माता कैकेयी ने राम को रामत्व प्रदान किया…
कैसे माता कैकेयी को माता देवकी बनने का सौभाग्य मिला
बिलासपुर (mediasaheb.com)| वीरेंद्र बहादुर सिंह ‘कुसुमाकर’ जी की यह कृति और ये विषय थोड़ा सा गंभीर है, किन्तु पढ़ने के पश्चात आप का मत निश्चित ही परिवर्तित हो जाएगा | मूलतः महर्षि वाल्मीकि की संस्कृत में लिखित रामायण जो आदि रामायण है और कुछ सदी पूर्व अपने जीवनकाल में राम के चरित्र को आम जन की भाषा( अवधि ) में लिखने के दोषी माने गए और वर्तमान समय में हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक स्वीकार्य महाकाव्य ‘राम चरित मानस’ के रचयिता तुलसीदास जी की कृति, दोनों में माता कैकेयी का चरित्र एक हठी स्वार्थी महिला का है, जो अपने पुत्र मोह में, अपनी दासी मंथरा की कुटिल सलाह से अपने पुत्र, पति और राज्य को घोर संकट में डालती है, किन्तु क्या वास्तव में माता कैकेयी का कोई और रूप भी है क्या इस महत्वपूर्ण चरित्र पर नवीन दृष्टि अपेक्षित है
ये कृति सामान्य जन के लिए काव्य ही है, किन्तु वास्तव में ये आख्यायिका है,किन्तु पढ़ने में वही रस है जो खंड काव्य या महाकाव्य को पढ़ने से मिलता है
वीरेंद्र जी ने इस में लेखन की पारम्परिक शैली का उपयोग किया
आप पढ़ते है तो लगता है कोई पारम्परिक, कुछ सदी पुराना लिखा आप पढ़ रहें है, लिखने का भाव , भाषा इत्यादि सब कुछ ठेठ देशी है
वो ‘आल्हा खंड’आरम्भ होता है सारे देवी देवताओ का स्मरण कर, ठीक वैसे ही आरम्भ में वीरेंद्र जी माँ सरस्वती की वंदना करते है
अब हम विषय पर आते है, इसे पढ़ने के पश्चात आप का दृष्टिकोण माता कैकेयी के प्रति निश्चित ही बदल जाएगा, कारण ये है की वीरेन्द जी ने इनका वो पक्ष रखा, जो उन्हें नायिका बनाता है
राम को रामत्व प्रदान करने वाली निश्चित ही माता कैकेयी ही है, यदि राम अयोध्या के राजा बन जाते तो एक सम्पन्न किंतु छोटे राज्य के अधिपति होते, सुखी जीवन होता किन्तु राम, राम नहीं होते, उनके भौतिक संसार में अवतरण का उद्देश्य पूर्ण नहीं होता और हम में से कोई भी राम को न ही जानता और न ही इस संसार में कोई राम का भक्त होता
राम आर्य वैदिक संस्कृति के रक्षक बनते है और रक्ष संस्कृति,जिसका प्रसार हो रहा था रावण के नेतृत्व में, उसका नाश करते है
इस प्रकार सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड, कैकेयी माता का ऋणी है, जिस ने राम सीता और लक्ष्मण को वनवास भेजा
ज़ब वे वन से सीता लक्ष्मण सहित लौटते है, तो वीरेंद्र जी ने अपनी कल्पना से ये शब्द माता कैकेयी से मुख से प्रस्फुटित किए है ..
वन में तुम्हे भेजनें का रहस्य
राघव मै आज खोलती हूँ
मेरे अभीष्ट सब सिद्ध हुए
सपनों की व्यथा बोलती हूँ..
इस के आगे वे उन कारणों को बड़ी स्पष्टता से राघव के समक्ष रखती है
क्यों उन्होंने राम के वनवास माँगा था
असुरो के अत्याचार बढ़ रहें थे, ऋषि मुनि वैदिक कर्मकांड नहीं कर सकते थे, उनके आश्रम असुरो के द्वारा नष्ट किए जा रहें थे, आर्य संस्कृति के समक्ष घोर संकट का समय था
वे लिखते है..
ऋषियों मुनियो और देवों की
नभ तक अनुगुंजीत थी आहे
रघुकुल भूषण हे राम!
प्रतीक्षा में थी कानन की राहे..
इस के पश्चात माता कैकेयी अपने गौरवशाली अतीत से राघव का परिचय कराती है, किस तरह उन्होंने स्वयं युद्ध में सहभागिता की, शौर्य का परिचय दिया और महाराज दशरथ की अतिशय प्रिय बनी
वीरेन्द जी ने इतना सुन्दर वर्णन किया है, पाठक का मन रम जाता है और फिर माता कैकेयी के दिव्य कारणों को समझ राघव नत मस्तक हो जाते है
वीरेंद्र जी, श्री राम के भावो को अति सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करते है, वे लिखते है
राघव के ह्रदय के भाव माता कैकेयी के लिए
युग चरण तुम्हारे पूजेंगे
तुम सदा रहोगी वंदनीय
तुम ने जो कार्य किया है माँ
वह है वाणी में अकथनीय…
वे साक्षात् श्री हरि है, माता से अति प्रसन्न है और उन्हें वर देते है, कृष्ण अवतार में मै आप के गर्भ से जन्म लूंगा और आप मेरी माता होगी और सारा संसार मुझे देवकीनंदन कहेगा..
मेरे जैसे कृष्ण भक्त के लिए यह प्रसंग बड़ा ही मन भावन था
जिस कैकेयी को संसार खलनायिका मानता रहा, घोर संकट का कारण, राजा दशरथ की मृत्यु का कारण, सीता के असंख्य कष्ट का कारण मानता रहा
पर उसी माता कैकेयी के निर्णय के कारण राम सीता घर घर पूजे जाते है
सीता राम चरित अति पावन..
उनके अलोकप्रिय कठोर निर्णय ने ही राम को भगवान राम बनाया, उनके संसार में अवतरण को सार्थक किया
राम को रामत्व प्रदान करने वाली माता कैकेयी आप की सदा जय हो
इस कृति को पढ़ने के पूर्व मेरे ह्रदय में जो उनकी छबि थी, वो किसी क्रूर, स्वार्थी, दुष्ट स्त्री की थी
किन्तु अब वे मेरे लिए श्री राम सम पूज्यनीय है
कृति तो निश्चित ही महत्वपूर्ण है, किन्तु प्रकाशन बहुत ही निम्न स्तर का है, ऐसा लगता है जैसे कोई प्रचार पुस्तिका हो
इतने महत्वपूर्ण विषय पर लिखी यह आख्यायिका किसी योग्य प्रकाशक द्वारा सुरुचिपूर्ण तरीके से आम जन के समक्ष लायी जाती, शायद रचनाकार की कोई आर्थिक बाध्यता रही हो
किन्तु इन सब के बाद भी विषय और उसका सुन्दर प्रस्तुतीकरण इसे निश्चित ही पठनीय बनाता है, इसे आप ‘राम चरित मानस’ की चौपाई की तरह अनेक बार पढ़ सकते है, हर बार आप को वही रस मिलेगा और श्री राम की अनुभति होगी क्यों की ये राममय है
सियाराम मय सब जग जानी..
भाई वीरेंद्र का अभिनन्दन इस कृति के लिए
समीक्षक
संजय अनंत
पुस्तक : हो कैकेयी सी माता
रचनाकार : वीरेंद्र बहादुर सिंह ‘ कुसुमाकर’
प्रकाशक: अखिल भारतीय मंचीय कवि परिषद लखनऊ