नई दिल्ली, ( mediasaheb.com) । सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम ( CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर फैले भ्रम के बीच हर दस वर्ष में होने वाली नियमित जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) प्रक्रिया के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए स्पष्टीकरण दिया है।
सरकार का कहना है कि इसके लिए किसी भी व्यक्ति को अपनी पहचान से जुड़े दस्तावेज, कागज या फिर बायोमेट्रिक जानकारी नहीं देनी होगी। वर्तमान में एनपीआर आंकड़ों के आधार पर देश में एनआरसी तैयार किए जाने का कोई प्रस्ताव नहीं है, कोई बायोमैट्रिक एकत्र नहीं किया जा रहा है।
सरकार का कहना है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) से कोई लेना-देना नहीं है। यह एक प्रक्रिया है जिसकी शुरुआत यूपीए सरकार में हुई थी। सभी राज्यों ने इसे स्वीकार किया है। इसे नोटिफाई किया गया है और इसको लेकर प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चल रहे हैं। इसके अनुसार एनपीआर सामान्य निवासियों का एक रजिस्टर है जो कि गांव, नगर, उप-जिला, जिला और राज्य जैसे अवस्थिति विवरणों के साथ जुड़ा है।
सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का उपयोग और लाभ बताया है। उनका कहना है कि यह विभिन्न सरकारी योजनाओं व कार्यक्रमों के अधीन मिलने वाले लाभ में सुधार लाता है। एनपीआर को जन्म और मृत्यु के पंजीकरण के साथ जोड़ने से वास्तविक काल जनगणना रजिस्टर उपलब्ध होगा, जिससे भविष्य में रजिस्टर आधारित जनगणना का मार्ग प्रशस्त होगा। विभिन्न लाभकारी सरकारी योजनाओं के साथ जोड़कर एनपीआर डाटा को पारदर्शी और सामाजिक लाभों की कुल सुपुर्दगी के लिए उपयोग में लाया जा सकेगा।
सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) एनपीआर डाटा पर आधारित है। बाद में इसका विभिन्न प्रकार के लाभों का पता लगाने के लिए किया जाता है। परिवार-वार एनपीआर डाटा का उपयोग आयुष्मान भारत, जनधन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्जवला योजना, सौभाग्य इत्यादि जैसी योजनाओं के बेहतर लक्ष्य निर्धारण के उपयोग में लाया जाता है। इससे विभिन्न राज्यों तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मिजोरम में चल रही सार्वजनिक वितरण प्रणाली योजना के लिए और राजस्थान की भामाशाह योजना के लिए एनपीआर का परिवार डाटा उपलब्ध कराया जाता है। (हि.स.)