एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय में ‘ईएलटी समिट 2025’ का भव्य आयोजन
पुणे, २४ मई २०२५ – “वर्तमान समय में शिक्षा केवल तकनीक पर आधारित नहीं है, बल्कि वह विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को समझते हुए उन्हें कौशल आधारित, रोजगारोन्मुख शिक्षण पद्धति से जोड़ने की दिशा में विकसित हो रही है। इसलिए, शिक्षा का भविष्य शिक्षण शैली में ही छिपा है,” ऐसा मत एमआईटी आर्ट, डिज़ाइन एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, पुणे के कुलगुरु प्रो. डॉ. राजेश एस. ने व्यक्त किया।
वे एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी एवं इंटरनॅशनल सोसायटी फॉर एजुकेशनल लीडरशिप (ISEL) के संयुक्त तत्वावधान में तथा केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस एंड असेसमेंट, लंदन के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय ‘ईएलटी समिट 2025’ के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे। इस वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन में देश-विदेश के शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों ने भाग लिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता ISEL अध्यक्ष डॉ. कृष्णमूर्ति और संयोजन डॉ. अतुल पाटील द्वारा की गई। उद्घाटन सत्र में एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय के कार्यकारी अध्यक्ष माननीय प्रो. डॉ. मंगेश कराड, परिषद अध्यक्ष डॉ. तरुण पटेल सहित अमेरिका, यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान और फिलीपिन्स से अनेक विशेषज्ञ वक्ता उपस्थित रहे। इसमें डॉ. क्रिस्टिन हॅन्सन (यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले), डॉ. हुआहुई झाओ (यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स), एरिक एच. रोथ, सारा डाविला, डॉ. इल्का कोस्ट्का और रिचर्ड जोन्स जैसे नाम शामिल हैं।
विशेष रूप से, ‘Linguistics and Poetics as an Antidote to the Virtual’ विषय पर डॉ. क्रिस्टिन हॅन्सन के उद्घाटन भाषण ने साहित्य की मानवीय संवेदनाओं और मूल्यों की आवश्यकता पर बल दिया। वहीं, ईएलटी क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए डॉ. ज़ेड. एन. पाटील को ISEL लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
सम्मेलन में भारत समेत विभिन्न देशों से प्राप्त 121 शोधपत्रों में से 80 को प्रस्तुति के लिए चयनित किया गया। एआई और हाइब्रिड क्लासरूम, चैटजीपीटी के परे एआई के अनुप्रयोग, बहुभाषिक संदर्भ में एआई का प्रयोग जैसे विषयों पर गहन चर्चा हुई।
समापन समारोह में मॉडर्न कॉलेज ऑफ बिजनेस एंड साइंस, मस्कट (ओमान) की डॉ. आरती मजुमदार और प्रो. पाटील ने एआई और भाषा शिक्षण से संबंधित समकालीन चुनौतियों और अवसरों पर विचार रखे। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. अशोक घुगे एवं प्रो. अमीषा जयकर ने किया, जबकि समापन सत्र का संचालन प्रो. स्नेहा वाघटकर एवं डॉ. स्वप्नील शिरसाठ ने किया।
यह सम्मेलन न केवल शैक्षणिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भाषा शिक्षा में नवाचार और सहयोग की दिशा में एक सार्थक पहल सिद्ध हुआ।