डॉक्टर बनकर पिता को कराया प्राउड फील, एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान गुपचुप दुकान में करता था हेल्प
भिलाई.(mediasaheb.com) गुपचुप-चाट बेचकर परिवार का गुजारा चलाने वाले एक पिता ने अपने बेटे के अंदर इस कदर हौसला भरा कि उनका बेटा आज दुर्ग शहर का नामी डॉक्टर होने के साथ-साथ शंकराचार्य मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर भी है। जी हां हम बात कर रहे हैं दुर्ग निवासी डॉ. नितेश जैन की जिन्होंने पहले ड्रॉप इयर में असफल होने पर पापा के साथ दुकान में बैठकर गुपचुप बेचने का प्लान बना लिया था। पिता को ये मंजूर नहीं था वे चाहते थे बेटा कड़ी मेहनत करे और अपने बचपन का सपना पूरा करे। इसलिए उन्होंने निराश बेटे को नई ऊर्जा दी और कहा कि एक मौका और दो खुद को। शायद इस बार तुम्हारी मेहनत रंग ला जाए। बेटे ने पिता की बात मानी और दूसरे ड्रॉप इयर में जी जान लगाकर पढ़ाई की। साल 2003 में न सिर्फ सीजी पीएमटी बल्कि ऑल इंडिया पीएमटी भी क्वालिफाई किया। रायपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और सेक्टर 9 हॉस्पिटल से डीएनबी की पढ़ाई करके आज डॉ. नितेश डॉक्टरों की नई जनरेशन को पढ़ा रहे हैं।
पढ़ाई में होता था बहुत ज्यादा डिस्ट्रेक्शन
डॉ. नितेश ने बताया कि वे बचपन से डॉक्टर बनना चाहते थे। 12 वीं बोर्ड के बाद मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू की तो कान्सेप्ट क्लीयर नहीं होता था। इसलिए बार-बार पढ़ाई में डिस्ट्रेक्शन होता था। कन्फ्यूजन के कारण कई बार पढ़ी हुई चीजों को भूल जाया करता था। पढ़ाई में सीरियस भी नहीं था। यही कारण है पहले साल ड्रॉप इयर में असफलता हाथ लगी। इस असफलता से मैं बहुत ज्यादा निराश भी हो गया था। एक बार मन में पढ़ाई छोडऩे का भी विचार बना लिया था। सचदेवा के डायेक्टर चिरंजीव जैन सर ने इस मुश्किल घड़ी में हौसला बढ़ाया। उन्होंने कहा कि तुम्हार एग्जाम फार्म मैं भरता हूं तुम सिर्फ मेहनत करो। उनकी बातें सुनकर मुझमे अंदर से दोगुनी मेहनत करने की ऊर्जा आई और नए सिरे से सिलेबस को पढऩा शुरू किया।
सचदेवा में मिला सही डायरेक्शन और मोटिवेशन
डॉ. नितेश ने बताया कि उस टाइम सचदेवा छत्तीसगढ़ का सबसे फेमस कोचिंग था इसलिए मेडिकल एंट्रेस की तैयारी के लिए मैंने भी सचदेवा को चुना। सचदेवा के टेस्ट सीरिज में शुरूआत में बहुत कम रैंक आता था। टीचर्स के मोटिवेशन और चिरंजीव जैन सर की काउंसलिंग की बदौलत रैंक में सुधार होते चला गया। जब कभी निराश होता था सचदेवा के ड्रॉपर बैच को देखकर खुद को मोटिवेट करता था कि मुझे अपने पापा को डॉक्टर बनकर प्राउड फील करवाना है। इसलिए सचदेवा के नोट्स को फॉलो करता था। फिजिक्स में थोड़ी दिक्कत होती थी लेकिन सचदेवा के टीचर्स ने फिजिक्स को ऐसा पढ़ाया कि आज भी पढ़ी हुई कई चीजें याद है।
नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स से कहना चाहता हूं कि आप मोबाइल और टेक्नोलॉजी के गुलाम मत बनिए। खुद की स्ट्रेंथ को पहचाने के लिए सेल्फ एनालिसिस जरूर है। लोग एग्जाम प्रेशर में हजारों की भीड़ देखकर खुद की तैयारी को कमतर मान लेते हैं लेकिन आपको सलेक्शन के लिए हजार नहीं केवल एक सीट चाहिए। इसलिए उस एक सीट के लिए कड़ी मेहनत करिए। मैं एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान भी अपने पिता के दुकान में हेल्प करने जाता था। इसलिए आप किस और कैसे परिस्थिति से आते हैं ये मैटर नहीं करता। कड़ी मेहनत वो विकल्प है जिससे आप अपना भविष्य संवार सकते हैं।