(पुण्यतिथि )
तारीख़ थी 29 अप्रैल सन 1983, स्थान था लंदन का ऐतिहासिक रॉयल अल्बर्ट हॉल जिनको हॉल में प्रवेश मिला वो अपने आप को खुदकिस्मत समझ रहें थे हज़ारो भारतीय ,पाकिस्तानियों की भीड़ और गोरे पूछ रहें थे, ये कौन है?? हमेशा एक दूसरे से दुश्मनी निभाने वाले पाकिस्तानी और भारतीय आज एक साथ है इस कभी ख़त्म न होने वाले सम्मोहन का नाम था जगजीत सिंह,चित्रा सिंह दरअसल जगजीत सिंह की उत्साह से भरी, महोब्बत को बयां करती गज़ले इसी दौर में गायी गयी, जगजीत सिंह और साथ में चित्रा जी , एक मदहोश करने वाला आलम उनकी ग़ज़ल गायकी का चरम था वो दौर
अब आप कहेंगे, उस दौर में गायी ग़ज़लों से बेहतर ग़ज़ल जगजीत सिंह ने बाद में भी गायी ,पर सच यही है जो कुछ उन्होंने चित्रा के साथ गाया, वही उनका स्वर्णिम दौर था, उस दौर में उन दोनों की साथ गायी गज़ले उनकी पहचान है, वो गज़ब का मिज़ाज , हर लफ्ज़ में बयां होती जिंदगी, दोनों को सच्चे अर्थों में ‘मेड फॉर इच अदर’ बनाती है, इस लंदन के कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग सुन रहा था ,ऐसा लगा मानो दोनों कही आस पास ही है।
उन कदमो की आहट पहचान लेते है
कौन कहता है महोब्बत की जुबां होती है
किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह..
ये उस दौर की गज़ले है जब दोनों साथ गाया करते थे
इस के बाद का दौर, ईश्वर वो दिन किसी माँ बाप को न दिखाए, उनका इकलौता बेटा ज़िन्दगी सेे रुखसत क्या हुआ, चित्रा ने तो गाना ही छोड़ दिया…
जगजीत अकेले गाने लगे दार्शनिक , नैराश्य भाव वाली गज़ले, वो कैसेट ,टेप रिकॉर्ड का दौर था ,दिवानगी ऐसी की शायद ही उनका कोई ग़ज़लों का एलबम मेरे और मेरे छोटे भाई के पास न हो।
मिर्ज़ा ग़ालिब ,निदा फ़ाज़ली की कलम की आवाज़ जगजीत बने ,लोगो ने पसंद भी किया, पर सब से बेहतर वही था जो चित्रा के साथ गाया, दोनों के सम्मान में बस इतना ही
तुम को देखा तो ये ख्याल आया, जिंदगी धूप तुम घना साया….
*संजय अनंत ©*