स्नेहा काले जी इंदौर से है , हिन्दी व मराठी दोनों भाषाओं में लिखती है , मेरे प्रति वात्सल्य भाव रखती है ,मेरी मातृ तुल्य है
उन्होंने जलगांव साहित्य सम्मेलन में मुझे अपनी हस्त लिखित एक कविता दी थी , मैने उस मार्मिक कविता पर आधारित एक समीक्षा लिखी थी( करोना के उस भयावह काल में ,उन्होंने अपना जवान बेटा हमेशा लिए खो दिया था) एक मां के हृदय की पीड़ा को समझने के लिए मातृत्व को आत्मसात करना होता है , जो मुझ पुरुष के लिए संभव नहीं..
जीवन के अंतिम सोपान में , बेटे को खोने की पीड़ा उनकी उस अति संवेदनशील कविता में जागृत होती है
बस इसी कविता ने मेरे और उनके मध्य एक सेतु का निर्माण किया
उनका यह काव्य संग्रह , जिसे उन्होंने भजन संग्रह की संज्ञा दी है , मेरे हाथों में है ,शीर्षक है
*कृष्णार्पण*
इसे भक्तिमय रचना संग्रह कहना ज्यादा उचित होगा , क्यों की इस संग्रह में उनकी अनेक रचनाएं भजन की श्रेणी में नहीं आती, उस में जीवन का सच है ,संसार का यथार्थ है,दर्शन है,किन्तु वे भजन नहीं है
*ये सनातन हृदय से निकला स्व-प्रस्फुटित भक्ति भाव का झरना है,जिसका शीतल जल आप को भक्ति भाव से तृप्त कर देगा*
उनकी शिक्षा मराठी भाषा में हुई , उन्होंने मराठी साहित्य में एम.ए किया है , आश्चर्य तब होता है , जब आप उन्हें पढ़े , किसी उत्तर भारतीय सम हिन्दी में भाषा में जब वो अपने भाव , अपने शब्दों में व्यक्त करती है , तब स्नेहा जी, हिन्दी साहित्य को अपने पूर्ण मनभाव से समृद्ध कर रही होती है
यह, उनकी दोनों भाषाओं में उनकी प्रवीणता , एकाधिकार को परिलक्षित करता है
मराठी और हिन्दी की लिपि एक है , कुछ सुक्ष्म अंतर को हम यदि नगण्य मान ले तो दोनों भाषाओं के लेखन में कोई बड़ा अंतर नहीं है अनेक शब्द दोनों भाषाओं में एक समान है, मराठी अधिक संस्कृतनिष्ठ है ,इस में कोई दो मत नहीं
स्नेहा जी को इसका लाभ मिला है
उनके इस संग्रह में भगवान कृष्ण , श्री राम , शंकर जी , मां दुर्गा जी सहित हमारे देवी देवताओं को समर्पित उनकी रचनाएँ है , सभी रचनाएं बड़े ही भक्ति भाव से लिखी गई और देव को समर्पित की गयी।
पढ़ते समय ऐसा लगता है मानो भोर होने को है , मंदिर के कपाट खुलने ही वाले है , पुरोहित के हाथों की पूजा थाल, पास के किसी उपवन से लाए पुष्पों से सुवासित है ,कुछ देर में आरती आरम्भ हो गई
बस ऐसी ही अनुभूति हुई ,जब स्नेहा जी की इस कृति को पढ़ रहा हु
वे सनातन में गहरी आस्था रखती है , तो निश्चित ही वे आरम्भ गणेश वंदना से ही करेगी
फिर ज्ञान स्वरूपा मां सरस्वती की वंदना …
उनकी रचना ‘कान्हा’ में लिखती है
*तेरा मेरा जन्मों का फेरा*
*चौबीस घंटे तूने ही मुझे घेरा..*
आगे लिखती है
*आखरी सांस तक रहेगा साथ हमारा*
*अज्ञानी अनादर करे हमारे रिश्ते का*
*क्या? प्रकाश सूर्य से अलग हो सकेगा*
इसी प्रकार इस संग्रह की अन्य रचनाओं में भी देव के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव देखने मिलता है।
इन संग्रह में कुछ रचनाएं ऐसी है,जिस में जीवन का सच है,दर्शन है ,मानव जीवन के क्षण भंगुरता का सजीव चित्रण है।
अपनी रचना ‘विश्वास’ में वे लिखती है
*दिखावे का देह लकड़ी जैसी जली चूल्हे में*
*लकड़ी में छुपी आग*
*वैसे सुलगती मै भक्ति में ..*
एक महत्वपूर्ण रचना जिस का उल्लेख न करना , स्नेहा जी के साथ अन्याय होगा , रचना का शीर्षक है ‘शतरंज’
इस रचना में गीता का दर्शन है , जीवन का यथार्थ है
*जीवन पट पर खेले संसारी शतरंज*
*सफेद सुख काले दुख की चौरस शतरंज…*
उनकी एक रचना,जो हट कर है, एक आधुनिक कविता,जीवन का दर्शन है , पर कुछ नए तेवर के साथ ,उनकी अन्य रचनाओं से सर्वथा भिन्न
शीर्षक है ‘कॉफी’
*जीवन संसार हॉट कॉफी सुंदर टेस्टी..*
आगे लिखती है
*परोपकार की चीनी मिलाना*
*शुद्ध पवित्र निखालस दूध डालना*
*पापों को उबाल कर भाप बना उड़ा देना*
*सद्गुणों की कॉफी मिला कर सुगंध फैलाना..*
सचमुच !
