अंतिम दिवस की कथा और समापन
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सुनते ही दौड़े चले आए मोहन, लगाया गले से सुदामा को मोहन,
श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन सुदामा प्रसंग सुनाया।
हरदा जिले के सुप्रसिद्ध कथा वाचक पंडित विद्याधर उपाध्याय सुना रहे कथा सुनते ही दौड़े चले आए मोहन, लगाया गले से सुदामा को मोहन, देखो देखो ये गरीबी ये गरीबी का हाल… कृष्णा के द्वार पे विश्वास लेके आया हूं। मेरे बचपन यार है… मेरा श्याम बस यही सोच के आस लेके आया हूं। श्रीमद्भागवत कथा में सुदामा चरित्र के वर्णन के दौरान इन भजनो पर श्रद्धालु भक्ति भाव में डूबकर नृत्य करने लगे। अर्चना गांव में विगत 2 अक्टूबर से जारी सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा की बुधवार को पूर्णाहुति की गई। अंतिम दिवस हरदा जिले के सुप्रसिद्ध कथा वाचक कथावाचक पंडित श्री विद्याधर उपाध्याय ने ग्राम वासियों को कथा श्रवण कराते हुए कृष्ण सुदामा चरित्र का रोचक वर्णन सुनाकर भक्तों को भावविभोर कर दिया।
भागवत कथा का समापन करते हुए कई कथाओं का भक्तों को श्रवण कराया जिसमें प्रभु कृष्ण के 16 हजार शादियां के प्रसंग के साथ, सुदामा प्रसंग और परीक्षित मोक्ष की कथायें सुनाई।
कथा का समापन में सुदामा चरित्र के वर्णन के साथ हुआ। कथाव्यास पंडित उपाध्याय द्वारा सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है। भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती ने दुनिया को यह संदेश दिया कि राजा हो या रंक दोस्ती में सब बराबर होते हैं। कृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता आज कहां है। कथा व्यास ने कहा कि द्वारपाल के मुख से पूछत दीनदयाल के धाम, बतावत आपन नाम सुदामा सुनते ही द्वारिकाधीश नंगे पांव मित्र की अगवानी करने राजमहल के द्वार पर पहुंच गए। यह सब देख वहां लोग यह समझ ही नहीं पाए कि आखिर सुदामा में ऐसा क्या है जो भगवान दौड़े दौड़े चले आए। बचपन के मित्र को गले लगाकर भगवान श्रीकृष्ण उन्हें राजमहल के अंदर ले गए और अपने सिंहासन पर बैठाकर स्वयं अपने हाथों से उनके पांव पखारे। कहा कि सुदामा से भगवान ने मित्रता का धर्म निभाया और दुनिया के सामने यह संदेश दिया कि जिसके पास प्रेम धन है वह निर्धन नहीं हो सकता।
सूरज मालवीय ने बताया की अंतिम दिवस कथा श्रवण हेतु दूर-दूर से श्रद्धालुओं ने पहुच कर कथा का लाभ उठाया जिसमे श्रोताओं की खूब भीड़ उमड़ी। जगदीश प्रसाद मालवीय ने भागवत कथा के सफल आयोजन पर सभी ग्राम वासियों का आभार माना।
अंतिम दिवस पूर्णहुति के बाद प्रसादी वितरण किया गया।