*कल्पना दत्त* (जयंती 🌹)
*चटगांव विप्लव की महानायिका*
केमिस्ट्री की छात्रा जो क्रांति के लिए बम तैयार करती थी
चटगांव महाक्रांति पर बनी इस फ़िल्म में दीपिका ने महान स्वतंत्रता सेनानी कल्पना दत्त की अमर भूमिका निभाई..
खेलेंगे हम जी जान से (2010)
बिलासपुर,(mediasaheb.com), आज इस फ़िल्म को याद करने का एक और कारण है आज चटगांव की महान क्रान्ति की नायिका कल्पना दत्त की जयंती है, ये शानदार किन्तु फ्लॉप फ़िल्म बनी थी, बंगाल के महान क्रान्ति नायक सूर्यसेन जिन्हे भारत के सभी विप्लवी,ब्रिटिशराज के विरोधी, अपना सेनापति मानते थे, आशुतोष गोवरिकर के निर्देशन में और अभिषेक बच्चन और दीपिका के उम्दा अभिनय से बनी ये फ़िल्म कोलकता में भी नहीं चली, देश का दुर्भाग्य, वो अपने इन महानायको को याद नहीं करना चाहता, इस फ़िल्म के असफल होने के बाद इस प्रकार के विषय पर कोई बड़े स्टार के साथ, बड़े बजट के साथ फ़िल्म नहीं बनी, ये फ़िल्म आशुतोष गोवरिकर की बेहतरीन फ़िल्म है, उस कालखंड को सजीव किया गया है, ग्लैमर लुक में फिल्मो में नज़र आने वाली दीपिका इस फ़िल्म में महान महिला क्रांतिकारी कल्पना दत्त की भूमिका में सूती बंगाली साड़ी में दिखती है, और मास्टर दा की भूमिका में अभिषेक बच्चन अपनी उत्तम अदाकारी के साथ, सफ़ेद धोती कुर्ता के पारम्परिक बंगाली परिधान में…
ये फ़िल्म विश्व इतिहास की महान क्रान्ति घटना में से एक चटगांव विप्लव को रुपहले परदे पर पुनः जीवित करती है, कैसे मास्टर दा और उनके कुछ तरुण साथियो ने, जिस में महिलाएं भी शामिल थी, ब्रिटिश सत्ता से चटगांव को मुक्त करते है, वहाँ कई दिनों तक भारत का राष्ट्रीय ध्वज सभी सरकारी इमारतो पर लहराता है, जो ब्रिटिश इस बात पर घमंड करते थे की उनके राज में कभी सूरज अस्त नहीं होता, मास्टर दा और उनके साथी असम्भव को संभव कर दिखाते है, बाद में मास्टर दा को फांसी की सजा होती है और उनका अंतिम संस्कार, अंग्रेज़ इसलिए नहीं होने देते की कहीं पूरे देश में विरोध प्रदर्शन न हो, फिर से ब्रिटिश विरोधी भावना न भड़के, उनकी पवित्र देह को बीच समुद्र में जल समाधि दी जाती है
आश्चर्य तो ये होता है की इतनी शानदार फ़िल्म जो भारत के इतिहास का सच बयां करती हो, दर्शकों द्वारा नकार दी जाती है , इस फ़िल्म का संगीत भी अच्छा था, इस में पार्श्व गायिका पामेला जैन ने अपनी मधुर आवाज़ से गीत गाए है , जो सुमधुर है(नयाना तेरे 🎶..), पामेला जी महान बांग्ला लेखक बिमल मित्र की नातिन है, और मेरी बहुत करीबी..ख़ैर आज मास्टर दा के बलिदान दिवस पर इतना ही..
आप सब अनुरोध करूँगा, ये फ़िल्म अवश्य देखे और अपने बच्चों को अवश्य दिखाए
ये आज़ादी इतनी सस्ती नहीं है बहुत बड़ी कीमती है , हमारे हज़ारो बलिदानियों के बलिदान से प्राप्त हुई
*संजय अनंत©*