पुणेः कलाकृति कलाकार से कहीं अधिक दीर्घजीवी होती है और इतिहास में हमेशा योगदान की ही याद रहती है, न कि केवल व्यापार की। अतः कलाकारों को केवल प्रसिद्धि या सेलिब्रिटी बनने की होड़ में न पड़कर, अपने भीतर के कलाकार को जीवित रखते हुए शांतिपूर्ण और संतुष्ट जीवन जीना चाहिए। यह विचार प्रख्यात मराठी अभिनेता संतोष जुवेकर ने एमआयटी एडीटी विश्वविद्यालय, पुणे के भव्य कला महोत्सव ‘कारी-2025’ के उद्घाटन अवसर पर व्यक्त किए।
इस अवसर पर मंच पर एमआयटी एडीटी विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. डॉ. राजेश एस., कुलसचिव प्रो. डॉ. महेश चोपडे, अधिष्ठाता डॉ. मिलिंद ढोबळे, मुख्य समन्वयक डॉ. मुक्ता अवचट और समन्वयक डॉ. विराज कांबळे सहित कई गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।
जुवेकर ने आगे कहा, “हर कोई अपने को अप्लाईड और फाइन आर्टिस्ट बताता है, लेकिन सच्चाई यह है कि कलाकार होना एक बात है, और भीतर की ‘कारी’ यानी कलात्मक चेतना को जीवंत रखना उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। कला ही मानव के जीवन के अंत तक साथ देती है, और जिसे कला का प्रेम है, वही सच्चे अर्थों में मानव कहलाने योग्य है।”
ज्येष्ठ कलावंत श्री सुहास बहुलकर ने भी इस अवसर पर विचार रखते हुए कहा कि ‘कारी’ का अर्थ है – कुछ नया और सृजनात्मक गढ़ना। उन्होंने कहा कि एमआयटी एडीटी विश्वविद्यालय का परिसर स्वयं एक कलात्मक संगम है, जहां से अनगिनत कलाकार उभर रहे हैं। उन्होंने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि वर्षों से उनकी यह इच्छा थी कि ललित कला, परफॉर्मिंग आर्ट्स, मीडिया, डिज़ाइन और आर्किटेक्चर – ये सभी एक ही मंच पर देखने को मिलें, जो ‘कारी’ महोत्सव के माध्यम से साकार हुआ है।
सुहास बहुलकर को ‘विश्वारंभ कला पुरस्कार’
‘कारी-2025’ महोत्सव के दौरान कला क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए वरिष्ठ कलाकार श्री सुहास बहुलकर को ‘विश्वारंभ कला पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार डॉ. विनोद शहा (प्रसिद्ध चिकित्सक व समाजसेवक) एवं डॉ. स्वाती कराड-चाटे (विश्वस्त, माईर्स एमआयटी शिक्षण समूह) के हाथों प्रदान किया गया। इस अवसर पर प्रो. डॉ. मिलिंद ढोबळे द्वारा लिखित ‘प्राचीन लेणी – एक दृश्य अन्वेषण’ और प्रो. डॉ. सुभाष बाभुळकर द्वारा रचित ‘डॉ. आनंद कुमारस्वामी’ पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।
उद्धरण:
“बंद आंखों से देखे गए सपनों को जो साकार करे, वही सच्चा कलाकार होता है। ‘विश्वारंभ’ नाम में ही नवीन सृजन की भावना समाहित है। इस पुरस्कार की प्रेरणा हमारे मार्गदर्शक प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड हैं, जिनकी दृष्टि से ही विश्वशांति घुमट और विश्वराजबाग जैसी कलाकृतियाँ संभव हुईं।”
डॉ. स्वाती कराड-चाटे, विश्वस्त, माईर्स एमआयटी शिक्षण समूह