नई दिल्ली (mediasaheb.com)। भारत सरकार ने भारतीय हिमालयी क्षेत्र में हिमनदों के पिघलने सम्बन्धी अध्ययन किए हैं, तथा उनके आंकड़े रखती है। भारतीय संस्थान / विश्वविद्यालय / संगठन (भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, वाडिया हिमालय भूवज्ञिान संस्थान, राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केन्द्र, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, भारतीय विज्ञान संस्थान आदि) वैज्ञानिक अध्ययनों समेत हिमनद पिघलने पर नज़र रखने के लिए हिमालय हिमनदों की निगरानी करते हैं, तथा वे हिमालयी हिमनदों में तेज गति से समरूपी द्रव्यमान में कमी आने की सूचना देते हैं। हिंदु कुश हिमालयी हिमनदों की औसत सिकुड़ने की दर14.9 थ् 15.1 मीटर प्रति वर्ष है; जो इंडस में 12.7 थ् 13.2 मीटर प्रति वर्ष, गंगा में 15.5 थ् 14.4 मीटर प्रति वर्ष तथा ब्रह्मपुत्र रीवर बेसन्सि में 20.2 थ् 19.7 मीटर प्रति वर्ष बदलती रहती है। तथापि, काराकोरम क्षेत्र के हिमनदों की लम्बाई में तुलनात्मक रूप से बहुत मामूली परिवर्तन (-1.37 थ् 22.8 मीटर प्रति वर्ष) देखा गया है, जिससे स्थिर स्थितियों के संकेत मिलते हैं।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय अपने केन्द्र राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केन्द्र के माध्यम से वर्ष 2013 से पश्चिमी हिमालय में चंद्रा बेसिन (2437 किमी2 क्षेत्र) में छह हिमनदों की निगरानी कर रहा है। क्षेत्रीय प्रयोग करने तथा हिमनदों में अभियान संचालित करने के लिए चंद्रा बेसिन में ‘हिमांश’ नामक एक अत्याधुनिक फील्ड रिसर्च स्टेशन की स्थापना की गई, तथा यह वर्ष 2016 से कार्य कर रहा है। वर्ष 2013 से 2020 के दौरान यह पाया गया कि वार्षिक द्रव्यमान संतुलन (पिघलना) की दर -0.3थ्0.06 मीटर जल समतुल्य प्रति वर्ष ८-1 के बीच में रही। इसी प्रकार, वर्ष 2000-2011 के दौरान बास्पा बेसिन में हिमनद औसतन प्त50थ्11 मीटर की दर से पिछले, तथा -1.09थ् 0.32 े ६.ी. ं-1 की औसत वार्षिक द्रव्यमान कमी देखी गई। नौ हिमनदों पर द्रव्यमान संतुलन मूल्यांकन से हिमनदों के पिघलने सम्बन्धी अध्ययन किए हैं, तथा साथ ही हिमालयी क्षेत्र के 76 हिमनदों के प्रतिसरण / अग्रसरण की निगरानी सम्बन्धी अध्ययन किए हैं। यह प्रेक्षित किया गया है कि विभन्नि क्षेत्रों में अधिकांश हिमालयी हिमनद पिघल रहे हैं / अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग दरों से उनका संकुचन हो रहा है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसस्टिम तथा नेशनल मिशन ऑन स्ट्रैटेजिक नॉलेज फॉर क्लाइमेट चेंज के अन्तर्गत हिमालयी हिमनदों का अध्ययन करने के लिए विभिन्न अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं की सहायता की है। कश्मीर विश्वविद्यालय, सिक्किम विश्वविद्यालय, ककरू तथा हकऌॠ द्वारा कुछ हिमालयी हिमनदों पर किए गए द्रव्यमान संतुलन अध्ययनों में पाया गया कि अधिकांश हिमालयी हिमनद पिघल रहे हैं या अलग-अलग दरों पर उनका संकुचन हो रहा है।
उत्तराखंड में कुछ हिमनदों की निगरानी कर रहा है, जिसमें यह पाया गया कि भागीरथी बेसिन में डोकरियानी हिमनद वर्ष 1995 से 15-20 मीटर प्रति वर्ष की दर से सिकुड़ हो रहा है, जबकि मंदाकिनी बेसिन में चोराबारी हिमनद वर्ष 2003 से 2017 के दौरान 9-11 मीटर प्रति वर्ष की दर से सिकुड़ रहा है। हकऌॠ सुरू बेसिन, लद्दाख में डुरुंग-ड्रुंग तथा पेनसिलुंगपा हिमनदों की भी निगरानी कर रहा है, जो क्रमश: 12 मीटर प्रति वर्ष तथा प्त 5.6 मीटर वर्ष की दर से सिकुड़ हो रहा है। पूरे हिमालय में कैचमेंट एवं बेसिन स्केल पर हिमनदों के पिघलने से कम होने वाले बर्फ का मूल्यांकन करने के लिए विभिन्न अध्ययन संचालित कर रहा है।
जब हिमनद पिघलते हैं, तो ग्लेशियर बेसिन हाइड्रोलॉजी में परिवर्तन होता है, जिसका हिमालयी नदियों के जल संसाधनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है, तथा स्राव में अंतर, आकस्मिक बाढ़ एवं अवसाद के कारण हाइड्रोपॉवर प्लांट्स एवं डाउनस्ट्रीम वॉटर बजट पर प्रभाव पड़ता है। इससे हिमनद झीलों के परिमाण एवं संख्या बढ़ने, आकस्मिक बाढ़ में तीव्रता आने, तथा ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स, उच्च हिमालयी क्षेत्र में कृषि कार्यों पर प्रभाव आदि के कारण भी हिमनद सम्बन्धी जोखिमों के खतरे में वृद्धि होती है।