सब से पहले, हिन्दी व मराठी सिनेमा के बेहतरीन कलाकार सचिन जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई..
एक हॅसमुख, भोला सा चेहरा, जो भारतीय दर्शकों के मन मंदिर में इतने दशकों से स्थापित है, उनकी बतौर नायक यादगार फिल्मों में
नदिया के पार (1982)
गीता गाता चल (1975)
अँखियो के झरोखे से(1978)
ये सभी फिल्मे सुपरहिट रही, उनकी पहचान बनी,इन फिल्मों का संगीत आज भी लोकप्रिय है, इन पर कभी विस्तार से चर्चा करेंगे, आज उनकी एक बेहतरीन, कभी न भूलने वाली फ़िल्म बलिका बधु (1976)
ये बंगाल के रसोगुल्ला ,सोन्देश की तरह ‘मिष्ठी’….रुकिए जरा…बालिका ‘वधु’ नहीं ”बधु’ ..बांग्ला में हिन्दी का ‘व’ नहीं होता… teen age love पर बनी ग्रामीण भारत को रेखांकित करती फिल्म ‘बालिका बधु’
सचिन और उनकी बहुत ही प्यारी सी उनकी बचपने से भरी,निश्चल बालिका वधु, इस फ़िल्म में वे जीवंत तरुण नव विवाहित युगल प्रतीत होते है
बंगाली कथाकार बिमल कर की उपन्यास पर बनी, पहले बांग्ला में और फिर हिन्दी में, जो बांग्ला में बनी उस में बालिका वधु थी मौसमी चटर्जी जो बाद में हिन्दी फिल्मों में सफल अभिनेत्री बनी और हिन्दी में बनी फ़िल्म में बालिका वधु थी रजनी शर्मा,जो गुमनाम रह गयी
खैर बाल विवाह फिर गौना
ये सब बाते अब पुरातनकाल की हो गयी, हमारी दादी माँ की पीढ़ी तक यहीं प्रथा थी, विवाह अवश्य कम आयु में होता था, बेटी मायके की रहती थी , बाद में तरुणा होने पर उसे बिदा किया जाता था,
ब्रिटिश शाषित भारत के बंगाल प्रान्त के किसी समृद्ध गाँव पर फिल्माई ये कथा आपको एक अगल दुनिया में ले जाएगी, संयुक्त परिवार की हमारी समृद्ध , जीवन को एकसूत्र में बांधने वाली परम्परा नष्ट हो गयी, ये ब्रिटिश शाषित भारत के कालखंड की कथा है ,इस फिल्म में सभी का अभिनय इतना सहज है की लगता नहीं हम फिल्म देख रहे हो , संगीत तो उम्दा है ही , यदि नहीं देखी तो अवश्य देखिये , मुझे ह्रदय से धन्यवाद देगे , ये सबसे मीठा गाना ,जो अमित कुमार का पहला लोकप्रिय गीत माना गया और बिनाका गीत माला में भी लोकप्रिय रहा ….
बड़े अच्छे लगते हैं
ये धरती, ये नदिया, ये रैना और तुम
हम तुम कितने पास हैं, कितने दूर हैं चाँद सितारे
सच पूछो तो मन को झूठे लगते हैं ये सारे
मगर सच्चे लगते हैं, ये धरती.. .. ..
तुम इन सब को छोड़ के कैसे कल सुबह जाओगी
मेरे साथ इन्हें भी तो तुम याद बहोत आओगी
बड़े अच्छे लगते हैं .. ..*संजय ‘अनंत ‘©*