पुणे (mediasaheb.com): महाराष्ट्र राज्य के सांस्कृतिक कार्य विभाग, सांस्कृतिक कार्य संचालनालय, एमआईटी-एडीटी विश्वविद्यालय के नाट्य विभाग और दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘रंग रूपक’ तीन दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद में भारतीय नाट्यशास्त्र पर गहन चर्चा संपन्न हुई। यह सम्मेलन नाट्य प्रेमियों के लिए एक विशेष आयोजन साबित हुआ।
भारतीय ज्ञान परंपरा में नाट्य संस्कृति के प्रचार हेतु “भारतीय ज्ञान परंपरा में नाट्यशास्त्र की भूमिका” विषय पर आयोजित इस परिसंवाद में राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित नाट्य निर्देशक व कलाकारों ने विद्यार्थियों और सहभागियों का मार्गदर्शन किया। उद्घाटन समारोह में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के पूर्व निदेशक पद्मश्री प्रो. वामन केंद्रे, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के कार्यकारी अध्यक्ष पद्मश्री प्रो. भरत गुप्त, एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. डॉ. राजेश एस, कुलसचिव डॉ. महेश चोपडे, संस्कार भारती के अभिजीत गोखले, सिने-नाट्य विभाग के अधिष्ठाता डॉ. मुकेश शर्मा और आयोजक डॉ. अमोल देशमुख उपस्थित रहे।
उद्घाटन समारोह की शुरुआत ध्वज पूजन और संबळ वादन से हुई, इसके बाद नटराज पूजन कर अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्र और संत ज्ञानेश्वर की प्रतिमा भेंट कर किया गया। परिसंवाद संयोजक एवं नाट्य विभाग प्रमुख डॉ. अमोल देशमुख ने उद्घाटन भाषण में नाट्यशास्त्र में भारतीय तत्वों और उसके महत्व पर प्रकाश डाला। प्रो. वामन केंद्रे ने अपने वक्तव्य में भरतमुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र को भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण धरोहर बताया और इसकी आज भी प्रासंगिकता पर जोर दिया। उन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली में नाट्यशास्त्र को अभिनय प्रशिक्षण का अभिन्न अंग बताया।
पद्मश्री प्रो. भरत गुप्त ने अपने बीज वक्तव्य में नाट्यशास्त्र के इतिहास और वर्तमान समय में इसकी महत्ता पर बल दिया। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने वाराणसी में एक नया केंद्र स्थापित किया है, जहां विशेष रूप से नाट्यशास्त्र का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस अवसर पर कुलगुरु डॉ. राजेश एस, कुलसचिव डॉ. चोपडे, अधिष्ठाता डॉ. मुकेश शर्मा और अभिजीत गोखले ने परिसंवाद को शुभकामनाएं दीं। उद्घाटन कार्यक्रम का संचालन अभिनेत्री कल्याणी कुमारी ने किया, जबकि आभार प्रदर्शन प्रशांत कुलकर्णी ने किया।
उद्घाटन के बाद, पद्मश्री वामन केंद्रे निर्देशित ‘मध्यम व्यायोग’ के हिंदी रूपांतरण “मोहे पिया” का मंचन उर्मिला ताई कराड सभागार में हुआ, जिसे दर्शकों से भरपूर सराहना मिली।
दूसरे दिन भी नाट्य प्रेमियों के लिए रहा खास
परिसंवाद के दूसरे दिन ‘नाट्यशास्त्र अभिनय पक्ष’ विषय पर प्रख्यात शास्त्रीय नर्तक पद्मश्री शशधर आचार्य, प्रो. सुज्ञान कुमार मोहंती, डॉ. गौतम चटर्जी ने मार्गदर्शन किया। उन्होंने नाट्यशास्त्र में अभिनय के विभिन्न पहलुओं को विस्तृत रूप से समझाया। दोपहर के सत्र में गुरु शमा भाटे, डॉ. प्रसाद भिडे और प्रो. संध्या रायते ने ‘नाट्यशास्त्र-प्रयोग पक्ष’ पर उपस्थितों को बहुमूल्य जानकारी दी। इसके बाद गुरु शमा भाटे की संकल्पना पर आधारित ‘राम-लल्ला’ भरतनाट्यम नृत्य-नाटिका का मंचन हुआ, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
तीसरे दिन हुआ भव्य समापन
परिसंवाद के तीसरे दिन वरिष्ठ नाट्य विशेषज्ञ डॉ. संगीता गुंदेचा और पियाल भट्टाचार्य ने ‘नाट्यशास्त्र के सौंदर्य पक्ष’ पर मार्गदर्शन किया। समापन सत्र में संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा, पद्मश्री भरत गुप्त और अभिजीत गोखले की उपस्थिति रही। निरीक्षक प्रतिनिधि डॉ. जयंत शेवतेकर और डॉ. संयुक्ता थोरात ने अपने विचार साझा किए।
इसके पश्चात उर्मिला ताई कराड सभागार में डॉ. संगीता गुंदेचा निर्देशित ‘नाट्य उत्पत्ति’ और डॉ. प्रसाद भिडे निर्देशित ‘देवशुनी’ नाटकों का मंचन किया गया, जिसे दर्शकों की जबरदस्त सराहना मिली।
इस परिसंवाद के सफल आयोजन के लिए एमआईटी-एडीटी विश्वविद्यालय के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. डॉ. मंगेश कराड, कुलगुरु डॉ. राजेश एस, कुलसचिव डॉ. महेश चोपडे, महाराष्ट्र राज्य सांस्कृतिक कार्य संचालनालय के निदेशक विभीषण चवरे, दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर की निदेशक आस्था गोडबोले कार्लेकर, संस्कार भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री अभिजीत गोखले का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
सम्मेलन में डॉ. जयंत शेवतेकर, डॉ. संयुक्ता थोरात, डॉ. अनुराधा पत्की, डॉ. योगिता महाजन, डॉ. संपदा कुलकर्णी, प्रो. रेणुका बोधनकर, अनंत पणशीकर, प्रवीण कुलकर्णी, कविता विभावरी, विशाल तराळ, उदय शेवडे सहित पूरे भारत से अनेक विश्वविद्यालयों के नाट्य विभागों के विद्यार्थी, प्राध्यापक, शोधकर्ता और कलाकार बड़ी संख्या में शामिल हुए।
इस आयोजन की सफलता में नाट्य विभाग प्रमुख डॉ. अमोल देशमुख, समन्वयक प्रो. सुनीता नागपाल, प्रो. निखिल शेटे, प्रो. अनिर्बाण बनिक और प्रो. किरण पावसकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विशेष प्रस्तुति: परिसंवाद के तीसरे दिन ‘नाट्य उत्पत्ति’ और ‘देवशुनी’ नाटकों की प्रभावशाली प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और इस सम्मेलन को एक यादगार अनुभव बना दिया।