14 वे बीसीएस के पहले सत्र में भारतीय राजनीतिक विचारधारा : वाम, दक्षिण या दृष्टि से बाहर विषय पर संगोष्ठी
पुणे (mediasaheb.com) | देश में सत्ता और सत्य यही दो ही तरह की राजनीति होती है. सत्य की विचारधारा में बहुत संघर्ष है. हालांकि इस विचाराधारा को ध्यान में रखकर काम करें. राजनीति में तभी प्रवेश करे जब आप में अपने विचारों के साथ सत्ता की राजनीति के खिलाफ लडने का साहस और इच्छा रखते हो. आप सत्ता की राजनीति से हाथ मिलाकर आरामदायक जीवन जी सकते है. हालांकि जब आप सत्य को समझ लेंगे, तो आप पाएंगे कि महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध, डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर के बताए रास्ते पर चलने का अवसर मिलेगा. यह राय नेशनल स्टुडेंटस युनियन ऑफ इंडियाचे प्रभारी डॉ. कन्हैया कुमार ने रखें.
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी, पुणे और एमआईटी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट, पुणे द्वारा आयोजित १४वीं भारतीय छात्र संसद में भारतीय राजनीतिक विचाराधाराः वाम, दक्षिण या दृष्टि से बाहर विषय पर वे बोल रहे थे. इस संगोष्ठी में हिमाचल प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया, सांसद राजकुमार रोत, सांसद एड. ए.ए.रहीम ने भाग लिया. इस दौरान छात्र प्रतिनिधियों ने अपने विचार रखे.
डॉ. कन्हैया कुमार ने कहा, हमारे देश की राजनीति विचारधारा से ज्यादा समझौते की हो गई है. देश के राजनेता राजनीति को भौतिकी, रसायन, विज्ञापन और गणित की तरह मानते है और समय समय पर इनका प्रयोग भी करते है.
राजनीतिक संरचना में दो प्रकार के लोग होते हैं. एक तो लाभार्थी है, और दूसरी वह पीढी है जो राजनीति से परिचित है. अगर आपको लाभ मिल रहा है तो आप राजनीति में मीठे गीत गाते हैं. हालॉकि यदि आप उसी राजनीति से परेशान हैं, तो आप उसके खिलाफ खडे होंगे. इसलिए राजनीति दो प्रकार की होती है, एक शक्ति की ओर दूसरी सत्य की है. सत्य की राजनीति ही विरोध की राजनीति है और यही सच्ची विचारधारा है. भारत में समानता और विचारधारा की विचारधारा बहुत पुरानी है. इसलिए आपसे किसी भी देश से आयात करना होगा. विचारधारा के बिना लोगों और कुत्तों में काई अंतर नहीं है. इसलिए यदि कोई विचारधारा न होती, तो आपके पास प्रश्न पूछने या प्रतिरोध करने का साहस न होतो. लडाई हमेशा सत्य और शक्ति के लिए रही है. हम किस युग में पैदा हुए यह विचारधारा के बारे में अधिक है. इसलिए हमें अपनी विचारधारा सावधानी से सुनने की जरूरत है.
कुलदीप सिंह पठानिया ने हा, हम इतिहास पर ध्यान नहीं दे सकते. हमें इस बात पर विचार करना होगा कि वर्तमान समय में हम देश के लिए क्या करना चाहते है. आजादी के समय हमारी जनसंख्या 40 करोड थी जो बढकर 140 करोड हो गई है. यदि हम बिहार, यूपी,हिमाचल प्रदेश के लोगों की जीवन स्थितयों या आर्थिक स्थिति की तुलना महाराष्ट्र के लोगों की स्थिति से करे तो हमें उत्तर मिल जाएगा. यह महत्वपूर्ण है कि सभी राज्य समान रूप से विकास करें. हालांकि ऐसा होता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा है. छोटे और पिछडे राज्यों में लोगों को आज भी भोजन, वस्त्र और मकान की तीन आवश्यकताओं के लिए संघर्ष करना पडता है. वहा अभी भी रोजगार की समस्या है. हालाँकि हम देश विकास की बडी बडी बातें करते है. हमें देश की वास्तविक स्थिति को ध्यान में रखते हुए कदम उठाने की जरूरत है. हमारे देश को ऐसी विचारधारा की जरूरत है जो दक्षिणपंथी या वामपंथी न हो, बल्कि लोगों और मानवता के बारे में सोचे. यह अच्छी बात है कि आप राजनीति में जाने में रूचि रखते है, भले ही आप भविष्य में जनप्रतिनिधि न बन पाएं लेकिन इस बात पर जरूर विचार करें कि क्या आप देश के लिए अच्छा योगदान देना चाहते है.
