रायपुर (mediasaheb.com)| रामायण में हनुमान जी ने श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता करवाई थी। पहली मुलाकात में श्रीराम ने सुग्रीव से कहा कि मैं मेरी पत्नी सीता की खोज में जंगल-जंगल भटक रहा हूं, लेकिन आप तो राजा हैं ।
आप जंगल में क्यों रह रहे हैं? पहले सब ठीक था, लेकिन एक दिन हमारे राज्य में एक राक्षस आ गया तो बालि उसे मारने गया। सुग्रीव ने श्रीराम से अपना सारा वृतांत बताया कि कैसे भाई को गलतफहमी हुई।
श्रीराम ने सुग्रीव की पूरी बात सुनी और कहा कि ठीक है मैं आपकी मदद करूंगा। पहले तो सुग्रीव को श्रीराम पर भरोसा नहीं हुआ। वह सोचने लगा कि बाली तो इतना बलवान है, राम उसे कैसे मार सकते हैं? ये कैसे मेरी मदद कर पाएंगे ? सुग्रीव के चेहरे पर संदेह देखकर श्रीराम ने कहा कि सुग्रीव, अब मैं तुम्हारा मित्र हूं। मित्र के छह गुण हैं। पहला, अपने दोस्त के दुःख में दुखी होना। दूसरा, मित्र के दुःख को दूर करने का प्रयास करना। तीसरा, मित्र को गलत रास्ते पर जाने से रोकना । चौथा, लेन-देन के समय शंका न करना। पांचवां, हमेशा दोस्त का भला करना और छठा गुण है, विपत्ति के समय दोस्त के साथ खड़े रहना। ये सभी अच्छे मित्र के लक्षण हैं और तुम मुझे अपना मित्र समझ सकते हो ।
श्रीराम की बातें सुनकर सुग्रीव को उनकी बातों पर भरोसा हो गया। इसके बाद सुग्रीव ने भी सीता की खोज में मदद करने का वचन दिया। दोनों मित्रों ने एक-दूसरे की परेशानी को हल करने का संकल्प लिया। (स्त्रोत-शाश्वत राष्ट्रबोध)