हम जीवन में ऐसी ही कॉफी बनाए और सब को पिलाए
अद्भुत रचना ..
आप कितना भी पुस्तकी ज्ञान हासिल कर ले ,किन्तु वो अनुभव के समक्ष शायद गौण होता है , स्नेहा काले जी की एक बड़ी ही सीधी सरल रचना
‘अनुभव’ ,
इस में वे यही बात पाठकों के समक्ष रखती है , रचना की अंतिम दो पंक्तियों में है , मानो जीवन का सार..
*उपयोग करो तो अनुभव सुखों की परिभाषा*
*ना परखो तो होती जीवन भर की निराशा …*
एक और कविता, जिसकी विषयवस्तु ,रूपक कुछ अलग है शीर्षक है ‘जलेबी’
बात जीवन दर्शन की किन्तु जलेबी की तरह
वे लिखती है,
*स्वार्थ लोभ का बना घोल*
*क्रोधी घी में फिर गोल गोल*
*अहंकार से बनी मीठी चाशनी*
*गृहस्थी की जलेबी उसमें डूबती..*
सचमुच मानव जीवन अहंकार , मद माया में डूबा हुआ है।
इस संग्रह में , सभी प्रमुख देवी देवताओं की स्तुति उन्होंने अपने शब्दों में की है,चाहे वो कृष्ण जी हो , रामजी हो या माता कात्यायनी जी या भद्रकाली या शंकर जी ..
रचना ‘निःस्वार्थ मुस्कान’ पुष्प को समर्पित है , पढ़ते समय राष्ट्रकवि की ‘पुष्प की अभिलाषा’ याद गयी
वे लिखती है
*हे मानव*
*तू फूल की तरह बन जाता*
*सारी दुनिया में निःसंदेह निःस्वार्थ मुस्कान फैलाता*
यह संग्रह भक्ति भाव में डूबा हुआ है , ईश्वर को सर्वस्व मान उसकी शक्ति के समक्ष शीश झुकाने का आग्रह करता है ,अन्य रचनाएं जीवन के यथार्थ को बयां करती है
स्नेहा जी का यह संग्रह उन सभी पाठकों के मन भायेगा जो ईश्वर पर विश्वास रखते है,सनातन धर्म पर आस्था रखते है।
वैसे इस पुस्तक का शीर्षक ही इसे बयां कर देता है
स्नेहा जी का यह रचन संसार उनकी गहरी आध्यात्मिक रुचि को प्रदर्शित करता है
ईश्वर उन्हें स्वस्थ,आनंदमय जीवन प्रदान करे
इस संग्रह की भाषा सरल हिन्दी है ,सभी के समझने व पढ़ने के योग्य , स्नेहा जी के और भी काव्य संग्रह हमें पढ़ने मिले , उनका रचना संसार
ईश्वर और समृद्ध करे , यही हमारी कामना है
*समीक्षक*
*डॉ. संजय अनंत*
*पुस्तक का नाम : कृष्णार्पण*
*रचनाकार : स्नेहा काले*
*प्रकाशक : श्री विनायक प्रकाशन, इंदौर (म. प्र)*