नई दिल्ली, (mediasaheb.com) ।इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने सुप्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना तंजावुर बाला सरस्वती के जन्मशती के अवसर पर दो दिवसीय “संस्कृति संवाद श्रृंखला” का आयोजन किया। दो दिन तक चले इस आयोजन के पहले दिन एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। उसके बाद बाला सरस्वती की शिष्य नंदिनी रमणी व उनके शिष्यों ने ‘पाद मंजरी’ के माध्यम से बाला सरस्वती को नृत्यांजलि दी ।
परिचर्चा सत्र का शुभारंभ करते हुए
डॉ. जोशी ने कहा कि “केंद्र
ने राय साहब की प्रेरणा से देश के उन सांस्कृतिक मनीषियों पर संस्कृति संवाद
शृंखला का आयोजन कर रही है, जिनका भारत
की सांस्कृतिक विरासत में महत्वपूर्ण योगदान रहा है और नि:संदेह बाला सरस्वती जी
भारतीय कला व संस्कृति की राजदूत थीं। उनके जन्मशती के अवसर पर आईजीएनसीए संस्कृति
संवाद श्रृंखला की 12वीं कड़ी
का आयोजन कर रही है। ये बाला जी का ही प्रभाव है कि आज इस मंच पर देश की
ख्यातिलब्ध नृत्य मूर्तियां विराजमान हैं।”
इस कार्यक्रम कि सूत्रधार डॉ
सोनल मानसिंह ने परिचर्चा में भाग लेते हुए कहा, “बाला जी के जैसे न कोई था, न कोई होगा, वो
बियॉन्ड द ब्यूटीफुल थीं। वह दुनिया की तीन सबसे प्रसिद्ध नृत्यांगनाओं में से एक
थी। आज हमें ये सोचने की जरूरत है कि उन्होनें अपनी कृतियों से हमे क्या-क्या दिया
है।”
डॉ सरोजा वैद्यनाथन ने बाला जी
के साथ जुड़े अपने संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि बाला अम्मा मेरे नृत्य के
क्षेत्र में कुछ करने की प्रेरणा का स्रोत थी। मेरा परिवार भले ही नृत्य को देखना
पसंद करता था लेकिन वो नही चाहता था कि मैं इस फील्ड में जाऊं लेकिन जब मैंने बाला
जी को देखा तो मैने उन जैसे बनने की सोच ली।
डॉ पद्मा सुब्रमण्यम ने बाला जी के
बारे में बताते हुए कहा कि वो केवल नृत्यांगना नहीं थीं, वो अभिनय सरस्वती, संगीत सरस्वती थीं।
कथक गुरु पंडित बिरजू महाराज ने
बाला सरस्वती के साथ अपने पूर्व संस्मरण को साझा करते हुए कहा कि वो अद्भुत कलाकार
थीं, उनके अंदर एक सच्चाई थी। बहुत कम ही
कलाकारों में यह देखने को मिलती है। उनसे जुड़ी यादें कभी पुरानी नही हो सकतीं। वो
आज भी ताज़ा हैं।
कार्यक्रम के दूसरे दिन बाला
सरस्वती के जीवन पर भारत के प्रसिद्ध फ़िल्मकार सत्यजित रे द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘बाला’ का प्रदर्शन किया गया। उनके जीवन पर आधारित यह एक मात्र फ़िल्म है।
इसके बाद नंदिनी रमणी ने ‘द डांस
लेगेसी ऑफ बाला’
सत्र में अपने शिष्यों के साथ
बाला जी द्वारा कंपोज्ड खास नृत्य शैलियों का प्रदर्शन किया। बाला सरस्वती पर
केन्द्रित इस दो दिवसीय संस्कृति संवाद श्रृंशला का समापन ‘बाला-द कोंसुम्मेट म्यूजीशियन’ सत्र से हुआ, जिसमें दक्षिण भारतीय शैली की
प्रसिद्ध संगीतज्ञ चारुमति रामचंद्रन ने बाला के संगीत की खासियतों के बारे में
बताया।(हि.स.)