देवदास का जादू ,हर दौर में चला..
शरतचंद्र जयंती
देवदास, शरतचंद्र जी की अमर कृति है, विश्व की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ और अब तक भारत पाकिस्तान व बांग्लादेश में इस कृति पर अनेक बार फ़िल्म बनी, हिन्दी बांग्ला, तमिल व तेलगु में भी…
इस देवदास के चरित्र में क्या जादू है ? एक असफल ,शराब के नशे में, अपना सर्वनाश कर चुका इंसान, दरअसल ये वो प्लेटोनिक लव है जिसका सपना सिर्फ पुरुष देखता है , कोई पारो उसके नाम का दीपक प्रतिदिन जलाती हो , उस से बेइंतहा प्यार करती हो, शरत बाबू का कुछ हद तक आत्म कथ्य भी और भावुकता वो ज्वार उठता है, आँखे नम हो जाती है ,जब अपनी पारो की डोली को कन्धा देता देवदास..
हमेशा तुम को चाहा
प्रथम महानायक सहगल,फिर दिलीपकुमार और संजय लीला भंसाली की भव्य सेट वाली देवदास में शाहरुख़… सबने पूरी कोशिश की परदे पर देवदास बनने की…चुन्नी बाबू की बाते, अंग्रेजो के बसाए चमक दमक वाले कलकत्ता की ओर पलायन करता बंगाल का ज़मींदार वर्ग….सह्रदय नगरवधू जो देवदास से प्रेम करने लगती है ,हिन्दी व बांग्ला में कई बार इसे परदे पर उतारा गया, यहाँ तक की पाकिस्तान में भी देवदास पर फिल्म बनी सबसे पहले बनी सहगल व राजकुमारी जमुना बरुआ अभिनीत (१९३६) , उसके पश्चात् दिलीप कुमार, वैजन्तीमाला वाली बिमल राय की देवदास (1955) और आधुनिक दौर में शाहरुख़, जैकी श्राफ़, माधुरी, ऐश्वर्या अभिनीत संजय की देवदास (2002) ,सौभाग्य से सहगल अभिनीत फिल्म की vcd मेरे पास है फिल्म की अनेक रील ख़राब हो चुकी है , किन्तु १९३६ की फिल्म देखना अपनेआप में एक सुखद अनुभव है
देवदास में हर पुरुष अपने आप को तलाशता है, शायद कोई पारो उसके नाम का दीपक वर्षो तक जला कर रखे…जीवन में सच्चे प्रेम की तलाश की व्यथा का नाम है देवदास…
पुराने लोगो की राय होगी की दिलीप साहब ने जो देवदास का अभिनय किया वो, सब से उत्तम है, जिन्होंने संजय लीला भंसाली की भव्य सेट वाली देवदास देखी है, वे निश्चित ही शाहरुख़ के लाज़वाब अभिनय की तारीफ़ करेंगे बांग्ला वाले, बांग्ला में बनी देवदास को बेहतरीन बतायेंगे, जिस में उत्तम कुमार चुन्नी बाबू बने थे, वैसे तीनो फिल्मे जो हिन्दी में बनी, उनके कालखंड अलग अलग है,सहगल राजकुमारी वाली देवदास जब 1936 में बनी जिसे बरुआ साहब ने डायरेक्ट किया था , कोलकाता के न्यू थिएटर ने बनाई थी तब प्लयेबैक सिंगिंग की तकनीक नहीं थी, आर्टिस्ट खुद ही गाते थे, पेड़ व सेट के पीछे म्यूजिशियन साथ ने संगीत देते, शहर के कोलाहल में रिकॉर्डिंग संभव नहीं होती थी, जब विमल राय ने देवदास बनाई तब तब फ़िल्म तकनीक अधिक विकसित हो चुकी थी, किन्तु वो ब्लैक एंड वाइट फिल्मों का दौर था, और जब संजय ने देवदास फ़िल्म बनाई तो तब उनके पास आधुनिक तकनीक थी, बड़ा बजट था
तो तुलना संभव नहीं है, किन्तु विमल राय की देवदास कलात्मक मानी जाएगी, अभिनय, निर्देशन, संगीत सब कुछ क्लासिक..अब इन तीनो क्लासिक फिल्मों के उत्तम संगीत की बात की जाय, तो साहब ऐसा है तीनो का संगीत अपने अपने दौर में बहुत लोकप्रिय रहा
देवदास (1936)
बालम आए बसो मोरे मन में
देवदास (1955)
जिसे तू कबूल कर ले
देवदास (2002)
हमेशा तुम को चाहा
डोला रे डोला
शरत बाबू की इस कहानी में ऐसा जादू है की, भविष्य में से कोई न कोई डायरेक्टर फिर से देवदास पर फ़िल्म बनाएगा
संजय अनंत©
Monday, June 16
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