राजकुमार रोत ने कहा कि देश के पिछले 10 से 15 वर्षों के इतिहास पर नजर डालें तो राजनीतिक विचारधारा कमजोर हो रही है और निजी स्वार्थ बढ रहे हैं. एक जन प्रतिनिधि 15 वर्षों तक किसी राजनीतिक दल का कार्यकर्ता होता है. हालांकि सत्ता या राजनीतिक लाभ के लिए लोगों द्वारा आचानक अपनी विचारधारा को त्याग कर किसी अन्य पार्टी में शामिल होने के मामले बढ़ रहे है. हमारा शरीर एक राजनीतिक दल की तरह है और इसकी आत्मा राजनीतिक विचारधारा है. ऐसी स्थिति में, बिना राजनीतिक विचारधारा वाली पार्टी आत्मा के बिना शरीर की तरह है, और वह भविष्य में जीवित नहीं रह पाएगी. हर विचारधारा में कुछ अच्छी बाते होती हैं. हम उन अच्छी चीजों का लाभ उठाना चाहते हैं. वामपंथी विचारधार गरीबों के प्रति चिंतित है, जबकि दक्षिणपंथी विचारधारा प्रबल राष्ट्रवादी है. देश में गरीबी की स्थिति गंभीर है. ऐसी स्थिति में आपकी विचारधारा चाहे जो भी हो, हमें देश को मजबूत करने और उस देश के गरीब लोगों का विकास करने की जरूरत है. गरीबों को उनका अधिकार मिलना चाहिए. रोत ने कहा कि यह समझना विकास करने की जरूरत हैं. गरीबों को उनका अधिकार मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह समझना जरूरी है कि जब तक हम जातिगत राजनीति से आगे नहीं बढेंगे, तब तक हमारा देश विश्व गुरू नहीं बन पाएगा.
एड.ए.ए.रहीम ने कहा, देश के अमीर लोग और अमीर हो रहे हैं और उनकी संपत्ति दोगुनी हो गई है. देश की आधी से अधिक सम्पत्ति मुठ्ठीभर लोगोंं के पास हैे. वहीं दूसरी और गरीब और वंचित लोग जीवन रहने के लिए संघर्ष कर रहे है. वामपंथी विचारधारा गरीबों और आर्थिक रूप से वंचितों पर केंद्रित है. तदनुसार देश के सभी वर्गों के नागरिकों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से नीतियों तैयार की जाती है. हालांकि, दक्षिणपंथी विचारधारा में धनी लोगाों पर विचार किया जा रहा हैं,तथा उनके लाभ के लिए लक्ष्य और नीतियां तैयार की जा रही है. यही कारण है कि अमीर लोग दक्षिणपंथी राजनेताओं का समर्थन करते है. ऐसी स्थिति में, हमें युवा पीढी के रूप में सोच समझकर भूमिका निभानी होगी. हमें उन लोगों के बराबर आना होगा जो गरीबों पर ध्यान केंद्रित करके शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग और पर्यावरण जैसे सभी क्षेत्रों में नागरिकों को लाभ प्रदान करते है. चाहे वह कोई भी विचारधारा हो, वामपंथी या दक्षिणपंथी. हालाँकि मानवता की विचारधारा को मत भूलना. उन्होंने कहा कि यदि हम इस विचारधारा के सूत्र को पकडकर आगे बढ़ेंगे तो हमारे देश के सभी वर्गों के नागरिक प्रगति करेंगे.