल’ का ये कभी न भूलने वाला गीत
वक्त ने किया क्या हसीं सितम तुम रहे ना तुम हम रहे ना हम
बेकरार दिल इस तरह मिले जिस तरह कभी, हम जुदा न थे
तुम भी खो गये, हम भी खो गये एक राह पर चल के दो कदम
जायेंगे कहा, सूझता नहीं चल पड़े मगर रास्ता नहीं
क्या तलाश हैं, कुछ पता नहीं बुन रहे हैं दिन ख्वाब दम-ब-दम…
*संजय अनंत ©*