*विजय दिवस की अद्भुत कथा*
डॉ. संजय अनंत की कलम से..
आज विजय दिवस है । चलिए आज 1971 का किस्सा सुनाता हूँ
श्रीक्षेत्र माँ ढाकेश्वरी के शुभ नाम पर बसा बंगाल का और उन दिनों पूर्वी पाकिस्तान का सब से बड़ा शहर ढाका आज की तरह उस दिन भी देश मे सर्दी का मौसम था, पर ढाका मे समुद्र तट होने के कारण कुछ ज्यादा ठंड नहीं थी फिर भी और दिनों की अपेक्षा कुछ खुशनुमा सा मौसम…
उस दिन जनरल जगजीतसिंह अरोड़ा के समक्ष पाकिस्तानी जनरल नियाज़ी रूआसे थे ,गला भर आया था स्थान था ढाका का रेसकोर्स मैदान, आत्मसर्पण की रस्म निभाई गई, समर्पण के कागजात पर हस्ताक्षर हुए, इसके बाद नियाजी ने अपने कंधे से अपने पद का बैच उखाड़ दिया रिवाल्वर के कारतूस निकाल जनरल सरदार जगजीतसिंह अरोड़ा को सौप दिए| फिर समर्पण की रस्म के तहत जनरल अरोड़ा के माथे से अपना माथा मिलाया |
(१९७१ विजयगाथा) दरअसल ये आधुनिक विश्व में हुई किसी भी जंग में किया गया सबसे बड़ा आत्मसर्पण था , नियाज़ी के साथ सैकड़ो पाकिस्तानी सैनिकों ने बिना लड़े हथियार डाल दिए शिमला समझौते में इन सैनिको का हमारे पास युद्ध बंदी होना एक बड़ा कूटनैतिक हथियार था, हम फिर भूल कर गए ,पाकिस्तान को और दबाया जा सकता था, जब तक ये सैनिक हमारे बंदी रहे इन पर कोई अत्याचार नहीं किया गया ,अलबत्ता दिल्ली मेरठ सड़क जरूर इनसे बनवाई गयी थी।
ये प्रतिदिन, जो पाकिस्तानी नेता, मीडिया में भारत को धमकी देते रहते है वो ज़रा इतिहास के पन्नो को पलटे..
दो शब्द new generation के लिये
ये बम्बइया शाहरुख़ सलमान नहीं , सरदार जगजीत सिंह जैसे शेर है हमारे असली हीरो ,,,
*डॉ.संजय अनंत ©*