फिल्म ‘शोले’ गोल्डन जुबली वर्ष (1975)
50 वर्ष पूर्व रिलीज़ हुई थी फिल्म ‘शोले’ का जादू अब भी बरक़रार है ,आप में से कई ऐसे होंगे जिन्हें इस फिल्म के कई डायलॉग मुंह जुबानी याद होंगे , फिल्मे तो कई आई ,पसंद भी की गई किन्तु शोले का सम्मोहन यथावत है, शोले में कुछ भी कलात्मक नहीं है ,वो एक विशुद्ध बम्बईया मनोरंजक फार्मूला फिल्म है।
पर रुकिए जनाब! इस फिल्म में बहुत कुछ ऐसा था कि वो इसे कालजयी बना गया , इस फिल्म के फाइटिंग सीन हॉलीवुड को टक्कर देते है, फिल्म के आरम्भ में मालगाड़ी के दोनों तरफ घोड़ो पर डाकू और रेल में सवार ठाकुर, जय और वीरू। ये फाइटिंग सीन ऐसा है कि 1975 में बनी ये फिल्म आज 50 साल बाद भी रोमांचित करती है, सधी हुई पटकथा और बेहतरीन डायलॉग अदायगी मानो सोने पे सुहागा
अमज़द खान तो एकदम नौसिखिये थे धर्मेन्द्र और संजीव कुमार के सामने, किन्तु अपने दमदार अभिनय से सब पर भारी पड़े ।
हर सीन यादगार
धर्मेन्द्र की पानी टंकी पर चढ़ की गई कॉमेडी…
अमिताभ का बसंती की मौसी के पास। वीरू का रिश्ता ले कर जाना..
‘हम अंग्रेज के ज़माने के जेलर है..😄’असरानी
इस फिल्म का हर किरदार अमर हो गया। अँगरेज़ के ज़माने के जेलर असरानी ,सुरमा भोपाली जगदीप या बहुत छोटे किरदार कालिया ,सांभा ,बसंती की मौसी लीना मिश्रा सभी अमर हो गए , इस फिल्म का HMV रिकॉर्ड भी उस ज़माने में डायलॉग के साथ आया, समारोह या ऐसे ही बाजार में जब इसे प्ले किया जाता ,भीड़ जमा हो जाती ।
लोकप्रियता के पैमाने पर कहना होगा शोले “न भूतो न भविष्यति “, इतने साल बाद भी फिल्म के डायलॉग लोगो की जुबां पर हो , हर सीन लोगो के ज़हन में हो तो वो शोले ही है।
आप बस इतना कहिये
“कितने आदमी थे”
सामने से बेहिचक
जवाब आएगा
“सरदार दो” और तुम तीन….
भारतीय सिनेमा की सब से कामयाब फिल्म
*डॉ. संजय अनंत©*