रायपुर (mediasaheb.com)| अभी घोषणा हुई..वहिदा जी को दादा साहेब फाल्के अवार्ड.. यानि उनकी खूबसूरत अदाकारी को, उनकी बेहतरीन शख्शियत को सलाम..
कई महीनों के बाद ब्लॉग लिख रहा हूँ.. व्यस्तता के चलते। पर लेखनी आज शायद अपने आप चलने लगी। वहिदा रहमान जी को की दिली मुबारक बाद.🌹। ऊपर वाले ने आप को खूबसूरती से नवाज़ा हैं, दुआ हैं आप की आगे की ज़िन्दगी भी पुर सुकून बीते.. आमीन । वहिदा जी ने कोई एक्टिंग का कोर्स नहीं किया, इस हैदराबाद की लड़की को गुरुदत ने मौका दिया और फिर वो गुरुदत प्रोडक्शन से मानो हमेशा के लिए जुड़ गयी। बेहतरीन अदायगी, तीखे नाक नक्श, चेहरे पर कातिल मुस्कान और मोहतरमा चुंकि साउथ से आती हैं तो बेहतरीन डांसर भी। कभी कभी हमें किस्मत को भी मानना पड़ता हैं.. अब वहिदा को ही लीजिये।
इस दौर की सारी बेहतरीन फ़िल्म उन्हें मिली, गुरुदत जैसे जीनियस इंसान के साथ काम करने का मौका मिला.। उस दौर की दूसरी फिल्मो मे कुछ टेलेंट दिखाने की गुंजाईश ख़ासकर अभिनेत्रियों के लिए कम ही होती थी.। एक़ तय शुदा नाटकीय अंदाज़ पर फिल्मे बनती थी, अति भावुकता से लबरेज़.. उफ़ यदि नूतन को छोड़ दिया जाय तो किसी और को कुछ ख़ास मौका नहीं मिला जो वहिदा जी को मिला। बिमल मित्र की अमर कृति ‘साहिब बीवी गुलाम’, प्यासा, कागज़ के फूल जैसी यादगार फिल्मे गुरुदत के साथ। और फिर यदि देव साहब के साथ फ़िल्म ‘गाइड’ को याद न किया जाय तो, हमारी बात अधूरी रह जाएगी। पूरी दुनियां मे नाम कमाया इस फ़िल्म मे।आज जीने की तम्मना हैं.. आज मरने का इरादा हैं.. खैर.. यदि खूबसूरती देखना हो वहिदा की तो कक्लासिक ‘चौदहवी का चाँद’, इस फ़िल्म के कुछ गानो को कलर भी किया गया हैं जो यू ट्यूब मे उपलब्ध हैं यक़ीनन वो चौदहवी के चाँद की तरह खूबसूरत लगती हैं इस फ़िल्म मे और अभिनय तो माशाअल्लाह.. मरहबा मरहबा. उस पुराने लखनऊ की तहज़ीब, रस्मो रिवाज को बया करती ये फ़िल्म और ज़ब गुरुदत वहिदा पर फिल्माया गीत..
चौदहवीं का चाँद हो, या आफ़ताब हो
जो भी हो तुम खुदा कि क़सम, लाजवाब हो
ज़ुल्फ़ें हैं जैसे काँधे पे बादल झुके हुए
आँखें हैं जैसे मय के पयाले भरे हुए
मस्ती है जिसमे प्यार की तुम, वो शराब हो
चौदहवीं का …
चेहरा है जैसे झील मे खिलता हुआ कंवल
या ज़िंदगी के साज पे छेड़ी हुई गज़ल
जाने बहार तुम किसी शायर का ख़्वाब हो
चौदहवीं का …
होंठों पे खेलती हैं तबस्सुम की बिजलियाँ
सजदे तुम्हारी राह में करती हैं कैकशाँ
दुनिया-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का तुम ही शबाब हो
चौदहवीं का …
संजय “अनंत ‘©