रायपुर (mediasaheb.com)| भगवान शिव का सावन से और उसमे भी सोमवार से बड़ा गहरा संबंध है, ऐसा बचपन से सुनते आए हैं। बचपन मे सावन सोमवार को स्कूल की आधे दिन की छुट्टी की सौगात से आज की भागमभाग जिंदगी, जिसमे इतनी भी फुर्सत नही कि कोई यही गा ले – ‘तेरी दो टकिया की नौकरी, मेरा लाखों का सावन जाए’, के बीच बहुत कुछ है जो आज भी समीचीन है। सावन सोमवार को शिव का स्मरण अवसर है कि हम अपनी प्राथमिकताओं और जीवन शैली पर पुनर्विचार करें।
आइए जरा गौर करें।
प्रथम सोमवार को महामायाधारी की पूजा होती है उससे ऋण से मुक्ति मिलती है। दूसरे सोमवार को महाकालेश्वर की पूजा होती है उससे पारिवारिक कलह से मुक्ति मिलती है, गृहस्थ जीवन सुखी होता है। तीसरे सोमवार को अर्धनारीश्वर की पूजा होती है, इससे संतान प्राप्ति और संतान सुरक्षा होती है और चौथे सोमवार को तन्त्रेश्वर शिव की पूजा होती है जिससे समस्त बाधाओं का नाश, रोग से मुक्ति व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
यह सूक्ष्म संकेत है कि जब जीवन में सावन आये (साधन उपलब्ध हों) तो सबसे पहले प्रयास ऋणों से मुक्ति का हो। यह ऋण भौतिक हो सकता है या किसी के अहसान के रूप में भावनात्मक हो सकता है। उसके बाद ही कलह से मुक्ति और गृहस्थ जीवन के सुख की आशा की जा सकती है। जब गृहस्थ जीवन सुखी हो तो ही वंश वृद्धि अभीष्ट है, और सुखसमृद्धि व समस्त बाधाओं से मुक्ति अंतिम चरण है।
आज हम निर्विकार शिव के दर्शन से निकल कर चकाचौंध की दुनिया मे आ गए हैं, जिसमें सुख समृद्धि पहला लक्ष्य है और उसकी शुरुआत ऋण से होती है। ऋण चुकाने की प्राथमिकता अंतिम है। फिर वो चाहे बैंक का ऋण हो या आत्मीय जनों के प्रेम का। शायद यही वो कारण है कि जीवन का अंत तो आ जाता है पर बाधाओं से मुक्ति नहीं मिल पाती।
वैसे ऋण मुक्ति का सच यह भी है कि कर्ज उतर जाता है, अहसान नहीं उतरता। दुनिया शिव का कितना भी अभिषेक कर ले, शिव ने जगत कल्याण के लिए जो विषपान किया, उससे उऋण नहीं हो सकती। इसलिए यह अवसर है कि हम पर भी जिसने भी कभी भी कोई अहसान किया हो, हम उसे याद रखें, मन ही मन अभिषेक करें। और ऋण मुक्त कैसे हों ..? एक तरीका है, जब कहीं कोई जरूरतमंद हो तो उसकी मदद करें।
पर ध्यान दें, शिव के विषपान और हमारे किये दान/एहसान के बीच फर्क है। हम कोई भी दान, एहसान अपनी सुविधा और सामर्थ्य को देख कर करते हैं। दान के लिये भी अपने जन्मदिन, बच्चों के जन्मदिन, वर्षगांठ, किसी तिथि का इंतजार करते हैं। सदाशिव जगत की आवश्यकता को देखते हैं, विषपान के लिए न उन्होंने शिवरात्रि का इंतजार किया न गणेश चतुर्थी का। हम भी अपनी सुविधा के दायरे से निकल कर कुछ कर सकें तभी कुछ सधेगा।
वैसे जरूरी नही कि सब चीजों के लिए सामर्थ्य की ही आवश्यकता हो। संकल्प भी पर्याप्त होता है। कोई साथी परेशानी में दिख रहा है, उसके साथ थोड़ा वक्त दे दें, थोड़ा उसका दुख बांट लें, थोड़ा समझें, थोड़ा समझायें। आज ही एक मित्र ने एक उद्धरण साझा किया -भरे हुये मन से ज्यादा खाली कुछ नहीं होता। शायद इतना ही कर लेंगे तो अवसाद में डूबे किसी साथी को आत्मघाती कदम उठाने से रोक पाएंगे, उस की रक्षा हो जाये, जीवन की किसी सूखती लता पर कली खिल जाए। सावन में किसी के तप्त मन पर जल छिड़कने का संकल्प भी ले सकें, तो जीवन मे हरियाली का आना तय है। हम शिव की तरह जहर तो पी नही सकते, पर दूसरों के जहर को कम तो कर सकते हैं। पर इसके लिए दो काम जरूरी हैं-
1. व्हाट्सएप / फेसबुक से बाहर आ कर समय देना होगा। सोशल होने के लिए सोशल मीडिया आवश्यक नहीं है।
2. याद रखना होगा कि हमारी संस्कृति में अभिषेक जहर पीने वाले का होता है, जहर उगलने वाले का नहीं।
शिव के दर्शन से प्रेरित हो कर समाज के लिए कुछ करने वालों, विष पीने वालों, स्वयं की लाभ हानि से परे सबकी जवाबदारी लेने को तत्पर, हमारे आस पास मौजूद शिव के अंश रूपों के सम्मान और प्रेम से अभिषेक की आवश्यकता और समष्टि के लिए व्यष्टि के कर्तव्य पर गत वर्ष चर्चा हुई थी। लेख बहुत लंबा न हो जाये, अत: पुन: उद्धरित नहीं कर रहा हूँ। फिर भी इतना अवश्य उद्धरित करूंगा कि ध्यान दें, शिव संहार के देवता हैं, पर जब देवशयनी के समय सारे देवता शयन में होते हैं, तो सृजन व संरक्षण जवाबदारी भी शिव ही लेते हैं। ऐसे ही यदि आप सामान्यत: तटस्थ प्रकृति के हैं, अंतर्मुखी हैं, तो भी देश काल परिस्थिति के चलते जब आस पास कुछ अनिष्ट की आशंका देखें, तो भूमिका में परिवर्तन अभीष्ट है।
सावन का यह सोमवार, आपके जीवन मे सुख का – प्रेम का संचार करे, सुंदर सत्य से साक्षात्कार हो और जीवन मे सफलता के साथ सार्थकता का समावेश हो, सदाशिव से यही प्रार्थना है।